प्राचीन समय में मनोरंजन के बहुत कम साधन उपलब्ध थे। अमीर और राजा महाराजा अपने मनोरंजन के लिए अक्सर शिकार पर जाते थे। तब विशाल जंगल मौजूद थे जिसमें लाखों जानवर रहते थे। बड़ी संख्या में शेर और बाघ भी मौजूद थे।
वैसे तो लगभग सभी जानवरों का शिकार किया जाता था परंतु राजा महाराजाओं का पसंदीदा शिकार बाघ हुआ करता था। बाघ जंगल का सबसे ताकतवर जानवर था शायद इसीलिए बाघ को मारा जाता था।
शिकारी मरे हुए बाग के साथ फोटो खींचता था और इसे दूसरों को भी दिखाना पसंद करता था। इसी तरह से लाखो जानवरों का शिकार किया गया क्योंकि उस दौर में जानवरों के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग बहुत कम थे।
शिकार करने का यह दौर लगभग 2000 साल लंबा था। अंग्रेजों के काल में भी शिकार जारी रहा। इन 2000 सालों में हजारों की संख्या में बाघों को मौत के घाट उतार दिया गया और ना जाने कितने शेर, चीता और तेंदुए भी राजा महाराजाओं के इस शौक के शिकार बन गए।
भारत आजाद हुआ तो बाघों की घटती संख्या ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। भारत सरकार ने सबसे पहले बाघों के शिकार पर पाबंदी लगाई। हालांकि यह पाबंदी सिर्फ नाम मात्र के लिए थी। क्योंकि अगले 30 सालों तक बाघों का शिकार खुलेआम होता रहा।
आज भारत के जंगलों में लगभग 1200 बाघ ही बचे हैं। अच्छी बात यह है कि इनकी संख्या बढ़ रही है हालांकि बाघों की संख्या बहुत धीमी गति से बढ़ती है।
जो हम गवा चुके हैं उसे वापस पाना मुमकिन नहीं है। लेकिन जितने जानवर जंगलों में हैं उनकी सुरक्षा हमारे हाथ में है।