भारत में बहुत सारे ऐतिहासिक मंदिर हैं जिनकी अपनी अलग ही कहानी है। इन्हीं मंदिरों में एक हैं तिरुपति बालाजी है जिसकी मान्यता कुछ ऐसी है, जहां जाने से लोगों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला की सांतवी पहाड़ी पर ये मंदिर स्थित है और इसके बारे में बताया गया है कि ये सात चोटियां भगवान विष्णु के सात सिर हैं, जो भगवान विष्णु जी को समर्पित है। द्रवडियन वास्तु शैली से बने इस मंदिर में भगवान विष्णुजी की विशाल मूर्ति है जो दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का खास नमूना है। इस प्रतिमा के दर्शन हेतु देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और इस मदिर से लोगों की आस्था भी जुड़ी है। श्री वेंकटेश्वर मंदिर में बड़े-बड़े कारोबारी, राजेनता, फिल्म स्टार आते हैं जहां वे हर साल लाखों-करोड़ों रुपए का चढ़ावा अर्पित करते हैं। आज के इस लेख में हम आपको Tirupati Balaji History in Hindi बताएंगे।
तिरुपति बालाजी का इतिहास | Tirupati Balaji History
भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार बताया गया है और इस वजह से ही इस मंदिर को श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां के लोग भगवान वेंकटेश्वर श्रीनिवास और गोविंदा के नाम से पुकारते हैं। तिरुमाला की पहाड़ियों पर बना ये भव्य मंदिर भगवान विष्णु के 8 चमत्कारिक मंदिरों में एक है। स्वामी तिरुपति वेंकटेश्वर जी के मंदिर के निर्माण को लेकर किसी के पास भी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में हुआ था। जब से यहां कांचीपूरम के पल्लव वंश के शासकों ने अपना अधिकार स्थापित किया, तब से ही इस मंदिर की उत्पत्ति बताई जाती है। मगर 15वीं सदी में इस मंदिर की प्रसिद्धी ज्यादा हुई। इस मंदिर का कार्यभार साल 1843 से साल 1933 तक हाथीरामजी मठ के महंत ने संभाला था लेकिन साल 1933 में इस मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी मद्रास सरकार को दे दी गई। इसके बाद इस मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेदारी समिति को दी गई जिसका नाम ”तिरुमाला-तिरुपति” है। फिर जब आंध्रप्रदेश राज्य का गठन हुआ तो एक तिरुपति बोर्ड बनाया गया जिसमें मुंबई, ऋषिकेश, कन्याकुमारी हैदराबाद, गुवाहाटी, नई दिल्ली और चेन्नई सहित कई शहरों और कस्बों में बने प्राचीन मंदिरों के संचालन की जिम्मेदारी दी गई। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि 18वीं सदी में 12 साल के लिए इस मंदिर के पट को बंद कर दिया गया था, तब एक शासक ने 12 लोगों को मारकर दीवार पर लटका दिया था। उसी समय विमान पर सवार प्रभु वेंकटेश्वर प्रकट हुए। इसके अलावा भी इस मंदिर से जुड़ी कई ऐसी पौराणिक और धार्मिक कथाएं हैं, जिसके चलते इस मंदिर का महत्वता बढ़ताी चली गई।
ये मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला और अद्धितीय शिल्पकारी के लिए भी काफी मशहूर है। ये मंदिर करीब 865 मीटर की ऊंचाई पर आंध्रप्रदेश की तिरुमाला की दिव्य सात पहाड़ियों के सातवें वेकेटाद्री नामक शिखर पर स्थित है। इन पहाड़ियों में नारायणाद्री, अंजनद्री, नीलाद्री, शेषाद्रि, गरुदाद्री, वृशाभद्री, और वेंकटाद्री भी शामिल हैं। यह पवित्र तीर्थ स्थल पुष्करणी नाम के सुंदर सरोवर के किनारे स्थित है और ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने कलियुग में मानव जाति को विपत्तियों से बचाने के लिए श्री वेंकटेश्वर जी का अवतार लिया था। वहीं इस मंदिर में वेंकटेश्वर भगवान की स्वयं प्रकट हुई मूर्ति विराजमान है, जिसे आनंद निलायम भी कहा जाता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर करीब 26.75 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इसके आर्कषित गर्भगृह में स्वामी वेंकटेश्वर की करीब 7 फुट ऊंची सुंदर प्रतिमा बनी है, जिसका मुख पूर्व दिशा में रहता है। इस भव्य मंदिर के तीनों परकोटों पर स्वर्ण कलश लगे हैं जिससे पर्यटकों आर्कषित होते हैं। द्रवडियन वास्तु शैली में बने दुनिया के इस सबसे प्रसिद्ध मंदिर में हनुमान जी, लक्ष्मी नरसिम्हा, वैष्णव सहित कई देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस पवित्र तीर्थस्थल के चारों तरफ परिक्रमा करने के लिए एक परिक्रमा पथ भी बना है, जिसे संपांगी प्रदक्षिणम् कहा जाता है जो वर्तमान बंद है। आपको बता दें कि तिरुपति बालाजी मंदिर के इस परिक्रमा पथ में रंगा मंडपम, सलुवा नरसिम्हा मंडपम, प्रतिमा मंडपम, ध्वजस्तंब मंडपम, तिरुमाला राया मंडपम और आइना महल समेत कई बेहद सुदंर मंडप भी बने हैं।
तिरुपति बालाजी की पौराणिक कहानी | Tirupati Balaji Story
तिरुपति बालाजी के मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा है जिसके अनुसार, एक बार पृथ्वी पर विश्व कल्याण के लिए यज्ञ का आयोजन किया गया। इस यज्ञ का फल ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों भगवानों में किसे अर्पित किया जाए इसका फैसला करने का अधिकार भृगु ऋषि को दिया गया, क्योंकि भृगु ऋषि ही देवताओं की परीक्षा लेने का साहस रखते थे। इसके बाद ऋषि भृगु पहले ब्रह्मा जी के पास गए, लेकिन ब्रह्मा जी अपनी वीणा बजाने में इतने लीन थे कि उन्होनें ऋषि पर ध्यान नहीं दिया, इससे क्रोधित होकर ऋषि ने ब्रह्रा जी को श्राप दिया कि पृथ्वीलोक पर उनकी पूजा कभी नहीं होगी। ब्रह्मा जी से असंतुष्ट ऋषि भगवान शिव के पास गए, जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ बातचीत में लीन थे और उन्होंने ऋषि की बात पर ध्यान नहीं दिया। इससे क्रोधित ऋषि ने भगवान शिव को भी श्राप दे दिया कि अब सिर्फ उनके लिंग की पूजा होगी। इसके बाद जब ऋषि भृगु विष्णु भगवान के पास गए तो भगवान विष्णु भी आराम करने की मुद्रा में थे। ऋषि ने उन्हें कई आवाजें दी लेकिन भगवान विष्णु नही सुने और क्रोधित ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु के सीने पर लात मार दी। भगवान विष्णु ने उनके ऊपर क्रोध करने की बजाए ऋषि के पैर पकड़ लिए और पूछा आपको कहीं चोट तो नहीं लगी।
विष्णुजी के ऐसा करने से ऋषि भृगु प्रसन्न हो गए और उन्होंने विष्णु जी को यज्ञ का पुरोहित बना दिया। मगर ऋषि की इस हरकत से माता लक्ष्मी बहुत क्रोधित हुईं, क्योंकि उन्होंने भगवान विष्णु जी के वक्षस्थान पर मारा था और वहां माता लक्ष्मी का निवास होता है। माता को इस बात से भी आपत्ति थी कि विष्णुजी ने ऋषि को दंडित नहीं किया बल्कि उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार किया। इन सभी बातों से रुष्ठ होकर माता लक्ष्मी विष्णु जी को छोड़कर चली गईं। विष्णु जी ने माता लक्ष्मी की पूरे ब्राह्मांण में बहुत खोजा लेकिन वे नहीं मिली इसके बाद विष्णु जी बहुत निराश हो गए और वे धरतीलोक के आंध्रप्रदेश की एक पहाड़ी पर चले गए जो पहाड़ी आज वेंकटाद्री के नाम से प्रचलित है।
इस वजह से मूर्ति पर आज भी है चोट का निशान
जब ब्रह्मा और भगवान शिव को विष्णुजी के इस दर्द के बारे में पता चला तो उन्होंने पृथ्वीलोक पर जाने का फैसला किया। ब्रह्म जी ने गाय और शंकर जी ने बछड़े का रुप धारण किया और पृथ्वी के उस स्थान पर आ गए जहां विष्णुजी ने खुद को अंर्तध्यान कर लिया था। पृथ्वी पर आते ही उन्हें चोल देश के एक शासक ने अपना बंदी बना लिया और गाय-बछड़े को वेंकट पहाड़ी के खेतों में चरने के लिए हर दिन भेजने लगा। एक दिन गाय ने दूध देना बंद कर दिया, तब उस शासक ने एक आदमी को गाय पर नजर रखने को कहा। वो आदमी हर दिन गाय पर नजर रखने लगा और एक दिन देखा कि गाय वेंकट पहाड़ी पर अपना सारा दूध गिरा रही है। ये देखकर आदमी बहुत क्रोधित हुआ और उसने गाय पर कुल्हाड़ी फेंककर प्रहार किया लेकिन तभी वहां भगवान विष्णु प्रकट हुए और वो कुल्हाड़ी विष्णु जी के माथे पर लग गई। इससे वे पूरी तरह से खून से लहूलुहान हो गए और वो ही चोट का निशान आज भी भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति में देखा जा सकता है।
कुल्हाड़ी लगने के बाद भगवान विष्णु ने पहले तो चौल वंश के शासक को असुर बनने का श्राप दे दिया, लेकिन फिर बाद में राजा ने बहुत माफी मांगी तो माफ किया। विष्णुजी ने उस राजा को ये वरदान दिया कि उसे पद्मवती नाम की पुत्री होगी और उसका विवाह श्रीनिवास से होगा। इस तरह भगवान विष्णु श्री ने निवास का रुप धारण किया और वैराहियों सा जीवन जीने लगे। कुछ सालों बाद श्रीनिवास और माता लक्ष्मी की अवतार में जन्मी पद्मावती का विवाह संपन्न हुआ और वे दोनों फिर से साथ हो गए। वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसी भी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने विवाह का खर्चा उठाने के लिए कुबेर से धन कर्ज़ के रूप में लिया और कहा कि वे उनका ऋण कलयुग के अंत तक चुका देंगे। ऐसा बताया जाता है कि जो भक्त यहां पर धन चढ़ाता है तो वो भगवान विष्णु का कर्ज उतारने में उनकी मदद करता है। इसी मान्यता को मानते हुए बड़े उद्योगपति और धनवान लोग यहां खूब चढ़ावा चढ़ाते हैं, इन सब कारणों से ही ये मंदिर सबसे अमीर मंदिरों की श्रेणी में आता है।
तिरुपति बालाजी से जुड़ी 5 अहम बातें | 5 Unknown lesser facts about Tirupati Balaji
1. यह मंदिर भगवान वेंकटेश्वर की पत्नी और मां लक्ष्मी का अवतार पद्मावती को भी समर्पित है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता भी है कि तीर्थयात्रियों की तिरुमला की यात्रा तभी पूरी होती है जब वे इस मंदिर का दर्शन करते हैं।
2. इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर जी की मूर्ति पर लगे बाल को असली माना जाता है। ये बिना उलझे हमेशा मुलायम बने रहते हैं और ये प्रभु की साक्षात प्रतिमा का प्रमाण भी माना गया है।
3. मंदिर के पंडित के अनुसार, भगवान वेंकटेश्वर भगवान की इस अद्भुत मूर्ति में कान लगाकर सुनने पर समुद्र की आवाज आती है, इसके साथ ही मंदिर की मूर्ति हमेशा नम भी बनी रहती है।
4. इस मंदिर से करीब 23 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा गांव है, जहां बाहरी लोगों का जाना मना है और इस गांव के लोग बहुत ही नियम-कानून के साथ रहते हैं। हैरानी की बात ये है कि यहां की औरतें ब्लाउज नहीं पहनती हैं।
5. इस मंदिर में हर दिन 50 हजार से करीब 1 लाख तक लोग दर्शन के लिए आते हैं। वहीं इस मंदिर के ट्रस्ट के खजाने में करीब 50 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति है।
6. तिरुपति रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। दर्शानार्थीयों को करीब 3600 सीढि़यां और कुछ किमी की पैदल चलकर मंदिर के दर्शन को जाना होता है।
7. मंदिर आने वाले बहुत से श्रद्धालु भगवान को अपने बाल भेंट करते है जिसे मोक्कू कहते हैं। यहां हर दिन लाखो टन बाल इकट्ठा होते हैं और इन बालों को मंदिर के संस्था द्वारा बेचा जाता है।
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