बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बहुत बड़ा फैसला करने जा रही है . दरअसल, सरकार ने अनुभव किया है कि आपराधिक वारदातों में इजाफा के मूल में संपत्ति विवाद सबसे बड़ा कारण है . पारिवारिक हिंसा के मामलों में दूसरी वजहों से कई गुणा अधिक जमीन – घर के बंटवारे का रजिस्ट्रेशन नहीं होना है . आम तौर पर लोग पहले सहमति से फैसला कर लेते हैं, कच्चा कागज तैयार करते हैं, लेकिन कोई सरकारी रजिस्ट्री नहीं कराते हैं . इसी कारण बाद में विवाद बहुत बढ़ जाता है और केस – मुकदमों के साथ हिंसक घटनाएं भी घटती है .
राज्य सरकार के सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार पहले आपसी सहमति से बंटवारा होने के बाद भी लोग जमीन – घर की रजिस्ट्री अपने नाम से इसलिए नहीं कराते हैं, क्योंकि बिहार में सरकारी रजिस्ट्री की रेट बहुत अधिक है . रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के अधिकारी बताते हैं कि बंटवारे की सूरत में अभी नये नाम से रजिस्ट्री की दर संपत्ति के न्यूनतम वैल्यू के निर्धारित सरकारी दर का पांच प्रतिशत है .
पांच प्रतिशत का मतलब यह हुआ कि आपके पुश्तैनी घर – जमीन की बंटवारा की हुई संपत्ति का मूल्य सरकारी दर से 20 लाख रुपये हुआ तो नये नाम से रजिस्ट्री के लिए आपको अभी एक लाख रुपये सरकार को देने होंगे . ठीक इसी तरीके से एक करोड़ रुपये की संपत्ति आपके नाम से आ रही है तो सरकार को पांच लाख रुपये चुकता कीजिए .
नीतीश कुमार की सरकार ने समीक्षा के बाद यह पाया है कि मौजूदा सरकारी दर बहुत अधिक है . इस कारण बंटवारे के बाद भी लोग नई रजिस्ट्री नहीं कराते हैं . इसका परिणाम बाद में बढ़े विवाद के रुप में देखा गया है . मर्डर भी हो जाते हैं .
सो, सरकार ने बदलाव के साथ नया मसौदा तैयार किया है . अब बंटवारे में मिली जमीन – घर की नई रजिस्ट्री के लिए आपको बहुत कम रुपये देने होंगे . कह सकते हैं, नाममात्र का शुल्क ही जमा करना होगा . यह शुल्क 50 रुपये से लेकर 200 रुपये तक का हो सकता है . सरकार ने माना है कि बंटवारे के वक्त जब कोई नया फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन नहीं हो रहा है , तो फिर ऐसी रजिस्ट्री में बड़ी कीमत लेने का कोई औचित्य नहीं बनता है .
बिहार सरकार के रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने नये निर्णय की मंजूरी के लिए मसौदा तैयार कर लिया है . इसे स्वीकृति को बिहार कैबिनेट को भेजा गया है . कैबिनेट से स्वीकृति मिलते ही बिहार गजट में प्रकाशन होगा और नई नीति लागू हो जाएगी .