अक्टूबर 1997 की बात है मेरा एक सहपाठी मुझे लेकर अपने किसी मित्र से मिलने गया था। उसके घर पर केवल टीवी लगा हुआ था। यह वही साल था जब डीडी1 कुछ कुछ घण्टो की जगह 24 घंटे आने लगा था। काफी लोगों के घरों में केवल लग चुके थे। और शक्तिमान ने धूम मचा रखी थी। हम उसके घर गये। उसकी मम्मी हमें मैंगो रसना देकर चली गयी। उस समय उसके टीवी पर अक्षय खन्ना और माधुरी दीक्षित की फिल्म चल रही थी। उसने हम दोनों से हमारा हाल चाल पूछा। उसके बाद वो फ़िल्म देखने में लग गया। मेरा सहपाठी उससे बात कर रहा था पर उसके दोस्त का ध्यान टीवी देखने में ज्यादा था। वो हुँ हाँ में जवाब देता फिर फ़िल्म देखने लगता। थोड़ी देर बाद मेरा सहपाठी भी फ़िल्म देखने में व्यस्त हो गया। मुझे ऐसा लग रहा था हम किसी से मिलने नहीं बल्कि फ़िल्म देखने आये हैं। एक-डेढ़ घंटे तक सबका ध्यान केवल फ़िल्म पर ही था। किसी को किसी से कोई मतलब नहीं था। काफी देर तक फ़िल्म देखने के बाद हम उसके घर से चले आये। न कोई बात हुई न मिलना जुलना।
इससे मुझे दो साल पहले की बात याद आ गयी। जब में अपने मित्र सचिन व मनीष के संग उसके किसी दोस्त से मिलने गया था। इस समय (1995) डीडी1 पर समय से कार्यक्रम आया करते थे। अलिफ लैला, चंद्र कांता, श्रीकृष्ण जैसे कार्यक्रम लोग अपने परिवार के साथ बैठकर देखा करते थे।
जब हम उसके घर पहुँचे तो वो अपनी छत पर बैठा था। हम भी छत पर पहुँच गये। वहाँ से हम पूरे शहर को देख रहे थे। छत पर काफी देर तक हम सबकी बातें चलती रहीं। फिर 4 बज गये और अरेबियन नाइट का समय हो गया। हम नीचे आ गये और अलादीन देखने लगे। आधा घंटे बाद नाटक खत्म हो गया। टीवी बंद करके हम फिर से बातों में लग गये। फिर कुछ देर और बैठकर हम अपने घर को चल दिये।
इस मुलाकात के बाद वो लड़का भी मेरा मित्र बन गया था। पर दूसरी मुलाकात में मुझे केवल अक्षय खन्ना ही याद है।