जब में चौथी कक्षा में (1990) आ गया तब टॉफियां चबन्नी (25 पैसे) की हो गई थी। उस समय मेलोडी चॉकलेटी अठन्नी (50 पैसे) की मिलती थी। एक बार दीदी (मामा जी की लड़की) ने मैलोडी दिलायी तो बड़ी खुशी हुई क्योंकि यह टॉफी बच्चों के लिए बहुत महँगी थी। उन्होंने चुटकी और क्रेक्स दिलाये। क्रेक्स उस समय 1 रुपये 25 पैसे के आते थे और उसका स्वाद भी आजकल से अलग (थम्स अप जैसा) होता था। हमारे पड़ोस में एक लड़का था वो जेम्स के साथ मिलने वाला खिलौना लाया था। जिसमें एक कागज पर लोहे की कार को नीचे से चुम्बक से चलाना होता था। अब सारे बच्चे उसी के पास चिपके रहते थे।
उसी समय अंकल चिप्स का ऑफर आया था जिसमें एक पॉकेट डायरी और कई स्टिकर निकलते थे। पापा ने बर्थडे पर वही लाकर मुझे दिया था। यह डायरी चार साल तक मेरे पास रही थी। एक बार 1992 में रसना में कागज की लाल व नीली कारे निकली थी। जिन्हें काटकर चिपका कर मारुति 800 का 3डी मॉडल बनता था। मैगी में ग्लाइडर, चाय में दो स्कैच पैन निलकते थे। बच्चो को वो पैकेट जिसमें स्कैच पैन रखकर आते थे बहुत पसंद आता था। मैंगो वाइट अपनी पैकिंग के कारण बच्चों में लोकप्रिय थी।
सबसे पहले 1991 के आसपास स्वाद ने अपनी टॉफी पिलो पैक में निकली थी। इसी समय 10 पैसे का निकिल का छोटा सा सिक्का भी आया था। जो खेलने या इकट्ठा करने के काम ज्यादा आता था। पिलो पैक सब तरफ से पैक होने के कारण बैक्टीरिया आदि से सुरक्षित था। उस समय इस पेैकिंग को खोलना बच्चों के लिए बहुत मुश्किल काम होता था। कई बार टॉफी जमीन पर गिर जाती थी और पन्नी (रेपर) हाथ में रह जाती थी। ये नयी तरह की पैकिंग थी तो बड़ों को भी इसे खोलना नहीं आता था। अंत में कैची से काटकर ही इसे खोला जाता। इसके बाद एक टॉफी निकली थी -पर्सी, जिसके संग (पूरे डिब्बे पर) कभी बहुत बड़ा कार का पोस्टर तो एक बार मोहरा फ़िल्म वाला चश्मा निकला था।