अब तक आपने देखा
मिस्टर सिकरवार संध्या से — नहीं मैं वहीं आ रहा हूँ और ये कहकर वो अनुभव को घुरते हुए वहाँ से नीचे चले आये ।
अब आगे
अपने डैड को नीचे जाते देखकर अनुभव मन ही मन खुश हो गया और अपना पैर दबा कर चोरो की तरह वहां से सीधा अपने कमरे चला गया , इतनी तेजी से अंदर गया जैसे उसके पीछे कोई भूत पड़ गया हो ।
ऐसे ही धीरे-धीरे समय बीत गया । मिस्टर सिकरवार और अनुभव सुबह को गए शाम को ऑफिस से आते थे । घर से तो मिस्टर सिकरवार और अनुभव दोनों ही ऑफिस के लिए ही जाते थे , लेकिन ऑफिस सिर्फ अनुभव ही पहुंचता था मिस्टर सिकरवार नहीं । वो कही और चले जाया करते थे । अनुभव कभी - कभी सोचता की डैड आखिर कहाँ जाते हैं ? उन्होंने हमें कभी बताया ही नहीं है । घर से तो बोलकर आते है कि ऑफिस जा रहा हूँ ! लेकिन ये ऑफिस नहीं आ कर आखिर जाते कहां है ?
मानवी और अनुभव दोनों अभी भी एक दूसरे खाना बनाने वाली और रेंटर ही समझते थे । इस बीच दोनों का जब भी सामना होता था , तो दोनों एक - दूसरे को घूर - घूर के देखते जैसे समय मिलते ही एक - दूसरे पर टूट पड़ेगें और एक - दूसरे को खा जायेगें ।
ऐसे ही एक दिन अनुभव अपने ऑफिस के लिए कमरे से निकल रहा था , वह थोड़ा जल्दी में था । सामने से मानवी भी अपने कमरे से बाहर आ रही थी । मानवी के हाथ में पानी का जग था , उसे लेकर वो किचन में जा रही थी । अनुभव अपना वॉच बांधते हुए सिड्डी के तरफ , तेजी से बढ़ रहा था । वह सामने नहीं देखा कि , मानवी भी सड्डी के तरफ आ रही है और मानवी की तो बात ही अलग हैं । वो तो हमेशा अपने ही धुन में रहती है , वो अभी पूरे घर को देखते आ रही थी , कभी दिवार पर लगी पेंटिंग तो कभी मूर्ति और झूमर को । अब तक दोनों सिड्डी के पास आ गए थे । दोनों अपने दुनियां में गुम हुए एक - एक कदम आगे बढ़े और टक्करा गए एक - दूसरे । मानवी के हाथ से काँच जग छूट गया और वो छन से करके टूट गया । मानवी को भी अनुभव से टकराने पर चोट लग गई थी कंधे पर । मानवी ने अनुभव को स्थिति को समझने भी नहीं दिया , और वो अपना कंधा पकड़ कर अनुभव पर बरस पड़ी ।
सुबह का समय था तो माधुरी जी और संध्या दोनों ही किचन में थी और मिस्टर सिकरवार इस समय अपने स्टर्डी रूम में थे । जग के टूटने की आवाज सुनकर वो बाहर आए । वो अभी दरवाजे तक ही पहुंचे थे , लेकिन वो अपने सामाने का नाजारा देखकर वही रुक गए । उधर माधुरी जी और संध्या भी आवाज सुनकर हॉल में आ गई थी । वो दोनों भी मानवी और अनुभव की लड़ाई देखने लगी ।
मानवी — अरे गेंड़ा कही के , ऐसे भी कोई चलता है क्या ? इतना जल्दी चलना है तो , अपने इस आँख का भी इस्तेमाल कर लिया करो । ये बटन जैसे आँख का क्या करोंगे , आचार डालोगें । बहुत जोर से मेरे कंधे में चोट लगी हैं , मैं कितने आराम से जा रही थी पानी लाने ... वो इतना कह कर अपने हाथ के तरफ देखती है . . तो उसके हाथ में जग नहीं था । वो अपने आस - पास देखने लगी की वो जग कहा रख दी । उसे लगा कि वो अनुभव से अच्छे से लड़ाई करने के लिए , उसने जग कही रख दिया है ।
क्रमश: