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दौड़

21 अक्टूबर 2021

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दौड़....मैं अपनी जिंदगी में दो बार दौड़ा हूँ। जिन्हें भूलना थोड़ा मुश्किल है। एक बार 1998 में जब हमें दो बजे तक बोर्ड सेन्टर पहुँचना था। हम तीनों दोस्त समय से दौड़ लगा रहे थे। पर शायद यह मेरे लिए मौत से दौड़ थी क्योंकि मुझे साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा था...
दूसरी दौड़ जिंदगी के लिए थी। मुझे यह घटना अच्छे से तो याद नहीं है पर हिस्ट्री चैनल पर 'ग्रेट स्केप' देखते हुए इसकी धुंधली-धुंधुली बाते याद आ गई। तब में पहली या दूसरी कक्षा में था। मैं और मेरा एक दोस्त पतंग लूट रहे थे। पतंग का पीछा करते-करते हम अपने घर से बहुत दूर आ गये थे। वो पतंग एक घर की छत पर गिर गयी। हम उस घर पर पहुंचे। उसका दरवाजा एक बुढ्ढी औरत ने खोला। मेरा दोस्त उनसे बोला दादी हमारी पतंग आपकी छत पर गिर गई है। उस बुढढी औरत ने जीने (सीढ़ियों) की तरफ इशारा कर दिया। हम दोनों सीढ़ियों से ऊपर छत पर पहुंच गये। वहाँ से हमने वो पतंग उठायी और छत से नीचे हॉल में आ गए। पर इस हॉल का दरवाजा किसी ने बाहर से बंद कर दिया था। हमने दरवाजा खटखटाया, आवाजें लगाई पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला। यह बहुत बड़ा सा हॉल था जिसमें दो-तीन खिड़कियां थी। हॉल में हल्का सा अंधेरा था।
कुछ दिन पहले टीवी पर एक फ़िल्म आयी थी। जिसमें दो आदमी दवाई पीकर बच्चे बन जाते हैं। फिर उन दोनों बच्चों को भिखारी पकड़ के ले जाते हैं। और बच्चों के हाथ पैर काटकर उनसे भीख मंगवाते थे। स्कूल में भी मैडम हमें अजनबीयो से बचने के तरीके बताती रहती थीं। हरिद्वार में वैसे भी बहुत सारे भिखारी पाये जाते हैं।
फ़िल्म की बातें सोचकर हम बहुत डर गये थे। अब हमें लग रहा था अगर गैंग के आदमी आ गए तो हमारे हाथ पैर काटकर भीख मंगवायेंगे। अब मेरे दोस्त ने वहाँ से भागने का प्लान बनाया। हम दोनों दुबारा छत पर पहुँच गये। यह तीन मंजिल ऊँचा मकान था। जिसके तीनों तरफ केवल गली थी। यहाँ से नीचे कूदना असंभव था। इस मकान के चौथी तरफ एक मकान था जिसकी छत हमारी छत से एक मंजिल नीचे थी। दोनों मकान आपस में जुड़े थे। उस छत तक जाने का केवल एक ही जरिया था। हमारी छत और इस मकान के बीच में एक छोटी सी गली बनी हुई थी। हमने उस गली से उतरने की सोची। पर जैसे ही उस गली की दीवार को हाथ लगाया करंट का जोर का झटका हमें लगा। पर हमें केवल भिखारियों से अपनी जान बचानी थी। हमने उसी गली से नीचे जाने का फैसला लिया। पहले मेरा दोस्त उस गली में उतरा फिर मैं।
हम पीठ दीवार पर टिका कर और हाथ पैर सामने वाली दीवार पर टिकाकर नीचे उतरने लगे। हमें करंट के झटके मार रहे थे। पर हमें झटके सहकर भी अपने को दीवार से चिपकाये रखना था। अगर थोड़ी सी भी ढील होती तो हम एक मंजिल नीचे छत पर गिरते और हड्डी पसली टूट जाती। पन्द्रह मिनट तक बिजली के झटके खाते हुए हम उस दूसरे मकान की छत पर पहुँच गये थे। वहीं पर नीचे जाने की सीढ़ियां थी। हम सीढ़ियों से नीचे भागते हुए मकान से बाहर आ गये थे।
अब हम आजाद थे। पर हमें घर पहुँचना था और घर का रास्ता मालूम नहीं था। हमारे सामने रेल की पटरियां थी। मेरा दोस्त शायद उस रास्ते को जानता था। वो मुझे पटरी पर एक ओर लेकर चल दिया। पटरी पर चारों तरफ सूनसान व सन्नाटा था। हम दोनों पटरी पर चले जा रहे थे। रास्ते में मुझे एक गुफा दिखी। मेरे दोस्त ने बताया ये भेड़ियों की गुफा है। रात में भेड़िये यहाँ आकर रहते हैं। भेड़ियों की बात सुनकर मैं डर गया पर फिर भी हम आगे बढ़ते रहे। थोड़ी दूर चलने पर पटरी के पास बहुत सारे गिद्ध बैठे थे। ये पटरी से थोड़ी दूर एक मरे जानवर को खा रहे थे। मैंने पहली बार इतने पास से गिद्ध देखे थे। इतने बड़े-बड़े पक्षी कहीं मुझे उड़ाकर न ले जाये यही सोचकर मैं वहाँ से आगे नहीं जाना चाहता था। पर मेरा दोस्त जबरदस्ती खीचकर मुझे वहाँ से आगे ले गया। थोड़ी दूर और चलने पर मुझे अपने घर का पीछे का हिस्सा दिखा। अपना घर पहचानते ही हम दोनों अपने घर की तरफ भागे। घर के पीछे की दीवार फांदकर हम दोनों मेरे घर पर थे।
लगभग 10-12 साल बाद मुझे पता चला कि वह बुढ्ढी औरत सनकी थी और बच्चों से चिढ़ती थी।
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2004 में मुझे pg1 ईयर के लिए ऐसाइंटमेन्ट बनाकर जमा कराना था। इसके लिये मुझे कई किताबें पढ़नी पड़ी। पुस

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साल 1994-95 में दूरदर्शन ने दो नये धारावाहिक की शुरुआत की थी। एक था शान्ति, जो पहले आने वाले पारिवार

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अपने भतीजे के खिलौने देखकर लगा कि 2008 तक यह बाजार कितना बदल गया है। 1997 तक कोई इन खिलोनो के बारे म

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1997 में मैं दिवाली बनाने मौसी के आया था। तब सभी घरों में दिवाली की लगभग एक जैसी सजावट थी। सभी के घर

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1990 में दूरदर्शन पर दोपहर में क्राफ्ट बनाने का कार्यक्रम आता था। इसकी लोकप्रियता का पता इसी से चलता

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Bsnl को छोड़कर सभी फोन कम्पनियों ने अपने रेट बढ़ा दिये। इसी पर चर्चा करते-करते मुझे फोन की पुरानी बातें याद आ गई। 1997 की बात है हमारे घर के पास एक pco खुला। इससे पहले हमें फोन करने के लिए थोड़ी दूर जाना

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22 अप्रैल 2022
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2011 की बात है मेरे एक दोस्त ने मुझे फोन करके साइबर कैफे पर बुलाया। वो काफी टेंशन में था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि 3 दिन से उसके फेसबुक पर कोई कमेंट व लाईक नहीं आया है। 2004 में pg में एसाइनमेंट के

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मैं कम्प्यूटर पर काम कर रहा था बगल की खिड़की में मेरी किताबें चुनी रहती थीं। उन क़िताबों के बीच में एक छोटी सी चुहिया झाँक रही थी, वो मुझे ही देख रही थी। मैंने हाथ से उसे भगाया तो वह किताबों के बीच में

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मेरी बीएड की प्रवेश परीक्षा थी। मेरा सेंटर जी आई सी में पड़ा था। वहाँ में पेपर देने के लिए एक बड़े से हॉल में बैठा था। मेरी बेंच पर दूसरी साईड एक लड़की बैठी थी। पेपर देने के बाद उससे मेरी बात हुई थी। उसन

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मैंने जब होश संभाला तब हमारे घर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था। उस समय कई लोगों पर लकड़ी के शटर वाले टीवी थे। कई लोग टीवी पर प्लास्टिक की रंगीन स्क्रीन लगाकर उसे रंगीन टीवी बना लेते थे। ये स्क्रीन पारदर

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2012 के आसपास की बात है, मेरे ममेरे भाई ने मुझसे कहा कि फिल्म देखने चलेंगे। नुमाइश में 4डी थियेटर आया हुआ है। 1998 में एक फिल्म आई थी छोटा जादूगर। तब स्कूल में बच्चे 3डी फिल्म की बात करते थे। वो बताते

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