अगले दिन मिस्टर सिकरवार दोपहर में पाठक जी के घर आ गये मानवी को अपने साथ ले जाने के लिए । मानवी मिस्टर सिकरवार को देखकर बहुत खुश हो गई । उसे शहर जाने कि इतनी जल्दी थी कि वो अपने भाई और माँ - बाबू जी से मिलना ही भुल गई थी । उसे नहीं पता था कि उसके साथ क्या होने वाला हैं , वो अपने आने वाली जिंदगी से बिल्कुल बेखबर थी ।
वो भागी - भागी मिस्टर सिकरवार के पास आ रही थी उनसे मिलने , तो उसका पैर फिसल गया और वो गिरने ही वाली होती है कि मिस्टर सिकरवार उसे गिरने से बचा लेते है । उसे गिरते देख कर श्वेता जी डर गई और उनके मुंह से चिख निकल गई , क्योंकि वो अगर गिरती तो उसका मुंह सिद्धा दरवाजे से जा लगता और उसके बाद जो होता उसकी कल्पना मात्र से ही श्वेता जी सहम गई ।
वो जल्दी से मानवी के पास आई और उससे पूछने लगी .... बेटा पैर में कही लगी तो नहीं हैं ना ...
दिखाओं जरा हमें ... कहीं पैर में मोच - वोच तो नहीं आई है ना ... कभी भी आराम से नहीं चलती हो ... ना खुद चैन से रहती हो ना दुसरो को कभी चैन से रहने देती हो ।
मानवी - नहीं माँ मै बिल्कुल ठीक हूँ देखों ... मुझे कहीं नहीं लगी है ।
श्वेता जी - कई बार कहा है कि धीरे चला करो ... हमेसा हवा में उड़ते रहती हो । अगर कुछ हो जाता तो ...
श्वेता जी उसके लिए इस समय काभी परेशान हो रही थी । वो मानवी से बोली - अगर तू शहर जाकर वहां भी ऐसे ही गिरते - पड़ते रहोगी ... तो मिस्टर सिकरवार को बहुत परेशानी होगी .... समझी । अगर वहां तुम्हें कुछ भी हो जायेगा .... तो मिस्टर सिकरवार अपने आप को दोषी समझेंगे , भगवान ना करे कि ऐसा कभी हो तुम्हारे साथ , जिससे वो अपने आप को कभी दोषी समझे । भगवान के लिए तुम वहां जरा सम्भल के ही रहना ।
मानवी - मेरी प्यारी माँ आप इतना परेशान क्यों हो रही हो , मै तो वहाँ बहुत अच्छे से रहूँगी , बिल्कुल एक अच्छी बच्ची की तरह और हाँ ! मैं वहां किसी तंग भी नहीं करूंगी ।😊 बस अब आप परेशान होना छोड़ दो और एक प्यारी सी स्माइल दे दो मुझे । मानवी ने ये कहते हुए श्वेता जी का दोनों गालों को पकड़कर खिंच दिया ।
मानवी के ऐसे करने पर और उसकी बाते सुनकर श्वेता जी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट तैर गयी ।
इन लोगों से थोड़े फासले पर बैठे पाठक जी माँ - बेटी के प्यार को देख रहे थे । वो भी मानवी को लेकर थोड़े परेशान थे इस समय और हो भी क्यों ना परेशान , उनकी मानवी कितनी शांत स्वभाव की है यह उन से अच्छा कौन जान सकता है भला । लेकिन उनको मिस्टर सिकरवार पर भी बहुत भरोसा है , पाठक जी जानते है वो ( मिस्टर सिकरवार ) मानवी का बहुत अच्छा से ख्याल रखेंगे । पाठक जी ये बात बहुत अच्छे से जानते है कि उनकी बेटी वहां जाकर ( मिस्टर सिकरवार के घर ) बहुत खुश हो जायेगी । वो मानवी को अपने पास बुलाये और उससे कहें कि वहाँ जाकर अच्छे से रहना , किसी को भी परेशान मत करना और बिना काम के इधर - उधर मत घूमते फिरना ।
मानवी - जी ठीक है बाबू जी .... आपको शिकायत का मौका मैं बिल्कुल भी नहीं दूँगी और आप परेशान मत होइये मेरे लिए । अंकल तो होंगे ही मेरे साथ वहां , तो आपको मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं हैं - - ठीक हैं बाबू जी .... ये कह कर मानवी अंदर अपने कमरे में चली गयी , , अपना समान दोबारा से चेक करने की कुछ छुट तो नहीं रहा है ।
श्वेता जी .... पाठक जी और मिस्टर सिकरवार के लिए चाय लेकर बालकनी में आ गई और वहीं बैठ कर चाय पीते हुए तीनों आपस में बातें करने लगें ।
कुछ देर तक बात करने के बाद मिस्टर सिकरवार श्वेता जी से कहते है कि वो मानवी को बोल दे की अब यहाँ से निकलने का समय हो गया है । जितना
जल्दी निकलेंगे उतना अच्छा रहेगा ; क्योंकि हम कार से जा रहे है ।
उनकी बात सुनकर पाठक जी उनसे पूछते कि आप अकेले कैसे इतनी दूर तक गाड़ी चला पायेंगे । ये ठीक नहीं है . . . आप ट्रेन से भी तो जा सकते है ... इसमें खतरा भी बहुत हैं ।
मिस्टर सिकरवार - अरे नहीं पाठक जी हमारे साथ हमारा ड्राइवर भी होगा ; कुछ दूर वो चलायेगा और कुछ दूर तक मैं चलाऊंगा । इससे ज्यादा थकावट भी नहीं होगी हमे और किसी खतरे का भी कोई डर नहीं होगा ।
पाठक जी जब ये सुने कि दो जन ड्राइव करेगे ; तब जाकर उनको कही चैन आया ।
मानवी का भाई कार्तिक उसका सामान लेकर गाड़ी में रख दिया और तब मानवी के पास आकर उसका दोनों हाथ पकड़कर उसे चिढ़ाने के लिए बोला ।
कार्तिक - चलो भाई कुछ दिनों के लिए तो ये घर - - घर लगेगा और इस घर में कुछ समय के लिए शांति भी रहेगी । इस घर की दिवारे भी चैन से रह पायेंगी ।
मानवी कार्तिक के बातों से चिढ़ कर बोलती है - तू साफ - साफ ये क्यों नहीं कह रहे हो कि तुम्हें जलन हो रही है मेरे शहर जाने से । तो कार्तिक मानवी से कहता है ।
कार्तिक - नहीं मेरी प्यारी दिदु .... मुझे तो जलन - वलन नहीं हो रही हैं . . . बिल्कुल भी नहीं । मैंने ये सब इसलिए बोला क्योंकि आपके चले जाने पर इस घर की सारी चीजें एक जगह रहेगी और जो आप गुस्सा हो कर दिवारों को लात मारती हैं . . . वो भी कुछ दिन के लिए नहीं होगा । बेचारे दिवार का आप मार - मार के बुरा हाल कर देती हो । ये कहकर कार्त्तिक हँसने लगा । मानवी ये सुन कर पुरी तरह से चीढ गई थी लेकिन वो आज जाते - जाते कुछ भी ऐसा कांड नहीं करना चाहती थी , जिससे उसके माँ और बाबू जी को परेशानी हो ।
मानवी बस कार्तिक को धमकी देकर रहने दी कि वो जब आयेगी वहाँ से ... तो उसके लिए कुछ भी नहीं लायेगी । ये सुनकर कार्तिक उससे बोलता है कि ठीक है - ठीक है पहले आप खुद अपने आप को वहाँ से सही सलामत लाइये । यहीं सबसे बड़ी बात होगी मेरे लिए ।😊😊
मानवी चीढ़ कर उससे बोलती है - देख लो कार्तिक अब ज्यादा हो रहा हैं । मैं अब माँ और बाबू जी से बोल दूंगी की तू मुझे श्राप दे रहा है कि मुझे वहां कुछ हो जाए । अगर अब और कुछ बोला तो । तेरी जुबान आज बहुत चल रही है । भले ही मुझे माँ - बाबू जी और सब लोग शैतान बोलते है लेकिन प्यार भी मुझ से ही कहते है समझे । तू कितना भी अच्छा बनते हो या अच्छा हो , लेकिन प्यार तो मुझ ही से ज्यादा करते है सारे लोग ।
क्रमश: -