हमें कहीं आस पास के क्षेत्रों में बात करनी हो तो पहले वहाँ का std कोड लगाना होता था। जिससे std कॉल चालू हो जाती थी और ज्यादा बिल आता था। उसने कई क्षेत्रों के std कोड की जगह दो नम्बर के कोड बताए जिससे लोकल कॉल होती थी। जैसे std कोड 0641 की जगह 97 लगाकर डायल करो तो लोकल कॉल लगती। फिर एक नियम आया था कि डायल करने से पहले दो लगाए। जिस पर चुटकुले भी बने थे कि ग्राहक दुकानदार के दो चांटे लगा देता है। उस समय दो रुपये में 60 सेकेंड तक बात होती थी (लोकल कॉल)। जब मम्मी या पापा pco पर बात करने जाते तो हमारा काम केवल वहाँ लगे मीटर पर ध्यान रखने का होता। और जैसे ही मीटर में 59 सेकेंड होते मैं फोन काट देता। पर कई बार कॉल काटने में देर हो जाती और मशीन से काजल के रोल पर बिल छपकर आता तो उसमें 4 रुपये लिखा होता था। फिर मैंने 58 सेकेण्ड या 118 सेकेण्ड पर ही फोन काटना शुरू कर दिया था।
2003 या 2004 में सिक्के वाले लाल रंग के फोन आ गए थे। जिसमें एक रुपये का सिक्का डालकर एक मिनट बात होती थी। इस फोन में 2 रुपये का सिक्का डालो तो वो फोन के नीचे से स्लॉट से बाहर आ जाता था। पहले एक दरवाजे जैसा कवर आता था जिसे डॉट फोन पर लगाकर की पेड पर असली ताला लगा दिया जाता था।
2004 में रिलायंस ने 500 रुपये का सेलफोन निकाला था। जिसके बाद लगभग हर किसी के पास मोबाइल आ गये थे। मोबाइल पे बात करने पर सेकेंड के हिसाब से पैसा कटता था जो डॉट फोन से सस्ता पड़ता था। 9 रुपये का रिचार्ज कराने पर sms भी फ्री हो जाते थे। वर्ना sms भेजने पर एक रुपया कट जाता था। रिचार्ज या टॉपअप करने के लिए विजिटिंग कार्ड जितना कार्ड आता था। जिस पर सिल्वर कलर की पट्टी को सिक्के या नाखून से खुरचना पड़ता था। जिससे कोड दिखाई देने लगता था। शुरू-शुरू में कई लोग मोबाइल को कॉर्डलेस फोन समझ लेते थे। तब GSM व CDMA मोबाइल फोन सेट आते थे। फिर डॉट फोन में भी डिस्प्ले आ गया था।