साल 1994-95 में दूरदर्शन ने दो नये धारावाहिक की शुरुआत की थी। एक था शान्ति, जो पहले आने वाले पारिवारिक नाटकों की तरह नहीं था। इसके बाद इसके जैसे और नाटक भी शुरू हुये। जिन्होंने पारिवारिक सम्बन्धों को तोड़ने का काम किया। बच्चों को इन धारावाहिकों से दूर ही रखा जाता था। पहले जब 2 से 3 बजे तक टीवी पर कार्यक्रम आते थे तो उसके बाद मम्मी को धूप में बैठने का समय मिल जाता था पर अब 2 बजे से लगातार 5 बजे तक ये धारावाहिक (शान्ति, जुनून, स्वाभिमान आदि) आते थे। जिससे जड़ों में धूप में बैठने का समय टीवी के सामने बैठकर ही निकल जाता था।
दूसरा कार्यक्रम था "एक से बढ़कर एक" जो हास्य (कॉमेडी) व गानों का काउंट डाउन शो था। इसमें गानों की एक या दो लाईन (मुखड़े) सुनाई जाती थीं। इसके बाद कई गानों के काउंट डाउन कार्यक्रम शुरू हो गए। पर यह रंगोली या चित्रहार की तरह नहीं थे। जो दर्शकों के मनचाहे गाने दिखाए। इसमें कई गाने जबरदस्ती के सुनाए जाते थे। जिन्हें दर्शक सुनना भी पसंद नहीं करते थे। कई बार तो ऐसे गाने सुनाए जाते थे जिनको सुनकर टीवी तोड़ने का मन करता था। इन कार्यक्रमों की सबसे बुरी बात तो यह थी कि यह गानें कई हफ़्तों तक लगातार चलाए जाते थे, जो दर्शकों को पसंद न होने के बाद भी कई-कई बार सुनकर याद हो जाते थे।