मानवी के बाबू जी गांव के सरपंच हैं तो वह अक्सर गांव में ही रहते हैं घर पर हो शाम को ही आते हैं ।
वो अब अक्सर लोग उसे कहते हैं कि जरा हमें कोई अच्छा सा लड़का बता दीजिए 'हमारी लड़की के लिए ।हमें अब अपनी बिटिया की शादी करनी है ।
तो लोग कहते हैं -अरे पाठक जी आप काहे चिंता कर रहे हैं । लड़के वाले तो खुद ब खुद आएंगे आपके बिटिया का हाथ मांगने , अपने बिटवा के खातिर । वह तो पार्वती मैया की परछाईं है परछाईं ।आप चिंता नहीं कीजिए अपनी बिटिया को लेकर ।
पाठक जी ( यानी कि मानवी के बाबू जी । ) -अरे चिंता तो होगी ही ,आखिर वह हमारे घर की लाडली जो हैं । उसके लिए एक अच्छा सा वर ढूंढना है । जो उसे हमेशा खुश रखें ।
समय बीत गया । इस बीच पाठक जी कई सारे लड़के को देखें । पर अपनी लड़की के लिए उन्हें कोई पसंद नहीं आ रहा था । आखिरी आये भी क्यो कोई पसंद उन्हें , उनकी लाडली के भाग्य में तो कुछ और ही लिखा हैं ।अब पंडित जी बहुत परेशान करने लगे है , क्योंकि जिसे भी वह देखने जाते हैं ,कभी कुंडली मैच नहीं होती ,तो कहीं लड़का ही पसंद नहीं आता है उन्हें और कहीं ये दोनों पसंद आ जाता ,तो परिवार ही अच्छा नहीं होता हैं ।
कुछ दिन बाद
आज पाठक जी के घर में पूजा हैं ।उनके घर इस पूजा में बहुत सारे लोग आए हुए हैं और आए भी क्यों ना , एक तो पंडित और दूसरे में अपनी यहाँ के सरपंच भी ,तो जाहीर है , लोग तो आएंगे ही ।
काफी भीड़ है आज उनके घर अब भाई पाठक जी महामृत्युंजय जाप करवा रहे हैं , तो उनके घर उनके सगे - संबंधी तो आएंगे ही ।बहुत सारे पंडित जी आए हुए हैं पूजा कराने के लिए ।पूरा घर उनका औरतों और बच्चों से भरा हुआ है और उनका द्वार पुरुषों से भरा हुआ है । इसी पूजा में आज दिल्ली से मिस्टर राघवेन्द्र सिंह सिकरवार पाठक जी से मिलने आए हैं ,किसी काम से ...शायद कुछ दिखाने आए हैं यहाँ वो आज ।
दरअसल मिस्टर सिकरवार भी गांव के रहने वाले हैं जब वह बड़े हुए तो दिल्ली चले गए थे काम के सिलसिले मे। शुरूआत में तो वो दूसरे किसी की कंपनी में काम करते थे , पर अब वह खुद एक कंपनी के मालिक हैं ।
मिस्टर सिकरवार बाहर बैठे सब से बात कर रहे थे , उन्ही में पाठक जी भी शामिल थे । तभी मानवी लगभग दौड़ते हुए आती है पंडित जी के पास और उनसे कहती है . . .
मानवी - बाबू जी चलिए मां बुला रही है आपको ।
पाठक जी - (मुस्कुराते हुए कहते हैं )किस लिए बुला रही है ? जो तुम इतनी जल्दी में आई हो ।
मानवी - वो बाबू जी पूजा के लिए जो सामान रखा जा रहा है ना , वह चल कर देख लीजिए एक बार , कहीं कुछ छूट - वूट तो नहीं गया है ।
पाठक जी -अच्छा -अच्छा हम अभी चलते हैं , तो यह सुनकर मानवी जैसे पलटती है वापस जाने के लिए , तभी पाठक जी उसे रोकते हुए कहते हैं . . .
पाठक जी - अरे बिटिया पहले तुम इनसे मिलो ,यह बहुत ही दूर से आए हैं पाठक जी मिस्टर सिकरवार की तरफ इशारा करके कहते हैं । मानवी यह बात सुनकर अपने दोनों हाथों को जोड़कर ,थोड़ा सा सर झुकाके उन्हें राधे - कृष्णा बोलती है ।
और वो ( मानवी ) अपनी छोटी - छोटी आंखें बड़ा करके देखते हुए कहती हैं , मतलब शहर से आए हैं ये ।इस समय उसके चेहरे पर , छोटे बच्चों के जैसे खुशी दिख रही थी ।जैसे छोटे बच्चों को उसके पसंद का खिलौना दिलाने पर वो होते है ।
पाठक जी -हां बिटिया वह भी दिल्ली शहर से आए हैं ये । (बाप - बेटी की बातें सुनकर मिस्टर सिकरवार मुस्कुरा रहे थे । )
तो पाठक जी से ये बात सुनकर मानवी मिस्टर सिकरवार से कहती हैं . . . .
मानवी - वाह अंकल जी .. तब तो आपको बहुत मजा आता होगा वहां पर । है ना ....
तो मिस्टर सिकरवार माने की बातें सुनकर कहते हैं -हां बेटा मजा तो आता है ,पर गांव जैसा मजा कहा आता है वहां ।पता है वहां हमेशा गाड़ियों की भाग -दौड़ लगी रहती है , बहुत शोर भी होता है , चारों तरफ प्रदूषण भी बहुत है वहां , देर रात को सोना और सुबह आठ बजे या नौ बजे उठना ...यही जिंदगी है शहर की ।ना किसी से अपनापन होता है और ना ही कोई अपना कहने वाला होता है वहां ।गांव तो बहुत अच्छा है शहर से ..
ये तो बहुत ही ज्यादा सुंदर स्वच्छ और शांत जगह होता है । यहां सब से सबको अपनापन होता है ,यहां सब अपने ही होते हैं ।
इस बीच पाठक जी मानवी और मिस्टर सिकरवार को बातें करते देखकर , वह अंदर चले गए ।
मतलब वह जानते थे कि यह बात अब कुछ देर चलने वाली है ।कब भाई जहां मानवी हो ... वहां बातें ना हो .. यह तो हो ही नहीं सकता है ।😄😄
इधर मानवी बातों ही बात में मिस्टर सिकरवार से कहती हैं । आपको पता है अंकल जी ।अगर आप गांव के होते ना , तो हम आपको काका कर कर बुलाते ,क्योंकि हमारे यहां तो बाबूजी के दोस्त या उनके उम्र के जो लोग होते हैं ।तो उन्हें काका बोला जाता है । तो मिस्टर सिकरवार उसकी (मानवी की )यह बात सुनकर हंसे और बोले ..कोई बात नहीं बिटिया रानी आप हमें काका कहिए या बाबूजी ।मुझे कोई परेशानी नहीं है ।तो मिस्टर सिकरवार की यह बात सुनकर मानवी हंसते हुए कहते हैं ।
मानवी - नहीं नहीं अंकल जी ही सही है । अगर हम आपको बाबू जी बोलेंगे तो ..हमारे बाबूजी को लगेगा कि हम अब उन्हें अपना बाबूजी नहीं मानते हैं ।अरे बड़ी जलते हैं अगर हम किसी को बाबूजी करते हैं तो ।😄
क्रमशः .........✍🏻