हरिद्वार में हमने एक छोटा ताला खरीदा था। लगभग डेढ़ साल बाद उसकी चाभी हरिद्वार में कहीं खो गई। फिर वो ताला हमने उठाकर रख दिया। इसके बाद पापा का ट्रांसफर मथुरा में हो गया। मथुरा में मैं कहीं जा रहा था। रास्ते मे मुझे एक चाभी पड़ी दिखी। यह चाभी देखने में उसी छोटे ताले की चाभी जैसी लग रही थी, जो हरिद्वार में खो गई थी। मैं वो चाभी उठा लाया। घर पर आकर वो ताला ढूंढा। उसमें चाभी लगाकर देखी। थोड़ा सा जोर लगाने पर वो ताला खुल गया और बंद भी हो गया। ये चाभी इस ताले में काम कर गयी थी।
ऐसे इत्तेफाक बहुत ही कम होते हैं और ये मेरे साथ हुआ था। मैंने इस चाभी में एक लाल रंग का पेन्सिल कटर का गुच्छा बनाकर डाल दिया था। इसलिये इसे मोहल्ले के काफी लोग पहचानने लगे थे। ये ताला चाभी कई साल तक हमारे काम आया।