मैं कम्प्यूटर पर काम कर रहा था बगल की खिड़की में मेरी किताबें चुनी रहती थीं। उन क़िताबों के बीच में एक छोटी सी चुहिया झाँक रही थी, वो मुझे ही देख रही थी। मैंने हाथ से उसे भगाया तो वह किताबों के बीच में छिप गयी। थोड़ी देर बाद वो फिर झाँकने लगी और मेरे भगाने पर फिर किताबों में छिप गयी। ऐसा कई बार हुआ। अगले दिन में कम्प्यूटर पर बैठा था। वो चुहिया फिर किताबों में से झाँक रही थी। फिर वहीं पहले दिन वाला हिसाब हुआ। अब जब भी मैं कम्प्यूटर पर काम करने बैठता वो चुहिया कहीं से भी किताबों में मेरे संग खेलने आ जाती। अगर थोड़ी देर तक मैं उसको नहीं छूता तो वो मेरी गोद में कूद कर पुनः किताबों में घुस जाती। वो चुहिया कई दिनों तक मेरे संग ऐसे ही खेलने आती रही। मैंने उसका नाम मुस्काजंलि रख दिया था।