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रोजमर्रा

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मां शारदेदोहा वीणापाणी अज्ञान हरो,दो ज्ञान वरदान।धवलवश्त्र सुवासनी,हर लो सभी विकार ।।ज्ञान सुधा से उर भरो,लेखनी बसो आप।शब्द सृजन के शब्दो ,से करू निरंतर जाप।।श्वेतांबरी जगदंबा ,शुक्लवर्णा स्वरूप

हैलो सखी।कैसी हो।मै अच्छी हूं  कल समूह मे अच्छी खासी खींच तान हुई।हमारी दिया जी परेशान है कि उन्हें सार्टिफिकेट नही मिले।हमने तो उन को बहुत बार कहा कि आप धैर्य रखे ।सब ठीक हो जाएगा।दूसरा हमारे बड

13/6/22प्रिय डायरी,                  आज शब्द.इन पर समय और शब्द पर कविता लिखी।कहते समय सही चल रहा हो तो सब ठीक रहता और समय ठीक न हो तो कुछ भी ठीक नहीं रहता

गरीबी) .....गरीबी दर-दर भटकती रही।      कभी यहाँ, कभी वहाँ,.....उम्मीदों की ख्वाहिश में, बाहर निकलने की जिद में, खुद से लड़ती रही।......गरीबी दर-दर भटकती रही।कही आपनो की ठोकरे खाकर,

भीषण गर्मी में जब आसमान से बादल उमड़-घुमड़ कर बरसने लगते हैं, तब बरसती बूंदों की तरह ही मन भी ख़ुशी के मारे उछल पड़ता है। कल शाम को पहली बार जैसे ही बादलों से कुछ बूँदें जमीन पर आकर गिरी तो प्रकृति में एक

12/6/22प्रिय डायरी,                 आज सुबह ही मैंने शब्द.इन पर सुनहरी सुबह पर कविता लिखी।       कविताओं के माध्यम से दैनिक जीवन में भी

प्रकृति).... पानी की बौछारो से सबकी प्यास बुझाई,.....बारिश में चारों और हरियाली लाई,.....ठंड में शांति दिलाई,.....गर्मी में फसल कटाई,....इस तरह मानव की लाज बचाई।         

प्रिय सखी। कैसी हो।    हम आज थोड़ा ठीक हुए है ।नही तो हमारा मन ही उठ गया था लेखन से ।हम लेखन को एक पवित्र और सबसे अच्छा मंच मानते है।औरत हमेशा से ही कितना स्वतंत्र होने का दंभ भरे लेकिन वो क

ऐ दिले नादां                  तुम हमेशा खुश रहना!आरजू थी हमारी कि हम अपने तरफ़ से अपनी नाकामयाबियों की बातें ना करेंगे।खुश रहेंगे इतना कि गम की परछाई भी हम

11/6/22प्रिय डायरी,                 आज मैंने शब्द.इन पर कविता शीर्षक पर कविता लिखी। यूं तो कविता लिखना पहले कठिन लगता था किन्तु अब धीरे- धीरे लिखने लगी हूं

रोज़ बढ़ रही हिंसा,  ये बढ़ती नाइंसाफी, दोषी बचकर घूम रहे निर्दोष मर रहे काफी,  कब  होगी बंद ये प्यास खून की, कब जाने ये अंधे जानेंगे कीमत खून की,  क्या होगा इस देश का, अन्धकार नज़र आता है, दुश्मन का

ओज़ोन परत का क्षरण हो रहा,कार्बन के उत्सर्जन से,अब इसे न बढ़ने देंगे,ऑक्सीजन के उत्पादन से।ऑक्सीजन का उत्पादन होगा,जमकर पेड़ लगाने से,देख-भाल करनी है उनकी,पशुओं के खा जाने से।पेड़ सिर्फ है नहीं लगाना,एक स

सुनो जी क्यों न किराए का एक कमरा लेलें माँ-पिताजी को सुबह-शाम खाना तुम दे आया करना। हम भी खुश वे भी खुश। दोनों की चिक चिक खत्म हो जाएगी, न वे हमें देखेंगे और नही हुकुम चलाएंगे, नीला पानी दे दे, नीला छ

*सदा दुआएं दीजिए। दुआएं लीजिए। दुर्वासा बनना हमारा काम नहीं।*  *शक्तियां स्थिर होती हैं। उन्हें दिशा हम देते हैं।*     पवित्र जीवन में रहते हुए हम ज्ञान हम ज्ञान और योग के मार

हैलो सखी।  कैसी हो।अब क्या कहे जितना कल हम खुश थे उतने ही आज उदास है ।कारण नही पूछोगी। बहुत से लोगों से हमारी खुशी देखी नही जाती है।तभी तो हम वुमनस डे नही मनाते। यहां एक महिला की उन्नति पुरुष समा

हैलो सखी।कैसी हो ।हम खुश भी है और पुलकित भी।हमारे दो दो इनाम आये है ।आज शब्द टीम ने पुस्तक लेखन प्रतियोगिता और डायरी लेखन प्रतियोगिता का रिजल्ट घोषित किया है। दोनों मे हमने स्थान पाया है।जब तक परिणाम

आज सुबह उठते ही पतिदेव ने मुझे मिनिरल बॉटल को काटकर उसमें लगाए तुलसी के पौधे को मेरे जन्मदिन का उपहार कहकर दिया तो मैंने उनसे कहा कि लोग अपनी पत्नी को उसके जन्मदिन पर महँगे से महँगा उपहार देते हैं और

7 जून 2022  मंगलवार समय 11:05 रातमेरी प्यारी सहेली,               कई बार ना चाहते हुए भी हम ऐसी अनेकों बातों पर मौन रह जाते हैं जिन बातों के लिए हमारा

वैंपायर, यानि रक्त पिपासू,  डरावनी इनकी,स्टोरी धासू। क्या ये सच मे ,ही मौजूद है, सबूत  तो है ,फिर ,, क्यू शक मौजूद  है ? आप कहोगे सबूत  दिखाए,  तो चलिए  ,कविता मे आए। वैंपायर  हर शख्स है वो

हैलो सखी। कैसी हो ।मै बस ठीक ही हूं ।कल भतीजे ने जन्मदिन की विडियोज बनाई थी वो भेजी है ।मन खुश हो गया सब को नाचते गाते देखकर।सब खुश थे।भजन गाये जा रहे थे।फिर केक काटा गया सबने शगुन का टीका किया।ब

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