मैं ऋषिकुल पर खड़े होकर किसी टेम्पू का इंतजार करने लगा। मेले के कारण बसों का शहर में आना पहले ही बंद था। मुझे गुरुकुल कांगड़ी पर जाकर रुड़की की बस पकड़नी थी पर एक घंटा इंतजार करने पर भी कोई वाहन जाने को तैयार न हुआ।
निराश होकर मैं बोर्ड के पेपर छोड़कर घर की तरफ चल दिया। रास्ते में मुझे मेरे दोस्त आनन्द और जोगेन्दर स्कूटर पर आते दिखाई दिये। और उन्होंने मुझे भी अपने संग स्कूटर पर बिठा लिया। क्योंकि अपर रोड़ व सभी मुख्य मार्गो पर पुलिस की चेकिंग चल रही थी। इसलिये हम जंगल से होते हुए BHEL वाले रास्ते से बहादराबाद की ओर चल दिये। रास्ते मे सेक्टर पांच तक यहाँ भी एक दो जगह पुलिस की चेकिंग चल रही थी। एक तो स्कूटर पर तीन लोग ऊपर से 18 साल से कम, हम चेकिंग देखकर घबरा गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे कोई चोरी करके आये हो या जेल तोड़कर भाग रहे हो। आनन्द ने मुझे और जोगिन्दर को स्कूटर से उतरकर चौराहा पार करने को कहा। क्योंकि पेपर शुरू होने में ज्यादा समय नहीं बचा था इसलिये वो चार-पाँच मिनट पैदल चलना भी बहुत लंबा लग रहा था। मन में चल रहा था कि किसी तरह चेकिंग से पीछा छूटे। हमें दो या तीन जगह चेकिंग मिली। इसके बाद हम सेक्टर पांच को छोड़कर हरिद्वार से बाहर आ चुके थे। हम तीनों को बड़ी खुशी हो रही थी। हम तीनों खुशी के मारे चिल्ला उठे, चलो शहर से बाहर तो आये। पर हमारी खुशी ज्यादा देर नहीं चली। रास्ते में हमारे स्कूटर का टायर पंचर हो गया। अब हम तीनों स्कूटर को धक्का मारकर ले जा रहे थे। और मेरे मन में चल रहा था कि आज हम भौतिक विज्ञान का पहला पेपर नहीं दे पायेगे। रास्ते में जोगेन्दर एक पंचर वाले की दुकान जानता था। हम तीनों उसके पास स्कूटर को छोड़ आये। अब हमें फिर से मुख्य सड़क पर आना था। हमने दुकान से भागना चालू किया और मेन रोड़ पर आकर ही रुके। अब हमें कोई रुड़की या बहादराबाद जाने वाली बस पकड़नी थी। हम सड़क पर भाग रहे थे और बसों को रोकने के लिए ईशारा कर रहे थे। हमारे सामने से दो बसे निकल गयी और दोनों बसें नहीं रुकी। फिर एक तीसरी बस आती हुई दिखी। हम तीनों सड़क के बीचों-बीच रास्ता रोककर खड़े हो गए। बस मन में यही चल रहा था चाहे ये बस रोके या हमें रौंदकर निकल जाए। बस कैसे भी हमें सेन्टर तक पहुंचना था। बस वाले ने बस रोकी और हम तीनों बस में चढ़ गए। उसके बाद हम बहादराबाद पर उतरे। वहां से हमारा सेन्टर पांच किलोमीटर अंदर रोहलकी में पडा था। सेंटर हम पहले ही साइकिल से देख आये थे। इसलिए हमें मालूम था कि इतने कम समय में 2 बजे तक वहाँ तक पहुँचना असम्भव है। बस से उतरते ही हमने भागना शुरू कर दिया। थोड़ी देर भागने के बाद हमारी सांस फूलने लगी थी। और भगना मुश्किल पड़ रहा था पर हमें भगना ही था। अब मेरे लिए और ज्यादा देर भागना बस का नहीं था। मैं सोच रहा था आज का पेपर छोड़ देता हूँ। तभी वहाँ रास्ते में स्कूटर पर सामने से आते दो आदमियों ने हमें रोका। और पूछा भाग क्यों रहे हो ? हमने बताया कि दो बजे तक हमें सेन्टर पर पहुँचना है। दोनों स्कूटर वाले हम तीनों को अपने स्कूटर पर बैठाकर सेन्टर की ओर ले गये।
उस समय ऐसा लग रहा था जैसे भगवान ने किन्हीं फरिश्तों को हमारी मदद के लिए भेजा हो। जब सेन्टर पर पहुंचे तो ढाई बज गया था। हमें अन्दर आने से मनाकर दिया गया कि पेपर तो आधा घंटा पहले ही शुरू हो गया है। फिर उन दोनों आदमियों ने हमारी मदद की और सेन्टर के शिक्षकों से बात करके हमें परीक्षा देने के लिए तैयार कर लिया। थकान के कारण मुझे कमरे में बैठकर कुछ देर तक पेपर देना मुश्किल पड़ा। फिर पूरा पेपर देकर शाम को किसी तरह दोस्तों से लिफ्ट लेकर घर पहुंचे।