1. आंखों देखी
फिल्म 'आंखों देखी' की कहानी पुरानी दिल्ली के एक परिवार की है, जो अनोखे हैं, निराले हैं। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक सोच है, इंसान की जिंदगी के रंगों के अनुभव की और अंतरात्मा की खुशी की।
बाबूजी का किरदार निभा रहे संजय मिश्रा की भी एक सोच है, जिसके मुताबिक वह जिस चीज को देखते हैं, उसी पर विश्वास करते हैं। यह एक आर्टिस्टिक फिल्म है, जिसे रजत कपूर ने खूबसूरत पेंटिंग की तरह सजाया है।
2. तितली
तितली बहुत तेजी से आगे बढ़ती है और शुरू से लेकर अंत तक लाजवाब है जिसका ज्यादातर श्रेय जाता है फिल्म की शानदार कास्ट को, खास तौर पर रनवीर शोर को जो इतना शानदार अभिनय देते हैं कि आप उसे मिस नहीं कर सकते। विक्रम एक ऐसा शख्स है जिससे आप कभी नहीं मिलना चाहेंगे। कनु बहल की ओर से लिखी हुई और निर्देशित की गई ‘तितली’ एक ऐसी फिल्म है जिसे दिमाग से निकाल पाना बेहद मुश्किल है। महज फिल्म में होने वाली क्रूरता ही नहीं बल्कि फिल्म की कास्ट का शानदार अभिनय और हिंसा के बीच पनप रहे एक परिवार की तस्वीर भी झकझोर के रख देती है।
3. चटगांव
बेहतरीन अदाकारी, बेहतरीन निर्देशन, लंबी रिसर्च के बाद तथ्यों के आधार पर बनी यह फिल्म एक मस्ट वॉच फिल्म है। अफसोस है कि स्वतंत्रता संग्राम की इस अनकही कहानी को सरकार ने टैक्स में छूट नहीं दी, तो वहीं सिनेमा मालिकों ने थिएटर नहीं दिए। फिर भी अगर मुमकिन हो तो इस फिल्म को देखें।
लैला...एक आम सी लड़की है. और वह आम लोगों की तरह ही जीना चाहती है. उसे लोगों की हमदर्दी पसंद नहीं. चूंकि वह महसूस करती है कि वह औरों की तरह ही क्रियेटिव है. फिर लोग उसे अफसोस या बेचारगी की नजर से क्यों देखते हैं. निर्देशक फिल्म के शुरुआती दृश्यों में ही यह स्थापित कर देते हैं कि लैला को दर्शक भी उस हेय या बेचारगी से न देखें. निर्देशक की यह स्पष्ट सोच आकर्षित करती है. लैला आम लोगों से दोस्ती करना चाहती है. और वह इस बात का इजहार भी कई बार करती है.
5. अंतर्द्वंद
अंतरद्वंद्व को सामाजिक विषय पर बनी हुई सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार (2009) मिला है. फ़िल्म का विषय है बिहार में लड़कों को जबरदस्ती पकड़कर उनकी शादी कर देना. यह ऐसा विषय है जिसमें किसी की भी रुचि होगी. हम बचपन से बिहार में लड़कों को पकड़कर शादी की बातें सुनते आ रहे हैं. कई बार तो लोग बच्चों को चिढ़ाने-डराने के लिए इस तरह की धर-पकड़ वाली शादी के एक से एक किस्से सुनाते थे.
6. मातृभूमि
मातृभूमि २००३ में बनी भारतीय फ़िल्म है जिसका निर्देशन मनीष झा द्वारा किया गया है। फ़िल्म महिला शिशु हत्या व घटती महिलाओं की संख्या के मुद्दे पर प्रकाश डालती है। फ़िल्म कुछ असली घटनाओं, जैसे महिलाओं की गिरती संख्या व भारत के कुछ भागों में पत्नी खरीदने की प्रथा को उजागर करती है।[1] इसमें एक ऐसे भविष्य के भारतीय गाँव को दर्शाया गया है जिसमें केवल पुरुष ही है क्योंकि वर्षों से चली महिला शिशु हत्या के चलते अब गाँव में एक भी लड़की या महिला ज़िंदा नहीं है।[2]
फ़िल्म को बेहद सराहा गया है और २००३ में कई फ़िल्म समारोहों में प्रदर्शित किया गया जिनमे २००३ वेनिस फ़िल्म समारोह शामिल है जहां इसे आलोचक सप्ताह में दिखाया गया औरर बाद में फिपेसकी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
7. 15 पार्क अवेनुए
8. द ब्लू अम्ब्रेला
9. द लास्ट लेअर