फाइनली आज मानवी का सपना पूरा होने वाला था । वह काफी खुश थी शहर जाने के लिए । थोडी देर बाद मानवी को लेकर मिस्टर सिकरवार बाहर आ गए और गाड़ी के तरफ चल दिए . . जहां गाड़ी खड़ी थी । वहां पहुंचकर मिस्टर सिकरवार ने मानवी के लिए दरवाजा खोला , मानवी खुशी-खुशी गाड़ी में बैठ गई , वो बैठते ही उसने ( मिस्टर सिकरवार से ) कहा अरे कितना मुलायम है ये सीट और देखिए कितनी जंप भी कर रही हैं और वह यह कह कर उस पर जंप करने लगी । मिस्टर सिकरवार ये देखकर मुस्कुराए बिना नहीं रह सके ।
अब दोनों वहाँ से चल दिए । मिस्टर सिकरवार मानवी को अपने साथ अपने घर लाए और अपना सामान गाड़ी में ड्राइवर से रखने को कहकर मानवी के लिए कुछ चॉकलेट्स लेकर आए और मानवी को दे दिए । मानवी चॉकलेट्स को देखकर बहुत खुश हुई और वही पर फाड़ के खाने लगी ।
कुछ देर आराम करने के बाद तीनों दिल्ली के लिए निकल गए । रास्ते भर मानवी कुछ ना कुछ पूँछती रही और कभी मिस्टर सूर्यवंशी तो कभी ड्राइवर उसके सवालों का जवाब देते रहे । एक और भी बात थी कि मानवी के बक - बक से दोनों लोगों को रास्ते में ना नींद आई और ना ही बोरियत का सामना करना पड़ा ।
बीच - बीच में कहीं - कहीं पर ब्रेक भी ले ले रहे थे ।
अगले दिन दोपह में
10 घंटा से लगातार गाड़ी चलाने से दोनों जन काफी थक चुके थे , अब वो दिल्ली पहुँच चुके थे , सिकरवार मेंसन बस पहुँचने ही वाले थे ।
फाइनली आज मानवी दिल्ली आ ही गई । वहां की चकाचौंध को देखकर अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर के मिस्टर सिकरवार से कह रही थी , की अंकल क्या गजब का महल यहां पर बना हुआ है । एक से बढ़ कर एक । वह भी इतनी ऊंची - ऊंची कि हमारा गर्दन ही दुख जाएगा ऊपर देखते - देखते । इतनी सारी दुकानें , इतनी लंबी-लंबी सड़कें , इतने सारे लोग अरे बाप रे . . ! यहां तो हम भूल ही जायेंगे कि किधर जाना है , मैंने तो ये सब सिर्फ टीवी पर ही देखा था , लेकिन आज सामने से भी देख लिया ।
लगभग 30 मिनट के बाद मानवी को एक बहुत ही सुंदर और बहुत बड़ा घर दिखा । वो उसी को देखने में मगन थी , उस घर के आगे बहुत प्यारे - प्यारे फूल लगे हुए थे , तरह - तरह के मनमोह लेने वाले पेड़ - पौधे भी लगाए गए थे । जीससे घर और भी सुंदर दिख रहा था । मानवी बस उस घर को और वहां लगे फूल और सुंदर - सुंदर पेड़ - पौधों को देखने में लगी थी । उसे ये ध्यान नहीं आया की गाड़ी अब रुक गई है । उसको ये बात तब पता चली जब मिस्टर सिकरवार ने उससे कहा कि बेटा कहाँ खो गई हो । यही है घर । क्या घर नहीं जाना है ? चलो अंदर थोड़ा आराम कर लो फिर मैं तुम्हें सबसे मिलवा लूंगा और यहाँ का सैर भी कराऊंगा ।
मानवी ने जब सुना कि वो लोग घर पहुंच गए हैं और यह घर मिस्टर सिकरवार का ही हैं । तो बहुत खुश हुईं । मानवी जल्दी से कार से बाहर आयी और खुश होते हुए मिस्टर सिकरवार से बोली कि , अंकल आपका घर तो बहुत बड़ा है और बहुत सुंदर भी ।
मिस्टर सिकरवार हंसकर उससे कहते — मानवी अब से यह तुम्हारा भी घर है । इसे सिर्फ मेरा ही मत समझो । फिर मानवी को मिस्टर सिकरवार अपने साथ अपने घर में ले जाने लगे । मानवी जब मेन दरवाजे पर पहुंची , और वह जैसे ही अपना पैर रखने वाली थी कि उसकी नजर चमचमाते हुए सफेद मार्बल पर पड़ी , मानवी ने अपने आगे बढ़े हुए पैर को पीछे किया और अपना सैंडल देखने लगी । फिर वह अपना सैंडल दरवाजे पर ही उतारने लगी अंदर जाने के लिए । मिस्टर सिकरवार मानवी को ऐसा करते हुए देखकर ★ ★ ★ वह मानवी को रोकते हुए बोले — रुको •••••••• यह क्या कर रही हो तुम ? चलो अंदर जल्दी से । तुम्हें यह सब करने की कोई जरूरत नहीं है । मानवी **** मिस्टर सिकरवार की बात सुनकर ... पहले उनके तरफ देखती है , , , , फिर वो फर्श को देखती है और अपने सैंडल को देखते हुए मिस्टर सिकरवार से बोलती है — अरे .... अरे ..... अंकल यह फर्श एकदम साफ है और वही मेरा सैंडल इसके आगे कितना गंदा लग रहा है और इसमें कितनी मिट्टी भी लगी हुई है । मैं अपना पैर जहां - जहां रखूंगी वहां - वहाँ निशान बन जाएगा मेरे सैंडल का .... । तब दोबारा से इसे साफ करना पड़ेगा । इसलिए मैं सैंडल बाहर ही उतार देती हूं ।
क्रमशः ★ ★ ★ ★ ★ ★ ★ ★ ★ ★