कई बार बच्चे मुझसे पूछते हैं आपका फेवरेट कार्टून कौन सा है? हमारे समय में कार्टून फिल्म केवल रविवार को सुबह आती थी। हमारा समय मोहल्ले में बच्चों के साथ खेलने में और थोड़ा बड़े होने पर कॉमिक्स के संग बीता इसलिए हमारा किसी कार्टून शो से ज्यादा लगाव नहीं रहा जैसा आजकल देखने को मिलता है। हाँ, कॉमिक्स के कई पात्र जरूर हैं जो हमें याद हैं। बच्चों के टीवी कार्यक्रम में छुट्टी-छुट्टी, तरंग, टर्रम टू, लाल बुझक्कड़ चाचा जैसे नाटक अब भी यादों में ताजा हैं। कार्टून फिल्मों में 'एक चिड़िया अनेक चिड़िया','मनमौजी टिड्डा' देखने अच्छे लगते थे। 1990 में एक नाटक आता था 'चौराहा' जो प्रौढ़ लोगों के लिए था पर हम बच्चे केवल इसलिए यह कार्यक्रम देखते थे क्योंकि इसमें एक एनिमेटेड पेंसिल आती थी जो अक्षर लिखना सिखाती थी। ऐसा ही एक और कार्टून शो जो बड़ो के लिए बना था लेकिन बच्चे बड़े चाब से इसे देखते थे ये था 1992 का 'मीना'। इसमें हमें मीना का तोता बहुत अच्छा लगता था। कार्टून बच्चों के लिए क्या होते हैं, कार्टून की बच्चों में क्या दिवानगी होती है, ये इसका उदाहरण है, भले ही वो शो बड़ो के लिए हों। इसके अलावा मोगली (जंगल बुक),टेल स्पिन, डक टेल, अलादीन (अरेबिक नाईट) हैं जो मुझे याद हैं।
1997 की बात है, हम रक्षा बंधन पर मामाजी के घर गये थे। वहाँ मैंने पहली बार रिमोट वाला टीवी (बी पी एल) देखा था। वहाँ उनके बच्चे जो मुझसे 10 साल छोटे थे स्कूवी डू देख रहे थे। वो तीन घण्टे तक कार्टून नेटवर्क पर चुपके रहे। उसके बाद मामीजी ने टीवी बन्द करवा दिया। वहाँ मुझे पता चला कि इस चैनल पर पूरे दिन कार्टून फिल्में आती रहती हैं। तब बच्चे पूरे दिन कार्टून नेटवर्क पर चिपके रहते थे। यहीं से बच्चों में बड़े होने पर भी कार्टून शो (पोपाय, डेक्सटर्स, पॉवर पफ गर्ल आदि) से लगाव भी देखने को मिलने लगा।