कोई ऐसा शब्द जो मन को पुरा झगझोर देता है लेकिन सच को झुटलाया नही जा सकता है। ऐसा ही एक शब्द एक बच्ची अपनी मां से अंधेरी रात के करीब दस बजे किया जब उनकी मां का आंख लग रहा था और ईशा खेलने के मुंड मे थी।तभी ईशा के मुख से एक सवाल निकला जो सुन कर उसकी मां
नारी से ही है ये संसार , नारी कर सकती है दुष्टों का संहार , नारी असहाय नहीं है बिलकुल , नारी से ही बढ़ता है कुल । कुछ लोग कहते है की , इन नारियों का नहीं है कोई घर , लेकिन नारियों के बिना भी , कोई घर , घर नहीं । एक बेटी , बहु , पत्नी , मां ,
"कुसुमदी ", इंगित करती है एक ऐसी महिला की कहानी जो,करुणामयी हैं, ममतामयी हैं, वसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओतप्रोत हैं । जो मनुष्य मात्र के लिए संभाव रखेती हैं । "कुसुमदी" का हृदय बहुत ही विशाल है। आज वो धरा से दूर अंबर पर कहीं हैं पर हम सभी के दिल
यह कहानी एक ऐसी औरत पर आधारित है, जिसे बचपन से ही लाल सुर्ख मांग अच्छी लगती थी, उसे मांग भरने का इतना शौंक था कि मांग भरने के मायने ना जानते हुए वो बचपन में खेल-खेल में मांग भरा करती थी, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
इक्कीसवीं सदी में भी कुछ नारियों के लिए कुछ भी नहीं बदला। बेशक कुछ महिलाओं के जीवन में परिवर्तन आया है, पर आज भी कुछ मर्दों के दिमाग में पितृसत्तात्मक वाली सोच पल रही है, जिसका खामियाजा कुछ स्त्रियाँ भुगत रही है। मेरी यह किताब उन्हीं महिलाओं को समर्प
मैं तो अपनी कहानियों को एक आईना समझती हूँ , जिसमे समाज अपने आप को देख सके | मैं सोसाइटी की चोली क्या उतारूंगी जो पहले से ही नंगी है| उसे कपड़े पहनना मेरा काम नही है मैं काली तख़्ती पर सफेद चॉक इस्तेमाल करती हूँ ताकि काली तख़्ती और नुमाया हो जाए
उत्तरा : एक खंडकाव्य उत्तरा विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत का एक उपेक्षित स्त्री पात्र है l इस खंडकाव्य में उसके जीवन चरित्र के संबंध में कुछ उपेक्षित तत्वों को उकेरा गया है l उत्तरा महापराक्रमी अर्जुन की शिष्या के रूप में प्रस्तुत की गई l किन्तु
सामाजिक परिवेश और उसमें घटित घटनाओं और माहौल को इस किताब के माध्यम से आपके समक्ष लाने का लघु प्रयास किया हूँ।
औरत जीवन-भर दूसरों की खुशियों और ख्वाहिशों को पूरा करने में लगी रहती है इस चाहत में की उसकी ख्वाहिशें भी शाय़द पूरी हो जाए पर ऐसा होता नहीं है हक़ीक़त तो यह है औरत की ख्वाहिशें कभी पूरी नहीं होती वह जीवन के अंतिम क्षण तक अधूरी ही रहतीं हैं औरत के इसी
एक लड़की, जो बचपन में जिस लड़के के साथ खेलते बड़ी हुई और अपनी मोहब्बत का इज़हार करने से पहले ही उस लड़के के अचानक चले जाने के बाद उसकी तलाश में उसके जैसी समानताओं वाले मर्दों द्वारा बार-बार छली गई। उसकी इस तलाश भरी भटकन की कहानी जो तब पूरी हुई जब उसक
औरत के मन के अहसास औरत के मन की बात कुछ अनकही रह जाए कुछ अनसुनी के दी जाए
नमस्ते दोस्तों 🙏🙏 ➡️ क्या कहूं दोस्तों .... ➡️ जो करना नहीं चाहती , ➡️वही किए जा रही हूँ , ➡️शायद अपनों के लिए ही , ➡️जिये जा रही हूँ... ! ➡️ ना जाने किस बात की ➡️झूठी तसल्ली दिए जा रही हूंँ, ➡️थम सी गई है जिंदगी , ➡️ यादों की सुनहरे पन्नों मे
जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती, स्त्री विशेष कहानियों का संग्रह है यह पुस्तक lइसमें नारी के संघर्ष, प्रेम ,तिरस्कार और साहस जैसे विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया हैl
All about the woman's struggle, lifestyle,sacrifices and care
ग्रामीण अंचल में पली बढ़ी लड़की का ग्रामीण-शहरी माहौल में आकर उस माहौल की दिक्क़ते झेलते हुए ख्वाब बुनने और उन खाव्बो को कभी हकीकत बनते और कभी ढेर होते देखने की कहानी .
इस कहानी में एक लड़की विधि को जिंदगी के बारे में बताया गया है।की जब वह चरित्रहीन नही थी तब उसे चरित्र हीन बोल कर बदनाम किया किया,लेकिन जब वो अपना मुकाम हासिल करने के लिए खुद चरित्रहीन बन जाती है तो समाज उसे उसे इज़्ज़त देने लगता है।वही दूसरी ओर मीरा की
इस कहानी और पात्र में किसी नारी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है ।अपितु उनके ऊपर हो रहे।अमानवीय व्यवहार (बाल विवाह ,दहेज प्रथा, लड़का- लड़की में अंतर आदि) का विरोध बे स्वयं नारी को सही निर्णय लेने का अधिकार इसके लिए स्वयं को आगे आना होगा। " कामयाबी