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संगीत का शौक

13 अक्टूबर 2022

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90s में हमारे पास गानों के लिए दो ही विकल्प थे, गाने देखने हो तो चित्रहार और गाने सुनने के लिए कैसेट। चित्रहार के अलावा गाने देखने के लिए कुछ लोग अपने घर में किराए पर vcr या vcp लाया करते थे। इसके बाद तो वो घर पूरे मोहल्ले के बच्चों का होता था। सब उसी घर में पहुंच जाते थे।
ज्यादातर कैसेट में आपकी पसंद के दो-चार गाने ही होते थे। उन्हें सुनने के लिए कैसेट को बार-बार रिवाइंड या फॉरवर्ड करना पड़ता था। यह भी कला थी, नहीं तो कई बार रिवाइंड करके देखना पड़ता था कि जो गाना सुनना है वो कहाँ है। 1998 में मेरा दोस्त मुझे एक दुकान पर ले गया। वहाँ 2 रुपये में एक गाना कैसेट में भरा जाता था। उसने पहले ही एक पर्ची पर मुझसे मेरी पसंद के 10-12 गाने लिखवा लिये थे। 25 रुपये की ब्लेंक कैसेट लेकर उस पर गाने भर दिये गये। ये उस समय बहुत बड़ी बात थी। ये सब गैर कानूनी था फिर भी धीरे-धीरे शहर में ऐसी कई और दुकानें खुल गई थीं। सन 2000 में एक शादी में मैंने एक विदेशी गाना सुना था जिसका नाम था 'ब्राजील'। ये गाना कैसेट में भरवाने के लिए मैंने कई दिनों तक शहर की बहुत सारी दुकानों के चक्कर लगाये लेकिन किसी पर भी यह गाना नहीं मिला। फिर दूसरे शहर में मेरे ममेरे भाई ने यह गाना भरवाकर कैसेट दिया। इसी समय विदेशी गानों (वेंगा बॉय, बार्वि गर्ल आदि) के लोकल कैसेट भी आने लगे थे। जिनका हरा या गुलाबी फ्लॉरसेंट रंग का कवर होता था। इनके कवर पर फोटो की जगह उस कैसेट के गाने छपे(लिखे) होते थे। ये गाने जब डेक में बॉक्स (स्पीकर) लगाकर बजते थे तो वो मजा आज dj पर भी नहीं आता।
2004 के आसपास बाजार में C D आ गई थी जिसमें लगभग 100 गाने हुआ करते थे और दो C D में एक फिल्म आती थी। CD आने के बाद VCR किराये पर देने वालों की दुकानें बंद हो गई थी। 2005 की बात है मेरी क्लास में एक लड़का फोन लाया था जिसमें mp4 था। उसके पास बहुत सारी भीड़ लग गई कि उसके फोन में चित्रहार चल रहा है। तब ज्यादातर के पास नोकिया 1100 फोन ही होता था। मेरे एक रिश्तेदार के पास CD प्लेयर और mp3 प्लेयर था। उस में 128 MB का मेमोरी कार्ड था (अब तो GB में आते हैं) जिसमें 50 गाने आ जाते थे। मुझे उसमें एक बटन बहुत अच्छा लगा जिसे दबाकर 10 गाने एक साथ फॉरवर्ड या बेकवर्ड किये जा सकते थे। मेमोरी कार्ड की क्षमता बढ़ने के साथ-साथ यह विकल्प व्यवहारिक नहीं रह गया था।
2009 के आसपास की बात है मैं बस में सफर कर रहा था। वहाँ ज्यादातर लोगों के कान में ईयर फोन लगे थे। ये कमाल था मल्टीमीडिया फोन का। जिसने अब गाना सुनने का काम घर के बाहर ला दिया था। इससे पहले सालों में कोई एक आध व्यक्ति ही वॉकमैन या mp3 प्लेयर पर गाने सुनता हुआ दिखता था। चाइना के मल्टीमीडिया फोन आने के बाद तो बसों आदि में नुमाइश जैसा हाल दिखने लगा था। कई-कई गाने एक साथ बस में बज रहे होते थे।
CD के कुछ ही सालों बाद डीवीडी बाजार में आ गयी थीं। इसमें तो इतने गाने एक ही डिस्क में होते थे जितने हमारे घर की सारी कैसेटों में होते होगें। 25 रुपये की एक ही डिस्क में 5-6 फिल्में होती थीं, वहीं पहले 2 CD में एक फ़िल्म आती थी। बाजार में हर तरफ डीवीडी के पैकेट (पन्नी की पैकिंग) लटके हुए दिखने लगे थे। यह दौर 8-10 साल चला होगा। इसके बाद 4G फोनों ने सब बदल कर रख दिया।
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1997 में (11वी क्लास में) मैंने पहली बार इलेक्ट्रॉनिक टाइप राइडर देखी थी। हमारे घर पर सादा टाइप राइड

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जून 1999 तक मैने 2डी वीडियो गेम खेले थे। जिसमें मारियो, कॉनट्रा आदि चलते थे। स्ट्रीट फाइटर, फाइनल फा

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<div>मेरा छोटा भाई (कजन) एक खिलौना लेकर आया था। इसमे एक या दो गानों के बोल (मुखड़े) बजते थे। मेरे पास

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2004 में मुझे pg1 ईयर के लिए ऐसाइंटमेन्ट बनाकर जमा कराना था। इसके लिये मुझे कई किताबें पढ़नी पड़ी। पुस

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1998 के आप-पास कोडेक ने 850 रुपये का कैमरा निकाला था। इसके बाद लोगों ने घरों में फोटो खींचने शुरू क

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साल 1994-95 में दूरदर्शन ने दो नये धारावाहिक की शुरुआत की थी। एक था शान्ति, जो पहले आने वाले पारिवार

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अक्टूबर 1997 की बात है मेरा एक सहपाठी मुझे लेकर अपने किसी मित्र से मिलने गया था। उसके घर पर केवल टीव

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जुलाई 1997 में पाप की ड्यूटी कुंभ मेले में लगने के कारण हम लोग हरिद्वार आ गये थे। पापा का हरिद्वार म

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अपने भतीजे के खिलौने देखकर लगा कि 2008 तक यह बाजार कितना बदल गया है। 1997 तक कोई इन खिलोनो के बारे म

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1997 में मैं दिवाली बनाने मौसी के आया था। तब सभी घरों में दिवाली की लगभग एक जैसी सजावट थी। सभी के घर

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1990 में दूरदर्शन पर दोपहर में क्राफ्ट बनाने का कार्यक्रम आता था। इसकी लोकप्रियता का पता इसी से चलता

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Bsnl को छोड़कर सभी फोन कम्पनियों ने अपने रेट बढ़ा दिये। इसी पर चर्चा करते-करते मुझे फोन की पुरानी बातें याद आ गई। 1997 की बात है हमारे घर के पास एक pco खुला। इससे पहले हमें फोन करने के लिए थोड़ी दूर जाना

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मैं कम्प्यूटर पर काम कर रहा था बगल की खिड़की में मेरी किताबें चुनी रहती थीं। उन क़िताबों के बीच में एक छोटी सी चुहिया झाँक रही थी, वो मुझे ही देख रही थी। मैंने हाथ से उसे भगाया तो वह किताबों के बीच में

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मामा जी की जान पहचान में किसी की शादी थी। मेरा मामा जी का लड़का मुझे जबरदस्ती उस शादी में ले गया। हम दोनों बाईक से वहाँ पहुँचे। वहाँ पहुंच कर थोड़ी देर बाद हम दोनों उस शादी में खाने के मजे लूट रहे थे। म

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मेरी बीएड की प्रवेश परीक्षा थी। मेरा सेंटर जी आई सी में पड़ा था। वहाँ में पेपर देने के लिए एक बड़े से हॉल में बैठा था। मेरी बेंच पर दूसरी साईड एक लड़की बैठी थी। पेपर देने के बाद उससे मेरी बात हुई थी। उसन

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मैंने जब होश संभाला तब हमारे घर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था। उस समय कई लोगों पर लकड़ी के शटर वाले टीवी थे। कई लोग टीवी पर प्लास्टिक की रंगीन स्क्रीन लगाकर उसे रंगीन टीवी बना लेते थे। ये स्क्रीन पारदर

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संगीत का शौक

13 अक्टूबर 2022
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3D एनिमेशन का सफर

24 अक्टूबर 2022
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2019 की बात है, मेरा भतीजा मुझे गेम खेलने के लिए दुकान पर ले गया। मैं कई सालों बाद वीडियो गेम पार्लर पर गया था। इससे पहले मैं अपने मामा जी के बच्चों के साथ जाता था जो वहाँ 'टेकन3' खेलते थे। इस दुकान प

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20 फरवरी 2023
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2012 के आसपास की बात है, मेरे ममेरे भाई ने मुझसे कहा कि फिल्म देखने चलेंगे। नुमाइश में 4डी थियेटर आया हुआ है। 1998 में एक फिल्म आई थी छोटा जादूगर। तब स्कूल में बच्चे 3डी फिल्म की बात करते थे। वो बताते

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