2012 के आसपास की बात है, मेरे ममेरे भाई ने मुझसे कहा कि फिल्म देखने चलेंगे। नुमाइश में 4डी थियेटर आया हुआ है। 1998 में एक फिल्म आई थी छोटा जादूगर। तब स्कूल में बच्चे 3डी फिल्म की बात करते थे। वो बताते कि चेतन जब आग के गोले फेंकता है तो ऐसा लगता है जैसे वो गोले पर्दे से बाहर निकल कर अपने ऊपर आ रहे हैं। 3डी तो पता था पर ये 4डी क्या है ? तब मेरे भाई ने नोकिया आशा फोन निकाला (नोकिया आशा शायद भारत के पहले टच स्क्रीन वाले फोन थे जो लोगों ने देखे थे) और यूट्यूब पर 4डी थियेटरों के कुछ वीडियो दिखाये। अब छोटे से शहर में यहाँ केवल चार पिक्चर हॉल थे, उनमें से भी दो ने अपने थियेटर को बंद करने का ऐलान कर दिया था, वहाँ विदेशी स्तर की कोई चीज आये तो जाना तो बनता था।
मेले में एक जगह 4डी फिल्म का बोर्ड लगा था। बाहर स्पाइडरमैन और उसके दोस्तों की किसी फिल्म का पोस्टर लगा था। हम चार लोगों ने 100-100 रुपये की टिकट ली और एक अंधेरे से कमरे में आ गये। वहाँ सामने सफेद कपड़े का पर्दा लगा था। इसे देखकर मुझे पुराने समय की याद आ गई जब नुमाइश में ऐसे ही सफेद पर्दे स्टैंड पर लगाकर प्रोजेक्टर से सरकारी फिल्में दिखाई जाती थीं। इन प्रोजेक्टर से खट-खट की आवाज आती रहती थी। ऐसे ही 1995 में एक बार विदेशी फिल्म दिखाई गई थी।बाद में मुझे उसका नाम पता चला वो टर्मिनेटर 2 थी। थियेटर में घुसते ही हम सबको पहला झटका लग चुका था। ये कोई यूट्यूब पर देखे थियेटर जैसा तो बिल्कुल नहीं था। यहाँ सीट की जगह लकड़ी की पट्टियां/ तख्तियां लगी हुई थीं। हमें उन्हीं पर बैठा दिया गया। उसके बाद हमें कुछ विशेष चश्में दिये गये। जिन्हें पहनना जरूरी था। उसे पहनते ही स्क्रीन पर हल्का अंधेरा सा हो गया। बाद में हमें पता चला था कि वो साधारण वाले धूप के चश्मे थे।
फिल्म चालू कर दी गयी। उसके बाद वहाँ स्टाफ के दो तीन लड़के और आ गये थे हमें 4डी का एहसास कराने के लिए। उन्होंने स्पाइडरमैन की जगह रोलरकोस्टर की (यही नाम बताया था उन्होंने) फिल्म चालू कर दी। फिल्म में कोई खास दृश्य आता तो वो लड़के हमारी लकड़ी की पट्टियों को हिलाने लगते या ऊपर नीचे करते जिन पट्टियों पर हम बैठे थे। फिल्म में कई बार वारिश का दृश्य आया तो हमारे मुँह पर पानी के छीटे पड़े। मैंने देखा तो वहाँ एक लड़का नाई वाली पिचकारी से हमारे मुँह पर पानी डाल रहा था। फिल्म में कई बार कीड़े-मकोड़े या साँप का दृश्य आया जो हमारे पैरों पर होकर जा रहे थे। जब भी ऐसा दृश्य आता मेरे पैरों में गुदगुदी होती जैसे कोई पैरों पर रेंग रहा है। आखिर में एक दृश्य आया था कि कब्र से हड्डी का हाथ निकलता है और आपके पैर पकड़ लेता है। तब सच्च में किसी ने अचानक हमारे पैर पकड़ लिये थे। मैंने देखा तो वो ही लड़के नीचे बैठकर हमारे पैर पकड़ कर डरा रहे थे। तो यह था मेरा पहली 4डी फिल्म का अनुभव।