लिलीपुल पहुंचकर एडीसी रघुनाथ सिंह के साथ कुछ वक्त इंतजार में गुजारा, कागजी औपचारिकताएं पूरी कीं. और फिर, थोड़ी देर बाद एक कारिंदे के साथ मैं दुनिया की दस बेहद खूबसूरत महिलाओं में शामिल एक शख्सियत से मिलने उनके मेहमानखाने में दाखिल हो रहा था. शाही महल का वो हिस्सा अद्भुत था. चारों ओर विशाल सोफे थे, आदमकद तस्वीरें, चमचमाते झूमर, टिमटिमाती रोशनियां और पीछे किसी लॉन में पानी देते प्रेशर पाइप की आवाज.
वह तिलिस्मी सा माहौल था, जहां मैं फिर बिठा दिया गया था. इंतजार के लिए. दस मिनट के इंतजार के बाद आसमानी नीले रंग की शिफॉन की साड़ी में वह सिर का पल्लू संभालते हुए आईं. कहीं के और किसी भी शाही परिवार के सदस्य से यह पहली मुलाकात थी. उन्होंने और मैंने लगभग एक ही वक्त में एक-दूसरे का अभिवादन किया और उन्होंने आगे बढ़कर हाथ मिलाया. उनके लिए यह आम बात होगी, मेरे लिए रोमांच का क्षण था.
15 मिनट की अपॉइन्टमेंट था और फिर वो तकरीबन डेढ़ घंटे मेरे साथ रहीं. अतीत और वर्तमान के बीच सफर करती रहीं. मुझे लगता है कि वह मुझसे इस मुलाकात में बहुत सहज थीं. इस तरह बात करना उन्हें अच्छा लग रहा था. आखिर में निकलते वक्त उन्होंने पूछा कि क्या तस्वीर की जरूरत है. मैंने कहा, ‘आपके अंदर की खूबसूरती को देख और महसूस कर लिया है. यूं आपकी तस्वीरें मिल ही जाएंगी.’
वह अवाक हुईं और सौम्य मुस्कुराहट बिखेर दी. मुझे लगा, सोच रहीं होंगी कि अजीब लडक़ा है, लोग मेरे साथ तस्वीर के लिए तरसते हैं और कहा, ‘कोई पुरानी तस्वीर चाहिए, तो एडीसी साहब को बोल देती हूं. आपको दे देंगे. आज मुझे अफसोस हैं कि काश, मेरी एक तस्वीर उस परी सी सुंदर सौम्य पूर्व राजमाता गायत्री देवी के साथ होती.
पेश है उस साक्षात्कार के अंश:
12 अगस्त, 1947 को जब जयपुर रियासत स्वतंत्र भारत में मिला दी गई, तब आपको कैसा महसूस हुआ?
मुझे अच्छा नहीं लगा, क्योंकि रजवाड़ों के अपने गौरवशाली इतिहास हैं. रजवाड़ों के जनता के साथ बहुत नजदीकी संबंध रहे हैं. मां-बाप के जैसा रिश्ता था. लोग आजकल ये भूल जाते हैं. जब कभी रामबाग आते थे, ढेरों लोग खड़े रहते थे. लोग दरबार से पूछते थे. कहते थे ‘अन्नदाता, अनाज नहीं है, ये नहीं है, वो नहीं है. नई सरकार के आते ही उठते-बैठते टैक्स लगता है.’ ऐसी बातें करते थे. हम अब उनके लिए कुछ नहीं कर सकते थे.
आपने लोकतांत्रिक राजनीति में कदम रखा, राजगोपालाचारी के साथ काम किया, तीन बार जयपुर से लोकसभा के लिए चुनी गईं, फिर क्यों छोड़ी राजनीति?
इसलिए क्योंकि राजा जी नहीं रहे. स्वतंत्र पार्टी के सिद्धांत मुझे पसंद थे. स्वतंत्र भारत, स्वतंत्र जनता, सब कुछ स्वतंत्र. पंडित जी की मैं बहुत इज्जत करती थी. हर चीज को स्टेट में ले लिया. जनता को कोई आजादी नहीं थी. ये करो तो फॉर्म, वो करो तो फॉर्म. एक बार जब राजाजी कांग्रेस में थे, तब नागपुर में पंडित जी ने कहा, ‘आपकी जमीन भी हम ले लेंगे.’ राजा जी ने कहा, ‘किसानों के खेत नहीं लेने चाहिए. अगर आप ऐसा करते हैं, तो आपके विरोध में एक पार्टी बनाऊंगा. स्वतंत्र भारत, स्वतंत्र जनता के लिए.’
आप उम्र में बहुत छोटे हैं. आपको मालूम नहीं होगा कि पर्चे बांटे गए थे. पाठ्यपुस्तको में लिखा गया था कि जमीन सरकार की है, इसलिए राजा जी ने पार्टी बनाई. 1970 में आखिरी बार चुनाव लड़ा. दरबार भी नहीं थे, इंदिरा गांधी ने चुनाव मतदाता सूची में जिनके नाम के आगे सिंह था, नाम कटवा दिए. रामबाग का राजमहल, जिसमें हम रहते थे, उसके स्टाफ तक का नाम कटवा दिया गया. कुचामन, जहां से मैंने चुनाव लड़ा, वहां भी ऐसा ही हुआ.
अभी दिन कैसे गुजरता है आपका?
हजारों चीजें हैं, एमजीडी स्कूल, सवाई मानसिंह स्कूल, एक चांद शिल्पशाला जहां लड़कियां दस्तकारी सीखती हैं और गलता के पास एक गांव में जग्गों की बावड़ी में एक स्कूल है. गरीब बच्चों के लिए. मेरी चैरिटी भी है. बहुत कुछ है. कुछ न कुछ करती रहती हूं.
आपका जीवन दर्शन क्या है?
दर्शन-वर्शन कुछ नहीं है. मैं तो सामान्य सी इंसान हूं. कोई फिलास्फी-विलॉस्फी नहीं है.
क्या आप सोचती हैं कि आप राजकुमारी या महारानी के बजाय आम नागरिक होतीं?
मैं राजकुमारी की तरह पैदा हुई और महारानी हो गई. इसलिए नहीं जानती कि आम आदमी कैसा होता है. सिर्फ महसूस कर सकती हूं. पर मुझे लगता है कि इंसान तो इंसान होता है. मैं मानती हूं कि मैं आम आदमी की तरह ही स्कूल गई, शांति निकेतन में पढ़ी. वहां आम थी, खास नहीं थी.
बहुत से लोग सोचते हैं और मैं भी कई बार सोचता हूं कि जनतंत्र की बुराइयां हमें यह कहने को विवश करती हैं कि शायद राजशाही लोकशाही से बेहतर थी. आपको क्या लगता है?
राजशाही अच्छी थी. हर जगह तो नहीं, पर कई जगह तो बहुत ही अच्छी थी. जैसे मेरे नानो’सा सयाजीराव गायकवाड़ का राज बहुत ही अच्छा था. अंबेडकर को किसने पढाया, बनाया? उन्होंने ही ना! मेरे पीहर में भी अच्छा था. हिंदू-मुस्लिम प्यार से साथ रहते थे. जयपुर में भी ऐसा ही था. दरबार हमेशा कहते थे कि ‘हम जो कुछ भी हैं, जयपुर की वजह से हैं. जो कुछ भी हमारे पास है, जयपुर की वजह से है. सब जयपुर को देना है.’ लोग उनको बहुत मानते थे.
आपने दुनिया देखी है, आपका पसंदीदा शहर कौन सा है?
बेशक जयपुर!
कूचबिहार में आपका जन्म हुआ.वहां की यादें हैं अभी भी आपके जेहन में?
बहुत हैं. हर साल जाती हूं अब भी. इस साल कुछ कारणों से देर हो गई. शायद अक्टूबर-नवंबर में जाऊं पूजा के समय.
अपने परिवार के बारे में बताएं.
महाराजा जगत सिंह का लड़का मेरा पोता देवराज यहीं हैं. उसने बीए किया है. शायद दिल्ली से मास्टर्स करेंगे. पोती लालित्या अपनी मां के पास बैकॉक में रहती हैं. इन दिनों वह भी यहीं हैं. उसने मास्टर्स किया है.
आप गिरधारीलाल भार्गव के नामांकन के समय उनके साथ थीं. राजनीति में अब भी रुचि है?
उन्होंने बुलाया, तो मैं गई थी. कोई रुचि नहीं अब राजनीति में. मैं तो बस यह चाहती हूं कि जयपुर की जनता खुश रहे, खुशहाल रहे. ये भी चाहती हूं कोई उनके लिए कुछ करे. मैं उम्मीद करती हूं कि वसुंधरा राजे कुछ करेंगी, क्योंकि वह अच्छे परिवार से हैं, समझती हैं. देखते हैं क्या करतीं हैं?
आप शांति-निकेतन में पढीं हैं. रवींद्र बाबू से जुड़ी वहां की कोई याद?
उन्हें हम गुरुजी कहते थे. मैं उनके पास जाती थी, बहुत जाती थी. एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि आपने डांस करना क्यों छोड़ दिया. मैंने कहा, वो टेनिस का समय है, मुझे टेनिस बहुत पसंद है. उन्होंने कहा, ‘लड़कियों को नाचना चाहिए.’
जब से होश संभाला, आपका नाम सुना. ये जाना कि आपको दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं में गिना जाता है!
किसने कहा? ये सही नहीं है.
मुझे तो आज भी लगता है कि आप बेहद खूबसूरत हैं?
नहीं नहीं. मेरी मां बहुत खूबसूरत थीं. मेरे पिताजी बेहद खूबसूरत थे. मेरे भाई-बहन भी सुंदर थे.
अगर सेहत साथ दे, तो कुछ और करने की इच्छा है?
कुछ नहीं. अब क्या कर सकती हूं?
maharani gayatri devi's interview from the archives by Dushyant