1 अगस्त की आधी रात बीत चुकी थी लेकिन सीआरपीएफ का जवान मुकेश कुमार सो नहीं पा रहा था. दिल्ली से चली ब्रह्मपुत्र मेल (4055 डाउन) में उसकी वाली बोगी खचाखच भरी थी. सोने की तो छोड़िए, उसमें पैर रखने तक की जगह नहीं थी. मुकेश को लगा कि ये समय ज़ल्द ही बीत जाएगा और ये अजीब सा स्टेशन गाइसाल भी.
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30 किलोमीटर दूर किशनगंज स्टेशन में प्रवेश कर रही अवध-असम एक्सप्रेस (5610 अप) के ड्राईवर आर. रॉय को शायद पता था कि वो एक खतरनाक जगह की ओर बढ़ रहा है. बोडो आतंकवादियों ने अभी कल ही बारपेटा और सारुपेटा के बीच के ट्रैक के कुछ हिस्सों को उड़ा दिया था.
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दो ट्रेनों के बीच में केबिन मैन वाई. मरांडी गाइसाल स्टेशन के पश्चिम केबिन में अंधेरे में बैठा था. लाइट गई हुई थी. बारिश पड़ रही थी. इससे पहले कि उसे कुछ पता लगता (या उसके बाद कि जब उसने सिग्नल देना चाहिए था मगर दिया नहीं), अवध-असम एक्सप्रेस और ब्रह्मपुत्र मेल 2 अगस्त, 1999 को पौने दो बजे आपस में टकरा गईं.
कुमार की बोगी हवा में 50 फीट ऊपर उछल गई. दो अन्य बोगियों पर जाकर गिरी. लेकिन ईश्वर का चमत्कार था कि 50 फीट हवा में उछलकर वापस आने के बावज़ूद उस डिब्बे के ज्यादातर यात्रियों की तरह मुकेश कुमार भी सुरक्षित थे. बाद में बोगी में विस्फोट हुआ और आग लग गई. विस्फोट के चलते यात्रियों के शरीर के हिस्से आस पड़ौस की इमारतों तक छितर गए.
उधर चालक रॉय के पास बचने का कोई मौका नहीं था और मरांडी के पास एक मौका था – भागने का. और वो भाग गया. और सहायक स्टेशन मास्टर आरएन सिंह भी भाग गया.
उन्हें लगा कि त्रासदी के लिए वे लोग जिम्मेदार थे. लेकिन टकराव हुआ कई अन्य और काफी पहले से चल रही खामियों के चलते.
आपस में बुरी तरह से उलझ गईं तेरह बोगियां भारतीय इतिहास की सबसे बुरी ट्रेन आपदाओं में से एक की साक्षी बनीं. 300 से ज्यादा लोग मारे गए और 600 से ज्यादा लोग घायल हो गए. ये तो सरकारी आंकड़ा था. उस ट्रेन की जनरल बोगियों में क्षमता से कई गुना ज़्यादा लोग थे. मृतकों का आंकड़ा हज़ार के पार बताया जाता है.
यात्रियों में से एक, ओम प्रकाश भगत बेसुध होकर अपनी पत्नी और बच्चे की तलाश में लगा था.
उन्हें यहां होना था, मैं कैसे बच गया?
– उसने पटरी से उतरी हुई तितर बितर हुई बोगियों में से एक में झांकते हुए पूछा.
पटरियों के किनारे बरामद हुए शवों को एक कतार में रखा जा रहा था. इसमें से किसी के शरीर का कोई अंग गायब था, कुछ दो भागों में कट गए थे. उन सब को सिलीगुड़ी के पास ‘नॉर्थ उत्तरी बंगाल मेडिकल कॉलेज’ में स्थिति मुर्दाघर में ले जाया गया जहां से उनके परिवार वाले उन्हें लेने आने वाले थे. लेकिन मृतकों में से कईयों को थोड़ी देर दोपहर की गर्मी में रखे रहने दिया गया. घायलों का इलाज करना और उन्हें बचाना पहली प्राथमिकता थी.
तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार दिन के 3 बजे पहुंच गए थे लेकिन मलबा साफ़ करने वाली क्रेन आधी रात तक पहुंच पाईं. मलबे को साफ़ करने में तीन दिन लग गए. गाइसाल पहुंचे नीतीश कुमार को उग्र भीड़ का सामना करना पड़ा.
उन्होंने अपने एक घंटे के दौरे में ही बहुत कुछ देख लिया था और दिल्ली लौटने पर उन्होंने कहा कि वो ‘नैतिक जिम्मेदारी’ के आधार पर इस्तीफा दे देंगे. उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जिन्होंने शुरुआत में नीतीश को मनाने की कोशिश की, बाद में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया.
तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने कहा कि दुर्घटना ने ‘यात्रियों के लिए रेलवे के सुरक्षा उपायों में सुधार की ज़रूरतों’ पर प्रकाश डाला और मैं दुर्घटना में हुई मौतों से दुखी हूं और अंदर तक हिल गया हूं.
लेकिन महत्वपूर्ण सवाल बना रहा : कौन जिम्मेदार था?
किशनगंज, गाइसाल और पंजिपारा की तुलना में एक बड़ा स्टेशन है. रेलवे अधिकारी वहां ‘पैनल इंटरलॉकिंग सिस्टम’ को अपग्रेड कर रहे थे. यानी यांत्रिक प्रणालियों (जिसमें भारी लीवर ट्रेनों को दिशा देने के लिए खींचे जाते हैं) को इलेक्ट्रिक स्विच द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा था. लेकिन इसमें समय लगता है और इस दौरान ट्रेनों को किसी विशेष ट्रैक पर मोड़ने के लिए लाइनमैन को उस जगह पर जाकर ट्रेक्स को हाथों से लॉक करना पड़ता है.
ये काम आसानी से हो सके इसके लिए किशनगंज को अतिरिक्त कर्मचारी दिए गए थे. अवध-असम एक्सप्रेस छह घंटे देरी से चल रही थी और डेढ़ बजे के आसपास किशनगंज पहुंची. सहायक स्टेशन मास्टर एचएम सिंह को पता था कि यह स्टेशन अप-लाइन से स्टेशन छोड़ेगी.
इसके लिए मैनुअली ट्रेक डाइवर्ट करना था. ये नहीं किया गया. ट्रेन अप लाइन को काटते हुए उस ट्रैक पर चढ़ गई जो विपरीत दिशा से आने वाली ट्रेनों के लिए आरक्षित थी.
लगभग उसी समय, एचएम सिंह ने एक और गलती कर डाली. उन्होंने अवध-असम एक्सप्रेस के अगले स्टेशन पंजिपारा को ट्रेन के बारे में ‘नियमित जानकारी’ दी. ये एक ‘स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर’ है. लेकिन जानकारी गलत दी गई. उन्होंने अपनी ‘नियमित जानकारी’ में पंजिपारा को बताया कि एक्सप्रेस ट्रेन अप-लाइन पर आ रही है, जबकि वो डाउन-लाइन पर आ रही थी.
चूंकि ट्रेन नेशनल हाइवे 31 को काटती थी इसलिए बीच में रेलवे क्रॉसिंग पड़ता था. रेलवे क्रॉसिंग में तैनात कर्मचारी ने वही किया जो हर कर्मचारी करता. उसने ट्रेन को गुज़र जाने दिया. इस बात पर गौर नहीं किया कि ट्रेन अप नहीं डाउन-लाइन पर गुज़र रही है.
ड्राईवर रॉय को भी कहीं कुछ असामान्य नहीं लगा. अप और डाउन ट्रेकों के बीच में कुछेक मीटर का ही अंतर होता है. अगर सब कुछ सही होता तो वो बाएं वाले ट्रैक में चल रहा होता, लेकिन वो दाएं ट्रैक में चल रहा था. अगर खिड़की के बाहर झांक कर देख लिया होता कि गलत ट्रैक है तो शायद…
सारे ग्रीन सिग्नल जिनका मुंह उस ट्रेन की तरफ होना चाहिए था, उसके उलटी तरफ को थे, फिर भी रॉय का ध्यान नहीं गया. दरअसल, ये ग्रीन सिग्नल रॉय के लिए नहीं, ब्रह्मपुत्र मेल के ड्राईवर बीसी वर्धन के लिए थे, जो दूसरी तरफ से आ रहा था.
पंजिपारा में, एएसएम आरएन सिंह ने वहीं गलत जानकारी अपने केबिन-मैन को पास कर दी कि अवध-असम एक्सप्रेस अप लाइन पर आ रही है. केबिन-मैन एसपी सिंह ने उसी के अनुसार लीवर में परिवर्तन किए.
लेकिन किसी भी स्टेशन में किसी भी बंदे ने ये गौर नहीं किया कि ट्रेन के गुज़रने के बाद भी सिग्नल हरे हैं, जबकि वो ऑटोमेटिकली लाल हो जाने चाहिए थे.
ट्रेनों की गति 80 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा थी. और इतनी तेज़ गति से चल रही ट्रेन में ब्रेक मारने पर ट्रेन रुकने से पहले डेढ़ किलोमीटर का सफ़र तय करती. यानी टक्कर से बचने के लिए दोनों ड्राइवर्स को कम से तीन किलोमीटर पहले दूसरी ट्रेन दिख जानी चाहिए थी. लेकिन बारिश और घुप्प अंधेरी रात में ऐसा होना मुश्किल था.
अविरूक सेन* कहते हैं –
ये बड़े आश्चर्य की बात थी कि इतने बड़े पैमाने पर हुई मौतों के बावज़ूद गाइसाल के आकाश में कोई गिद्ध नहीं घूम रहा था. आने वालों में केवल राजनेताओं के झुंड थे.
पूर्व गृह मंत्री तस्लिमुद्दीन अपने समर्थकों को लेकर आए थे जो नारे लगा रहे थे –
तस्लिमुद्दीन जिंदाबाद, नीतीश कुमार मुर्दाबाद.
ममता बनर्जी 15 मिनट के लिए आईं और उन्हें अपनी सार्वजनिक बैठकों में मिलने वाली भीड़ की तरह की एक विशालकाय भीड़ मिली. पश्चिम बंगाल में बीजेपी के राज्य उपाध्यक्ष पराश दत्ता ने कहा कि उन्होंने प्रधान मंत्री को एक पत्र फैक्स कर दिया था और कहा था कि त्रासदी तोड़ फोड़ के चलते हुई थी, न कि किसी मानव त्रुटि के चलते. डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के नेता में एक बड़े बैनर के नीचे एक मृत बच्चे की भयानक फोटो लगा दी. ताकि बच्चे के घरवाले उसकी पहचान कर सकें.
पहले से ही इतना कैओस फैला हुआ था और फिर ये सब दुखद रूप से कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति उत्पन्न कर रहे थे. जैसे ही मलबा हटा लिया गया और परिवार वाले लाशें ले जा चुके वैसे ही गाइसाल की भीड़ भी छंट गई. और ट्रेन सेवाएं बहाल हो गईं. लेकिन एक डर के साए में.
# अंततः –
अनौपचारिक दावे हैं कि 90 सैनिकों सहित 1000 से अधिक लोग गाइसाल ट्रेन हादसे में मारे गए थे. और ऐसा असंभव नहीं लगता. बेशक दुर्घटनाग्रस्त हुए सात जरनल डिब्बों में से हरेक में केवल 72 सीटें थीं लेकिन उनमें से सभी में क्षमता से कहीं ज्यादा लोग थे. इसके अलावा ट्रेनों में कई यात्री बेटिकट यात्रा कर रहे थे जिन्हें आधिकारिक गिनती में शामिल नहीं किया गया था. चूंकि टक्कर भीषण थी और बाद में आग और विस्फोट के चलते भी सही-सही गणना करना असंभव था. ऐसी अटकलें भी लगीं थीं कि टक्कर के बाद का विस्फोट ट्रेन में बैठे सैनिकों के साथ चल रहे विस्फोटकों के चलते हुआ. इंडियन आर्मी इसे मानने से इंकार करती है लेकिन ये विवादास्पद बना रहा.
गाइसाल ने एन-एफ रेलवे डिवीजनल मुख्यालय को भेजी गई प्राथमिक रिपोर्ट में कहा था कि दुर्घटना अवध-असम एक्सप्रेस के अंदर हुए एक शक्तिशाली बम विस्फोट के चलते हुई थी. अवध-असम एक्सप्रेस असम से कई रक्षा कर्मियों को कारगिल ले जा रही थी.
गाइसाल ट्रेन दुर्घटना की जांच करने वाले एक सदस्यीय (जस्टिस जी एन रॉय) आयोग ने 2001 में इस हादसे को ‘मानवीय त्रुटी’ बताया. जस्टिस रॉय ने नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे के 35 रेलवे अधिकारियों पर ज़िम्मेदारी तय की. जिसमें 17 मुख्य रूप से और आठ सेकेंड्री रूप से जिम्मेदार थे. 10 अधिकारियों को दोषपूर्ण बताया गया जिसमें अवध असम एक्सप्रेस और ब्रह्मपुत्र मेल के चालक और सह-चालक शामिल थे.
जस्टिस रॉय ने बताया कि प्राथमिक ज़िम्मेदारी पंजिपारा के सहायक स्टेशन मास्टर श्री राम नारायण सिंह के ऊपर ठहरती है.
16 महीने चली पूछताछ के दौरान 106 गवाहों की जांच करने वाले श्री रॉय ने खेद व्यक्त किया कि गाइसाल में कार्य कर रहे रेलवे कर्मचारियों ने दुर्घटना के बारे में कटिहार स्थित एन-एफ रेलवे डिवीजनल मुख्यालय को तुरंत सूचित नहीं.
श्री रॉय ने अपनी रिपोर्ट में कहा –
दोनों ट्रेनों के गलत डायवर्ज़न के चलते हुए ये हादसा साफ़ तौर पर एक मानवीय भूल का नतीजा था. केबिनमैन, पॉइंटमेन, सहायक स्टेशन मास्टर्स और स्टेशन मास्टर्स अपने कर्तव्यों में असफल रहे.
उन्होंने कहा कि विफलताओं को तबाही नहीं कहा जा सकता है!
*इस स्टोरी को लिखने में इंडिया टुडे (अंग्रेजी संस्करण) के 16 अगस्त, 1999 के अंक में छपी अविरूक सेन की स्टोरी इनह्यूमन एरर (अमानवीय भूल) की काफी सहायता ली गई है. कई स्थानों पर फैक्ट्स, नाम और कोट्स लिए गए हैं और कई जगहों पर उसी स्टोरी का हिंदी तर्ज़ुमा ले लिया गया है.