अब तक आपने देखा
वो अपने आस - पास देखने लगी की वो जग कहा रख दी । उसे लगा कि वो अनुभव से अच्छे से लड़ाई करने के लिए , उसने जग कही रख दिया है ।
अब आगे
जब उसकी नजर नीचे टूटे हुए जग पर पड़ी तो वो जोर से चिल्लाई — अ ...ई ... तुम्हारी वजह से आज मैंने फिर से अंकल का जग तोड़ दिया । अब मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी । लोगों को टक्कर मारने के लिए और चीजों को तोड़ने के लिए ये गेंडे जैसा शरीर बनाये हो ? मैं अभी अंकल से जाकर बोल रही , कि आपने जो ट्रक के जैसे अपने घर जिस रेंटर को रखा है , उसे निकाल दो अपने घर से । ये आपकी किमती चीजो पर नजर रखता हैं और आज इसने मुझे टक्कर मारके जग भी तोड़ दिया । उस दिन के जैसे मैं आज नहीं छोड़ने वाली हूँ ... आज तो मैं पक्का अंकल - आंटी से तुम्हारी शिकायत करूंगी !
रेंटर हो तो रेंटर की तरह रहो ! रहते तो ऐसे हो कि जैसे ये खुद का घर है ।
अनुभव इस समय मानवी को खा जाने वाली निगाहों से देख रहा था । मानवी ने उसे एक भी मौका नहीं दिया था बोलने को । अनुभव को तो सबसे ज्यादा गुस्सा उसे गेड़ा , ट्रक और रेंटर कहने पर आ रहा था ।
अनुभव ने गुस्से से मानवी को देखते हुए बोला — तुम अपने आप को आखिर समझती क्या हो ? उस दिन भी बक - बक - बक करके मेरा दिमाग खराब कर दी थी । जब कि मेरा कोई दोष नहीं था और आज भी यही कर रही हो । भगवान ने तुम्हें भी तो बिल्ली के जैसे दो आँखे दीं है , तो तुम क्यों नहीं देख कर चलती हो ? तुम देखकर चलती तो हम नहीं टकराये होते , समझी ! और तुम बार - बार मुझे गेंड़ा और रेंटर क्यों बोल रहीं हो ? संध्या आंटी की मदद करने आयी हो , तो तुम वही करो , उनके सान्य किचन सम्भालो । तुम्हें मेरे पर्सनल लाइफ में घुसने की कोई जरूरत नहीं है ! .... और हाँ एक बात कान खोल कर सुन लो । अनुभव ने अपने एक - एक शब्द पर जोर देते हुए मानवी से कहा — ये .. मेरा ... घर है , मैं कोई रेंटर नहीं हूँ , आज के बाद मुझे रेंटर मत कहना और वो मानवी के तरफ एक कदम बढ़ कर उसको चिढ़ाते हुए जहरीली मुस्कान के साथ कहा — जिस अंकल - आंटी का तुम दिन भर माला जपते रहती हो । वो मेरे .. मॉम - डैड हैं . . . समझी ... बिल्ली ...
दोनों की लड़ाइ देखकर मिस्टर सिकरवार , माधुरी जी और संध्या तीनों ही हंस रहे थे । उनको दोनो की लड़ाई देखकर आंदद आ रहा था ।
मानवी को अनुभव के बात का विश्वास नहीं हुआ कि वो मिस्टर सिकरवार का बेटा है और ये इसका घर हैं ।
वो उसे घुरते हुए बोली — चल झूठे गेंड़ा , रेंटर बटन के जैसे आँख वाला ... बड़ा आया मेरे अंकल - आंटी को मॉम - डैड बनाने वाला ।
अनुभव मानवी को घुरते हुए — ओए खिसियानी बिल्ली ... बस बहुत हो गया ... अब तुम चुप हो जाओं ! वरना मैं तुम्हें अभी यहीं नीचे फेंक दूंगा ।
मेरे पास तुम्हारे साथ - साथ फालतु में बक - बक करने का टाइम नहीं हैं । तुम्हारी वजह से मैं लेट हो गया ... आज बिल्ली ... हमेशा मेरे से लड़ाई करने के लिए मेरे पिछे चिपकी रहने वाली छिपकली ..... ये कहते हुए वो जल्दी - जल्दी सिड्डियों से नीचे चला गया ।
मानवी अनुभव की लास्ट वाली बात से पूरी तरह से झन्ना गयी उसका मन किया कि वो अनुभव का गला दबा दे । वो अनुभव को पिछे से गुस्से में बोली — तुम हो छिपकली के नाना .... डरपोक गेंड़ा ... भाग गया डर से ...
क्रमश: