अप्रैल 2004 में रिलायन्स ने 500 रुपये का फोन निकाला था। इसके बाद रिक्शेवालों के पास भी मोबाइल फोन मिल जाता था। इससे पहले 3310 फोन आता था जो कुछ लोगों पर ही होता था। जुलाई 2004 में पापा ने नोकिया 1100 फोन लिया था।
इन फोनों ने सबसे बड़ा नुकसान sms ने किया था। अब बच्चे क्लास में भी sms टाईप करते रहते थे। लोग मजाक में कहते थे कि अब अंगूठे बोलते हैं। रात ही रात में बाजार sms की किताबों से भर गया था।
कालेज में दोस्त एक दूसरे को sms पढकर सुनाते रहते थे। पर इनमें वो पहले वाली बात नहीं थी, एक बनावटी पन सा लगता था। दिल से सुनाने की जगह फोन से पढ़कर बोलते रहो। इन sms से पहले दोस्त एक दूसरे को या समूह (ग्रुप) में कविता और शायरी सुनाते थे। ये कई बार होती तो एक दम बेकार थी। पर फिर भी सब एक दूसरे की बातें सुनना चाहते थे। इन बातों और हँसी मजाक में कोई अपना-पन सा होता था। कुछ छात्रों पर तो डायरी होती थी जिसमें वो शायरी लिखकर रखते थे। आठवीं कक्षा तक तो वही शायरी चलती थी कि दूर से देखा तो...। पर नवीं में आकर शायरी में थोड़ी गम्भीरता आ जाती थी। पर sms ने यह सब खत्म कर दिया था। बच्चों पर अब समय नहीं होता था कि वे आपस में बैढ़कर बातें करें।