समाज का चेहरा दिखाती कहानियों का तानाबाना
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एक बार कुछ लोग कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक दानव आता दिख गया। सब उसे देखकर घबरा गये। डर के म
मई का महीना था। आसमान से मानो आग बरस रही थी। सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था। बाबू लाल जी पेड़ के नीचे खड़े
<div>गाँव के मुखिया (प्रधान जी) पेड़ के नीचे बैठे आम चूस रहे थे। पास में ही उनका प्यारा विलायती कुत्त
दिसंबर का महीना था और शाम का समय था। पड़ोस में वर्मा जी की पत्नी की मृत्यु हो गई थी। उनकी खबर सुनकर क
आज बीस साल बाद में उस शहर में जा रहा था जहाँ मेरा बचपन बीता था। रास्ते भर मुझे अपनी पुरानी बातें याद
आज यहाँ बहुत सारी भीड़ लगी हुई थी। हर कोई अंदर जाना चाह रहा था। पुलिस लाठी फटकार कर लोगों को हटाने की
उनकी दो छोटी-छोटी बच्चियां जिद्द कर रही थी कि मम्मी हम लोहड़ी का गाना गा रहे हैं आप भी संग में गाओ तो
क्रिसमस का दिन था। गुप्ता जी के घर उनसे मिलने कोई मेहमान आये थे। उन्होंने गुप्ता जी को टोका कि ये क्
बेटी ने हाथी दाँत के गहने पहन रखे थे पर माँ ने कहा ये नकली छोड़के सोने के गहने पहन। लड़की ने पूछा माँ इसमें नकली क्या है? माँ ने कहा नकली नहीं है पर सोने की कीमत ज्यादा होती है।<br><div> हाथी की जान की
<div>रमेश ने बड़ी लड़की की शादी की थी। शादी के लिए 20 लाख का कर्ज लिया था। सोचा था लड़के की शादी से खर्च निकाल लेगें पर बहु तेज थी। वो लड़के को लेकर दूसरे शहर में रहने लगी थी। अब रमेश के ऊपर 20 लाख का कर्
पड़ोस में नए किराएदार आये थे। दोनों की शादी हुए तीन या चार महीने ही हुए होंगे। पड़ोस की औरतों को पता चला था कि उनका प्रेम विवाह हुआ है और लडका लड़की से आठ साल बड़ा है। मोहल्ले की सभी औरते इस नव दम्पति के
लोकेश की उम्र 40 साल हो गयी थी पर वो शादी नहीं करना चाहता था। अब रिश्तेदार ही नहीं पड़ोसी भी उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गये थे कि जैसी लड़की मिले वैसी लड़की से ही शादी करले वर्ना कोई अपने घर में भी नहीं बैठाए
शर्मा जी की लड़की की शादी में लगभग एक सप्ताह बचा था पर किसी बात को लेकर लड़के वालों ने शादी तोड़ दी। अब क्या होगा, शादी के सारे कार्ड बट चुके हैं, लोग क्या कहेंगे, समाज में क्या इज्जत रह जायेगी। यही सोच-
पिछले चुनावों में नेताजी फ्री कम्प्यूटर व मासिक भत्ता देने का वायदा करके सत्ता में आये थे। सत्ता में आते ही उन्होंने अपने वायदे पूरे किये। इसके लिए उन्हें और पैसों की आवश्यकता पड़ी। पैसों की जरूरत पूरी
नंदनी यही नाम रखा था बच्चों ने उस गाय का। मोहल्ले में वो कहीं से आ गयी थी। शहर में कच्ची जगह तो होती नहीं है कि वो घास या पत्ते खा सके। तो वह कचरे में से खाना खाकर अपना गुजारा करती थी। कभी-कभी कोई उसे
जनवरी का महीना था, खूब ठण्ड पड़ रही थी। रजाई से निकलने का मन नहीं करता था। ऐसे में रोज उनका दूध वाला 8 बजे दूध देने आ जाता था। मिसेज पूजा झल्लाकर दूध वाले से बोली इतनी ठण्ड में थोड़ी देर से आया कर, क्या
कोरोना कि तीसरी लहर चल रही थी। सरकार सभी नागरिकों से बार-बार कोरोना व्यवहार करने की अपील कर रही थी। लेकिन इस बस में मानक से ज्यादा सवारी थीं। कोई भी शारिरिक दूरी का पालन करता नहीं दिख रहा था। इक्का- द
'अल्लह हू अकबर' ये आवाज थी मौत की। उनकी यह आवाज लगती फिर न जाने कहाँ से हजारों लोग चर्च (जिसे उन्होंने अब अपनी मस्जिद बना लिया था) से निकलने लगते। सभी का एक ही मकसद था हमारी कोम को खत्म कर देना। पर हम
मैं बम्बई की एक फैक्ट्री में काम करता था। तीन चार साल से मैं अपने घर नहीं जा पाया था। इसलिये 10 दिन की छुट्टी लेकर मैं उत्तर प्रदेश जाने वाली गाड़ी में बैठ गया। मैं बहुत खुश था पर मुझे नहीं पता था कि य
उनके यहाँ होली केवल गुलाल से खेली जाती थी लेकिन छोटे छोटे बच्चे जिद कर रहे थे तो उन्होंने एक बाल्टी में रंग घोल दिया। उनकी पड़ोसन होली खेलने उनके यहाँ आई तो बाल्टी में रंग देखकर उनको ड्राई होली व पानी
अफ्रीका का एक छोटा सा देश युगान्डा, यहाँ दो भाई रहते थे डेविड और डेनिस। दोनों भाड़े के सैनिक थे। दोनों कई देशों के लिए लड़ चुके थे। किस्मत से दोनों ऐसे अलग-अलग देशों में सैनिक बन गए जो एक दूसरे के दुश्म
मिसेज अग्रवाल का रो-रोकर बुरा हाल था। वों न कुछ खा रही थीं न कुछ पी रही थीं। बस बेसुध सी थी। कुछ दिन पहले वह मथुरा गई थीं। वहाँ वह अपने लड्डू गोपाल को भी ले गयी थीं। पर कहीं पर उनके बाल गोपाल खो गए।
राजू की मौत से पूरा मोहल्ला स्तब्ध था। एक पागल ने राजू को मार डाला था। राजू की चाची बार-बार कह रही थी कि हम लोगों ने बेकार में तरस खाकर इस पागल को अपने मोहल्ले में रहने दिया। पागल आखिर पागल होता है। प
सुबह 9-10 बजे का समय होगा। ज्यादातर लोगों को ऑफिस या कॉलेज जाने की जल्दी थी। सड़क के किनारे एक लाश पड़ी थी। सब उसे देखकर आगे बढ़ जाते थे। स्कूटर वाले अपनी गाड़ी लाश को बचाकर वहाँ से गुजर रहे थे। किसी को इ
अपनी खिड़की से मैं रोज उस बच्चे को देखता था। गली के उस पार वो रहता था। उसका पिता या तो उसे छोड़कर चला गया था या मर गया था। उसकी माँ ही उसकी देखभाल करती थी। वो एक समर्पित माँ थी। माँ के जाने के बाद वो अप
मिसेज भाटिया के घर के बाहर कोई बहुत सुन्दर गुलदस्ता फेंक गया था। इसके फूल बहुत सुन्दर थे और गुलदस्ता भी बिल्कुल नया था। मिसेज भाटिया का मन तो बहुत कर रहा था कि वह उस गुलदस्ते को उठाकर घर ले आये पर संक
एक कक्षा में पेंसिल, कटर व रबड़ पढ़ते थे। पेंसिल ने एक दिन कटर को प्रेम पत्र लिखकर भेजा लेकिन वो पत्र रबड़ के हाथ लग गया। उसने उसमें लिखा सब मिटा दिया। जब कटर के पास वो पत्र पहुँचा तो कोरा कागज देखकर उसे
दीनानाथ के दो साल के बच्चे को साँप ने काट लिया था। गाँव के सारे लोग मिलकर साँप को लाठी से पीट रहे थे। शायद बच्चे ने साँप की पूँछ पकड़ ली थी या उस पर पैर रख दिया था। जिस कारण साँप ने बच्चे को काट लिया।
कार बाजार में कई पुलिस वाले हर दुकान पर जा जाकर पूछताछ कर रहे थे। वहाँ एक दुकान पर काम करने वाले ने बताया कि कल उसकी बस्ती में भी पुलिस पूछताछ करने आई थी। एक दो लोगों को पुलिस शक के आधार पर पकड़ कर अपन
पूजा की छोटी बहन उसके घर आयी हुई थी। होली के आसपास का समय था इसलिए जीजा साली में कुछ ज्यादा ही मजाक चलते रहते थे। एक दिन पूजा के पति ने उसकी बहन के साथ ऐसा व्यवहार कर दिया जो उसे पसन्द नहीं आया। उसने
दोनों पड़ोसी सरकार को जमकर कोस रहे थे। ये फकीर एक दिन हमको भी कटोरा पकड़वा करके जाएगा। मुझे अपनी दुकान पर काम करने के लिए एक भी नोकर नहीं मिल रहा है। मुझे खुद ही पूरी दुकान सँभालनी पड़ती है। मदन लाल की ब
मैं भौचक्का का जूता हूँ। मुझे याद है वो दिन जब भौचक्का दुकान में मुझे लेने आया था। उसके पैर में पुराने जूते थे जिसमें से उसका पैर का अँगूठा निकल कर बाहर झाँक रहा था। उसने इतने सारे जूतों में से मुझे
पूरी हवेली में चहल-पहल हो रही थी। हवेली को काफी बेहतरीन तरीके से सजाया जा रहा था। मियां हसीन शादी करने जा रहे थे। 80 साल के मियां हसीन की यह 9वीं शादी थी। अभी दो साल पहले ही मियां हंसीन अब्बू बने थे।
रजत ने अपने यहाँ नया किराएदार रखा था। कुछ सालों बाद उस किराएदार ने रजत के मकान पर कब्जा कर लिया। जिससे रजत को अपना मकान होते हुए भी किराए के घर में रहने को मजबूर होना पड़ा। अब रजत का काफी पैसा वकील व क
शेरू गली के सभी बच्चों का चहेता कुत्ता था। मोहल्ले के सभी बच्चे शेरू के साथ आकर खेलते थे। एक दिन शेरू ने किसी बच्चे को काट लिया। कुछ महीनों बाद की बात है शेरू ने फिर से किसी दूसरे बच्चे को काट लिया। प
नन्दी हलवाई की अपनी पुश्तेनी दुकान थी। वो खुद ही मिठाइयाँ बनाकर बेचता था। उसकी कोयले की भट्टी पर चढ्ढे दूध को पीने सारे मोहल्ले के लोग आते थे। नन्दी अपनी छोटी सी दुकान से खुश था और अपने परिवार को अच्छ
छपरी बुआ हमेशा जल्दी में रहती थीं। उनका हर काम उतावलेपन में होता था। बुआ का भतीजा उनके यहाँ आया हुआ था। भतीजे को थोड़ी ही देर में बस पकड़नी थी। सफर लम्बा था, दस घण्टे के सफर में भतीजे को भूख भी लगेगी तो
अरे दबलू ! शेयादान तो तुमको करना पड़ेगा नहीं तो तुम्हारे पिता को मोक्ष कैसे मिलेगा और ये सब तो हमारे पोथी-पुराणों की बातें हैं। तुम अगर ये नहीं करोगे तो तुम्हारे पिता की आत्मा इसी लोक में भटकती रहेगी।
नियति की दादी उसके घर आई हुईं थीं। उनके खाने के लिए आज गोलगप्पों का कार्यक्रम बना था। नियति की मम्मी ने घर में गोलगप्पे बनाये थे। मम्मी गोलगप्पे प्लेट में सजाकर दादी के सामने रख गईं। प्लेट देखकर नियति
प्रिया संतरे खा रही थी। उसके फेंके छिल्कों पर प्रिया के पति का हाथ पड़ गया। ये दृश्य देखकर प्रिया को अपनी छठी कक्षा की बात याद आ गई। वो स्कूल के मैदान में संतरे खा रही थी। उसके थूके संतरे पर एक लड़के का
आखिर मौका देखकर राहुल ने अपने दिल की बात भावना से कह ही दी। राहुल कॉलेज का सबसे हैण्डसम लड़का था। उसके कॉलेज की ही नहीं बल्कि दूसरे कॉलेज की लड़कियाँ भी उस पर मरती थीं। ऊपर से वह अमीर बाप का बेटा था। को
ठीक छोटी दिवाली वाले दिन स्कूटर चोरी हो गया। सिर्फ दो या चार मिनट हुए होगें, कोई पार्किंग में से कालीचरण का स्कूटर चुरा कर ले गया। उदास मन से वो घर पहुंचे तो पता चला कि कोई उनके बेटे के हाथ से उसका फो
मैं गली का पत्थर हूँ। बीस साल पहले कोई मुझे उठाकर गली के किनारे रख गया था ताकि किसी को ठोकर न लग जाये। तब से मैं ऐसे ही पड़ा हूँ एक बेजान वुत की तरह पर पहले ऐसा नहीं था। मैं पूरी गली में घूमता रहता था।
होली का दिन था, किसी ने उस कार पर गुब्बारा फेंक के मारा। गुब्बारा लगते ही वो कार रुक गई। उसमें से बहुत अच्छे कपड़े पहने हुए एक आदमी निकला। जिसने बिल्कुल सफेद कपड़े पहन रखे थे। माथे पर दो-तीन रंग के गुला