आजकल एक नजारा बड़ा कॉमन है. कोई एक्सीडेंट हो जाए या कोई आदमी सड़क किनारे तड़प रहा हो. तो उसे घेरकर एक भीड़ खड़ी हो जाती है. और एक नया चसका लगा है लोगों को. वीडियो बनाने का. तो वो भी जारी रहता है. बजाए उसकी मदद करने को. कुछ ऐसा ही नजारा 13 सितंबर को था हिमाचल प्रदेश के शिमला शहर के लक्कड़ बाजार इलाके में. यहां एक आदमी सड़क किनारे बेहोश पड़ा था और लोग उसे घेरे खड़े थे. हालांकि अच्छे लोग भी हर जगह होते हैं जो तमाशबीन भीड़ का हिस्सा बनने की बजाए मदद करते हैं. और यहां मददगार बनकर आए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल. वो इसी रास्ते से गुजर रहे थे और उन्होंने ये भीड़ देख गाड़ी रोकी. पता चला कि कोई बेहोश पड़ा है तो वो खुद गाड़ी से उतर गए और ड्राइवर के साथ उस बेहोश आदमी को अस्पताल भेज दिया. फिर खुद पैदल ही हाईकोर्ट के लिए चल दिए.
चीफ जस्टिस संजय करोल ने जिस आदमी को अस्पताल भिजवाया, वो 55 साल के इंद्रदेव थे. पास के ही गांव शोधी के रहने वाले. रोजाना शिमला दूध लेकर आते हैं. पर वो बीमार भी रहते हैं. अचानक चक्कर आ जाते हैं. उस दिन भी यही हुआ. वो चक्कर आने की वजह से बीच सड़क पर गिर गए. वो गिरे और भीड़ ने उन्हें घेर लिया. हालांकि समय से चीफ जस्टिस ने वहां पहुंचकर उन्हें अस्पताल भिजवा दिया. चीफ जस्टिस के इस काम को देखकर जॉली एलएलबी फिल्म में सौरभ शुक्ला का वो डायलॉग याद आ गया कि कानून अंधा होता है, जज नहीं. उसे सब दिखता है.
इंद्रदेव की मदद के बाद जस्टिस करोल करीब आधा रास्ता पैदल चल चुके थे. हालांकि फिर उनके साथ चलने वाली पायलट गाड़ी उनके पास आ गई क्योंकि उनके ड्राइवर ने उसे कॉल कर दिया था. फिर जस्टिस करोल इसी पायलट गाड़ी में बैठकर हाईकोर्ट के लिए निकल गए. जस्टिस करोल के इस कदम की जितनी तारीफ की जाए कम है. चाहते तो वो भी जैसे तमाम लोग गुजर जाते हैं, वैसे गुजर जाते. मगर उन्होंने उस आदमी की मदद करने को सोची. हर आदमी ऐसा करने लगे तो एक्सीडेंट या ऐसी स्थिति में जान गंवाने वाले लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है.