2011 की बात है मेरे एक दोस्त ने मुझे फोन करके साइबर कैफे पर बुलाया। वो काफी टेंशन में था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि 3 दिन से उसके फेसबुक पर कोई कमेंट व लाईक नहीं आया है। 2004 में pg में एसाइनमेंट के लिए मैने ब्लॉग बनाया था इसलिए वो मुझसे कुछ सुझाव चाहता था। मैंने fb का नाम सुना था पर देख पहली बार रहा था। लोगों ने fb पर अपने खाने की थाली तक के फोटो डाल रखे थे। उस समय मल्टीमीडिया फोन (2MP कैमरा वाले) ही चलते थे।जिन लोगों पर थोड़ा पैसा होता था वो डिजिटल कैमरा रखते थे। लोग अपना फोन या कैमरा साइबर कैफे पर लाकर उससे फोटो अपडेट करते थे। उसने जुलाई 2013 में एंड्रॉइड फोन (माइक्रो मैक्स) लिया था। यह टच स्क्रीन वाला फोन था। इससे पहले बहुत ही कम लोगों पर टच फोन (जैसे सैमसंग कोरबी) होते थे। उसे यह फोन ढंग से चलाना नहीं आता था। मुझे भी इसके बटनों का (फोन के नीचे तीन की) ज्ञान नहीं था। वो उस फोन पर मुझे एक सॉफ्टवेयर दिखा रहा था। जिस पर sms व mms एक साथ भेज सकते थे और इन्हे भेजने पर पैसे भी नहीं कटते थे। ये सॉफ्टवेयर 'वाट्स एप' था। उस समय लोग मान रहे थे कि वाट्स एप फेसबुक को खत्म कर देगा। बाद में मैने एक फीचर फोन (की पेड) खरीदा था जिसमे फेसबुक की (बटन) व वाट्स एप था। लेकिन फोन पर वाट्स एप कभी चला नहीं।
अगस्त 2018 की बात है। हमारे पड़ोस में 10वीं के दो बच्चे ऊट पटांग हरकते कर रहे थे। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि वो टिक टॉम बना रहे हैं। मैने जब पूछा ये टिक टॉक क्या है तो वो मुझे ही पागल समझने लगे कि आपको टिक टॉक नहीं मालूम। उनके समझाने के बाद मैने भी टिक टॉक पर कई महीने पागलों वाली हरकतें की थीं।
2004 में मैने कुछ दिन ब्लॉग पर आर्टिकल डाले थे। ब्लॉग की आजकल के सोशल मीडिया की तरह दिवानगी नहीं होती थी। उस पर न लाईक, कमेंट होते थे, न व्यू का पता चल पाता था कि कितने लाख लोगों ने ब्लॉग देखा है। सोशल मीडिया की जगह sms की दीवानगी जरूर थी क्योंकि मोबाईल के आते ही रातों रात पूरे बाजार में बहुत सारी sms की किताबें आ गई थी।