1997 में मैं दिवाली बनाने मौसी के आया था। तब सभी घरों में दिवाली की लगभग एक जैसी सजावट थी। सभी के घर पर एक जैसे मिट्टी के दीये जल रहे थे। तब बाजार में एक ही तरह के मिट्टी के दीये मिलते थे। घरों पर परम्परागत बॉस और रंगीन पन्नी की कंडिलै लगी थी। कई लोगों ने पतंगी कागज से समान बनाकर घर की सजावट कर रखी थी। बाजार में आज की तरह ज्यादा वैरायटी के पटाख़े भी नहीं मिलते थे।
पर आज 2017 में नजारा बिल्कुल अलग था। यहाँ दिवाली का नहीं बल्कि किसी प्रतियोगिता का सा माहौल लग रहा था। हर कोई अपने आपको दूसरे से बेहतर दिखाना चाह रहा था। चाहे वो घर की सजावट हो, मिठाई हो या पटाखे। लड़कियाँ-औरतें महँगे-महँगे रंगों से रेडीमेट आइटमों (स्टेंसिल, जाली, पेन आदि) के द्वारा रंगोली बना रहीं थी। उनका ध्यान रंगोली बनाने में कम और पड़ोसी से अच्छी रंगोली बनाने में ज्यादा था। घर के बाहर भी लोग एक से अच्छे एक डिजाइनर मिट्टी के दिये लगा रहे थे। पूरे मोहल्ले में मुझे सिर्फ एक ही घर पर वो पुराने जमाने के सादा वाले मिट्टी के दिये दिखे। शाम को पटाखे जलाने में भी कम्प्टीशन था। सब ज्यादा से ज्यादा पटाखे चलाना चाह रहे थे।