बारात वाली लाइट अपने सर पर उठाए हुए इस औरत की तस्वीर लगभग 4 दिनों से फेसबुक पर चक्कर लगा रही है. पिछले 4 दिनों में अपनी टाइमलाइन देखें, तो पाएंगे कि कई लोगों ने इस तस्वीर को शेयर किया है. सबने अलग-अलग कैप्शन लिखकर.
ये तस्वीर असल में महेश बग्जई नाम के फोटोग्राफर ने इंदौर में ली. और 24 दिसंबर को ये लिखते हुए शेयर किया:
मुझे नहीं लगता कि इस तस्वीर को किसी तरह के ब्रीफ या स्टोरीबोर्ड की आवश्यकता है. इस मां को मेरा सलाम जो ऐसी हालत में भी सुपरहीरो की तरह काम कर रही है. अतुल्य भारत!
महेश की टाइमलाइन से इसे कई लोगों ने उठाया. और मातृत्व को नमन किया. कई लोगों ने अपनी मां को याद किया. और लिखा, ऐसा सिर्फ एक मां ही कर सकती है. कई लोगों ने सरकार को कोसा कि गरीबी क्या-क्या करवा रही है. किसी ने लिखा कि ये औरत ‘ऊंची’ जाति की होती तो इतनी मेहनत न करवाई जाती. कि एक बहुजन औरत की मेहनत पर देश ऐश कर रहा है. कुल मिलाकर सबने तस्वीर को अपने-अपने नजरिए से देखा.
इस तस्वीर को इतना शेयर किया गया क्योंकि ये औरत गर्भवती है. न होती तो इस पर इतना हल्ला न मचता. गर्भावस्था हमारे देश में इतनी ख़ास क्यों है?
हम मांओं को इज्जत भरी निगाहों से देखते हैं. औरतों को देवियों की निगाहों से देखते हैं. इसलिए औरत का दर्द में होना पुरुष के दर्द में होने से ज्यादा वजन रखता है. औरतें हमें ज्यादा इमोशनल करती हैं. और वो गर्भवती हों, तो और भी ज्यादा इमोशनल करती हैं. कहने का ये अर्थ नहीं कि हम मांओं की इज्जत न करें. लेकिन सिर्फ इसलिए कि सिर्फ वो गर्भवती है, उस पर अतिरिक्त गर्व क्यों?
प्रेगनेंसी एक औरत की समस्या नहीं, उसका चुनाव है. ये बात अलग है कि प्रेगनेंसी के दौरान काम करना एक औरत का चुनाव नहीं मजबूरी हो सकती है. अव्वल तो प्रेगनेंसी में कई औरतें काम करती हैं. क्योंकि उन्हें तकलीफ नहीं होती. कई औरतें काम करती रहना चाहती हैं ताकि वो स्वस्थ रहें. और उनका शरीर मूवमेंट में रहे. प्रेगनेंसी में काम करना कोई ऐसी चीज नहीं, जिसके लिए अपनी कुर्सियों पर खड़े होकर आप किसी औरत को सलामी दें.
दूसरी बात, अगर उस औरत की सेहत अच्छी नहीं और केवल मजबूरी में काम रही है, तो इसमें बेचारगी खोजना कहां तक सही है? वो काम कर पा रही है, इसलिए कर रही है. और अगर ये सचमुच उसकी बेचारगी ही है, तो उसे हीरो क्यों बनाना?
जब हम किसी मां या औरत के दिए गए बलिदानों की तारीफ़ करते हैं, हम उनके सारे बलिदानों को सही ठहरा देते हैं. जैसे इस औरत को प्रेगनेंसी में काम करते देख जब हम उसे हीरो बनाते हैं, हम परोक्ष रूप से ये कह रहे होते हैं कि ये अच्छा काम है. ये बलिदान अच्छा है. और इस तरह उसका काम करना सही साबित हो जाता है.
तीसरी बात ये कि हम इस तस्वीर के बारे में कुछ नहीं जानते. औरत का धर्म, जाति, वो कहां रहती है और किस परिस्थिति में वो काम कर रही है, हम नहीं जानते. हो सकता है कि ये उसका रोज का काम हो. हो सकता बस ये काम आज भर का हो.
देश में बहुत सी चीजें हैं जिन्हें देखकर दया उपजती है. बहुत सी तस्वीरें हैं जिन्हें देखकर कलेजा कांप जाता है. मजबूर लोगों को हीरो मत बनाइए. सामान्य लोगों को दयनीय मत दिखाइए. औरतों पर और तरस मत खाइए. मांओं को त्याग की मूर्तियों में तब्दील मत करिए. आपकी तस्वीर का शेयर दुनिया की वो आखिरी वस्तु है, जो किसी की मदद कर सकता है.
why is the photo of this pregnant woman being so widely shared?