17वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेज व्यापार करने के बहाने भारत में घुसे और पूरे देश पर धीरे-धीरे कब्जा कर लिया। ब्रिटिश सरकार की हुकुमत पूरे देश पर चलने लगी और इन्होंने कुछ साल नहीं बल्कि 200 साल से ज्यादा भारत को गुलाम बनाकर रखा। भारत की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई थी और इस दौरान कुछ क्रांतिकारी लोगों ने ठान ली कि अब अंग्रेजों से आजादी लेकर रहेंगे। इनमें से बहुत से युवाओं ने एक समिति बनाई और साम-दाम-दंड या भेद से वे आज़ादी पाना चाहते थे लेकिन इनमें से एक ऐसे महापुरुष थे जिन्हें आजादी बिना किसी हिंसा के चाहिए थी। उस महापुरुष का नाम मोहनदास करमचंद्र गांधी था जिन्हें लोग महात्मा गांधी या बापू के नाम से भी लोग पुकारते थे। महात्मा गांधी ने अपने जीवन में हर चीज की लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि जिस देश के वासी हैं वहां की स्थिति बहुत खराब है तो उन्होंने खादी धोती पहनी और अकेले निकल गए आज़ादी लेनेे वो भी बिना किसी हथियार। कुछ ऐसी है महात्मा गांधी के जीवन की कड़ियां जिनके बारे में हम आपको बताएंगे और इसमें ये भी आप जानेंगे कि उनकी पुण्यतिथि यानी डेथ एनिवर्सरी के दिन ही Mahatma Gandhi Balidan Diwas मनाया जाता है।
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि यानि 'बलिदान दिवस' |Mahatma Gandhi Balidan Diwas
ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों की स्थिति बहुत खराब हो गई थी और इसका मुख्य कारण था जिसने महात्मा गांधी के अंदर देश के प्रति कुछ करने का जज़्बा जगाया। उन्होंने समाज की नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों में कमी को माना और इससे छुटकारा पाने के लिए आधुनिक सभ्यता की आलोचना, देशज संस्कृति व मूल्यों की उपयोगिता को मान्यता दी। ब्रिटिश सत्ता के मुकाबले के लिए दैनिक शक्ति के रूप में अहिंसात्मक तरीके का इस्तेमाल किया। बिना किसी भेदभाद गांधी हर किसी की सहायता करते और उनकी पद्धति अहिंसक, दर्शन नैतिक, सत्य और अहिंसा थी। उन्होंने अलग-अलग धर्म के ग्रंथ पढ़े और ऐसा करने से उनके विचार व दर्शन प्रभावित हुए। महात्मा गांधी का ईश्वर में विश्वास अटूट था और उन्होंने आजीवन सत्य के साथ अहिंसा का मार्ग चुना, वहीं दूसरों को भी इसी राह पर चलने की सीख देते थे। महात्मा गांधी के मुताबिक, हर इंसान के अंदर ईश्वर बसता है और इसके लिए हमें वैसे ही बनना चाहिए। जहां असत्य, हिंसा और कपट नाम की जगह नहीं होनी चाहिए। मैंने सत्य की खोज में अहिंसा को प्राप्त किया है। अहिंसा की पवित्रता के महत्व पर सबसे ज्यादा जोर दिया है।' महात्मा गांधी अपने हर एक भाषण में अपने विचार खुलकर व्यक्त करते थे और देश की जनता को हमेशा सत्यता और अहिंसात्मक होने का पाठ पढ़ाते थे।
कॉलेज के दौरान गांधीजी ने हर तरह की चीजों का सेवन किया लेकिन जब उन्होंने सत्य और अहिंसा का मार्ग चुना तो उसके बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। महात्मा गांधी ने व्यक्ति के साथ संपूर्ण समाज को नैतिक बनाने का प्रयास किया और उन्होंने कहा कि पृथ्वी का सूक्ष्मतम प्राणी भी ईश्वर का प्रतिरूप होता है। इस कारण ईश्वर को मानव का प्यार पाने का अधिकार है। अहिंसा का सकारात्मक अर्थ पृथ्वी के सभी प्राणियों से प्रेम है और ये अपना है, ये पराया है ऐसा संकीर्ण मनोवृत्ति वाले लोग ही सोच सकते हैं। उदार चरित्र वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही एक परिवार की तरह है। 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोलियों से छलनी कर दिया था, उस दौरान बापू एक सभा को खत्म करके वापस रैली के बीच लौट रहे थे। 30 जनवरी को ही भारत में बलिदान दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन महात्मा गांधी के प्राण देश के लिए न्यौछावर हो गए थे। शहीद दिवस या बलिदान दिवस महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। महात्मा गांधी ने अपना जीवन देश के लिए निकाल दिया, वे देश की आजादी के लिए लड़े और अपने देश के भविष्य के लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए लेकिन बाद में उन्हें अपने प्राण बलिदान ही करने पडे।
महात्मा गांधी का संक्षिप्त परिचय | Mahatma Gandhi Jeevan Parichay
शहीद दिवस के मौके पर सभी देश के लिए शहीद होने वालों को याद करते हैं। इसके साथ ही इस मौके पर कुछ ऐसे भी महापुरुषों को याद किया जाता है जिन्होंने देश को एक अलग ही मुकाम दिया। उन्हीं में एक थे महात्मा गांधी और 30 जनवरी को उनका निधन हुआ था। उन्होंने अपनी आधे से ज्यादा जिंदगी देश के प्रति कुर्बान कर दी। हर साल शहीद दिवस के दिन राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और तीनों सेना के प्रमुख राजघाट पर स्थित महात्मा गांधी की समाधि पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। इस मौके पर सभी दो मिनट का मौन रखते हैं और सैनिक उनके सम्मान में अपने हथियार झुका देते हैं और इस दिन पर सभी धर्म के लोग प्रार्थना आयोजन करते हैं। महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी कुछ बातें जो हम आपको संक्षिप्त में बताने जा रहे हैं...
1. गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर, 1869 को मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म हुआ था। 13 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी और इसके बाद वे इंग्लैंड पढ़ने के लिए गए थे।
2. मोहनदास गांधी ने अपने पढ़ाई के समय हर तरह के शौक पाले। गांधी जी के पिता दीवान थे तो उन्हें पैसों की कमी नहीं रही है और उन्होंने हमेशा मस्त-मौला वाली जिंदगी जी। मगर जिंदगी ने उन्हें ज्यादा समय तक ऐसा नहीं रहने दिया।
3. लंदन जाने से पहले मोहनदास ने अपनी मां को शाकाहारी रहने की कसम दी थी लेकिन ऐसा रह पाना उनके लिए काफी मुश्किल होता था। इसके कारण उन्हें कई-कई दिन भूखा रहना पड़ता था।
4. साल 1891 में गांधी जी भारत लौट आए और यहां उन्हें अपनी मां के निधन के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे से वकालत की शुरुआत की लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। साल 1893 में महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका वकालत के काम के लिए चले गए।
5. 24 की उम्र में गांधी जी भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकर बन गए। 21 साल साउथ अफ्रीका में रहने पर उन्होंने वहां की राजनैतिक विचारों का नेतृत्व किया। यहां उन्हें गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना भी करना पड़ा था।
6. महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका में ही महात्मा गांधी सफर कर रहे थे। उनके पास प्रथम श्रेणी की टिकट थी लेकिन उन्हें तीसरे श्रेणी के डब्बे में बैठने को कहा गया। गांधी जी ने इसके लिए मना कर दिया तो उन्हें ट्रेन से बाहर कर दिया गया।
7. ट्रेन वाली घटना ने महात्मा गांधी को अंदर तक प्रभावित किया और उन्हें लगा कि भारत की दशा दुनिया के सामने क्या हो गई है। इसके बाद उन्होंने लड़ाई शुरु की और साल 1914 में वे भारत आ गए। यहां पर उन्होंने अपनी मेहनत से राष्ट्रवादी नेता की छवि प्राप्त कर ली थी।
8. महात्मा गांधी ने चंपारण, खेड़ा सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, स्वराज, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदलोन चलाए। इसके अलावा कई दूसरे आंदोलनों का नेतृत्व किया। कांग्रेस पार्टी के जन्म के बाद गांधी जी कई दूसरे राजनेताओं से भी मिले।
9. देश को आजादी तो मिल गई लेकिन हिंदू-मुस्लिम एक साथ रहना नहीं चाहते थे। जिन्ना और नेहरू में भी पहले प्रधानमंत्री बनने की होड़ लगी हुई थी। ऐसे में महात्मा गांधी ने कुछ नेताओं की सहमति से देश के विभाजन वाले कागज पर हस्ताक्षर कर दिए।
10. मुस्लिम को दूसरा देश देने के लिए हिंदू संघ के नेता नाथूराम गोडसे उनसे बहुत नाराज हुए। उन्होने बार-बार गांधीजी मना किया ऐसा करने से लेकिन महात्मा गांधी फैसला कर चुके थे। इसी बात से नाराज गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को उनकी हत्या दिल्ली के बिरला हाउस में कर दी थी।
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