अब तक आपने देखा
मानवी अनुभव की लास्ट वाली बात से पूरी तरह से झन्ना गयी उसका मन किया कि वो अनुभव का गला दबा दे । वो अनुभव को पिछे से गुस्से में बोली — तुम हो छिपकली के नाना .... डरपोक गेंड़ा ... भाग गया डर से ...
अब आगे
समय बीतता गया और बढ़ते समय के साथ दोनों के बीच नोक झोक भी बढ़ती गई । एक भी ऐसा दिन बाकी नहीं रहता था , जिस दिन मानवी और अनुभव के बीच तु - तु - मैं - मैं नहीं हुआ हो । दोनों एक दूसरे को देखना भी नहीं चाहते थे । अनुभव तो मानवी से तंग आ गया था , उसके तरह - तरह जानवरों के नाम से पुकारे जाने से । वहीं मानवी भी अनुभव से परेशान हो गई थी , उसके बौनी , छिपकली , नकचडी कहने से । मानवी का तो कभी - कभी अनुभव के ऐसे परेशान करने पर मन होता था , कि वो अनुभव का गला दबा कर मार दे । इन बीते दिनों के साथ दोनों के बीच की जो ग़लतफहमी थी , एक - दूसरे को लेकर वो दूर हो गई थी । अब दोनों जान गये थे कि कौन क्या है ? दोनों अब एक दूसरे को रेंटर और कामवाली कह कर नहीं चिढ़ाते थे । 😄 बस किडे - मकोड़े और जानवरों के सुन्दर - सुन्दर नामों से चिढ़ाते थे । मानवी तो अनुभव को कभी - कभी ऐसे - ऐसे नाम से चिढ़ाती थी , जिसके बारे मे हम जानते भी नही है और जिसका कोई अर्थ भी नहीं होता है । वो चिढ़कर कुछ भी बोल देती थी ।
माधुरी जी आज अपने कमरे में अपना सामान पैक कर रहीं थी । उन्हें अपने सहेली के घर उनकी बेटी की शादी में जाना था । माधुरी जी की सहेली उन्हें शादी से 6 दिन पहले ही आने को कही थी और साथ - ही - साथ माधुरी जी कोई बहाना ना बनाये , इतने दिन पहले आने की बात को सुनकर , इसलिए धमकी भी दे दी थी , कि अगर तुम नहीं आओगी तो , मैं तुमसे बात नहीं करूंगी और तुम्हारे बेटे की शादी में भी नहीं आउंगी । अब सोच लो तुम्हें क्या करना है । माधुरी जी कैसे अपनी सहेली की बात टालती भला , और तो और ऊपर धमकी भी मिल गई हैं उन्हें । 😄
माधुरी जी मानवी को अपने साथ अपने सहेली के घर ले जाने की बात उससे कही , तो मानवी मना कर दी वहां जाने से , ये सोचकर कि मैं वहां जाकर क्या करेगी ? ना मैं वहां किसी को जानती हूं और ना ही पहचानती हूं । वहां जाने से अच्छा है कि मैं यही रुक जाऊँ । 8 या 9दिन की बात है । इतना दिन तो मैं अकेली भी रह लंगी | आज - कल ये गेंडा भी लेट से ही आ रहा है घर और सुबह जल्दी चला भी जाता है ऑफिस , तो डरने की बात ही नहीं है क्यों मुझे परेशान करेगा । वैसे भी मैं अकेली कहां रहूंगी आंटी के जाने के बाद , अंकल है ...संध्या आंटी है . . . बस आज रात भर के लिए मैं यहां अकेली रूहूगी , कल शाम तक अंकल भी आ जायेंगे आंटी को छोड़कर ।
फिर मानवी उदास होते हुए खुद से कहती है — लेकिन मुझे अकेले डर लेगता रात में .... संध्या आंटी तो रात को अपने घर चली जाती है और ऊपर से ये गेंड़ा भी देर रात को आता है । अब मैं क्या करूं .... फिर अचानक उसके दिमाग में एक बात आई और वो मिस्टर सिकरवार के पास कॉल कर के अपनी बात कहीं ।
क्रमश: