थोड़ा बड़े होने पर लूडो, कैरम आ गई थी। कोई-कोई शतरंज या व्यापार खरीद कर लेता था। यह भी अब की तरह मंहगे नहीं बल्कि सस्ते होते थे। इनके साथ मिलने वाले नोट व टिकट खुद ही काटकर गत्ते पर चिपकने पड़ते थे। चूरन वाले खिलौने अब एक या दो रुपये में मिल जाते हैं। चाबी वाले खिलौने 20-30 रुपये में फिर भी लोग अब 100-200 रुपये बच्चों पर आराम से खर्च करने लगे हैं। कोई-कोई तो 2000 रुपये तक के मंहगे खिलौने भी बच्चों को दिला देते हैं।
कुछ दिन पहले भतीजे का जन्मदिन था। तो मेरे भाई(कजन) ने उसे व्यापार देने की सोची। वही वाला जिससे हम बचपन में खेलते थे,कागज वाला। इसके बाद हम पूरे शहर में घूम आये पर वह पुराना वाला व्यापार नहीं मिला, प्लास्टिक के नोट वाले मिल रहे थे। इनकी शुरुआत 100 रुपये से हो रही थी।
हमारे समय में जन्मदिन पर लोग पार्ले जी बिस्कुट, पेन्सिल, स्केल, कॉपी ऐसी ही छोटी-मोटी चीजें देते थे। पर अब बर्थडे गिफ्ट के नाम पर 100 रुपये से कम का कोई सामान नहीं मिलता। अब तो गली-गली में गिफ्ट सेंटर खुल गये हैं। पहले पुस्तक विक्रेता ( बुक सेलर) ही खिलौने या गिफ्ट आईटम रखते थे। एक-आध दुकानदारों पर भी खिलौने आदि मिल जाते थे। पर जन्मदिन के समान की खरीदारी बुक सेलर से ही होती थी। पहले जन्मदिन में जाना जरूरी होता था उपहार चाहे जो भी दे दो। अब उपहार ज्यादा जरूरी होता है लेने वाला भी यही देखता है कि आप क्या दे रहे हैं। कई बार महँगे गिफ्ट देने के चक्कर में पार्टी में जाना भी कैंसिल कर दिया जाता है।