06 दिसंबर, 1992 को घटी इस घटना (बाबरी मस्ज़िद विध्वंस) को याद करके आज भी भारतीयों की नसों में सिहरन दौड़ जाती है.
घटना और उसके बाद हुए देशव्यापी दंगों से देश को उबरने में दिनों, हफ्तों और कहीं कहीं तो महीनों लग गए. अब जबकि इसको पच्चीस साल हो चुके हैं और ये मुद्दा कोर्ट में है तो भी राजनीति में आए दिन इसके हैश टैग बनते रहे हैं.
‘बाबरी मस्ज़िद विध्वंस’ में बढ़-चढ़ कर भाग लेने वाला बलबीर आज देश-भर में मस्ज़िद बनाता है, उसने मस्ज़िदों की सुरक्षा करने का भी फैसला लिया है. एक बातचीत में उसने कहा – ‘मैंने और योगेन्द्र – दोनों ने – अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण करने की प्रतिज्ञा की थी, लेकिन अब 100 मस्जिदों का नवीनीकरण करके हमने अपने पाप धोने का वचन लिया है.’
बलबीर पूर्व में शिव सेना का एक नेता हुआ करता था. वो आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित था और अपने शुरुआती दिनों के दौरान पानीपत की ‘शाखा’ में नियमित रूप जाता रहता था. आज वो मुहम्मद आमिर के नाम से जाना जाता है, जबकि उसका सहयोगी योगेंद्र पाल का नाम अब मुहम्मद उमरहै.
06 दिसंबर, 1992 को याद करते हुए बलबीर ने कहा – ‘हमें डर था कि हमें रोकने के लिए सेना का प्रयोग किया जाएगा लेकिन जमीन पर कोई अधिक या प्रभावी सुरक्षा नहीं थी और इसी बात ने हमें प्रेरित किया और हम मानसिक रूप से तैयार थे कि आज इसे(बाबरी मस्ज़िद) को ध्वस्त कर दिया जाएगा.’
पानीपत के बलबीर ने बताया कि 01 दिसंबर को अयोध्या पहुंचने वाले कुछ पहले कारसेवकों में से वो एक था और 06 दिसंबर को बीच वाले गुंबद में चढ़ने वाला सबसे पहला व्यक्ति वही था.
उसने सोनीपत और पानीपत के कई अन्य कार-सेवकों के साथ गुंबद को ध्वस्त करने के लिए ‘कुदाल और गैती’ का इस्तेमाल किया और कार्य समाप्त होने के बाद जब वह हरियाणा के अपने गृह-नगर पानीपत पहुंचा तो उसे वहां एक ‘वीर’ की तरह सम्मान मिला.
बलबीर ने आगे बताया कि – ‘लेकिन, जब मैं घर गया तो मेरे परिवार की प्रतिक्रिया मेरे लिए चौंकाने वाली थी. मेरा परिवार धर्मनिरपेक्ष है और उसने मेरी निंदा की. मैंने अपनी भावनाओं के चलते कार सेवा में भाग लिया था लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि यह गलत था.’
बलबीर सिंह ने कहा कि उन्हें यह मालूम था कि उन्होंने कानून अपने हाथ में ले लिया था और भारत के संविधान का उल्लंघन किया था. अपराध बोध में उसने जल्द ही इस्लाम को गले लगा लिया.
आज, आमिर(पूर्व में बलबीर) एक मुसलमान महिला से शादी कर चुका है और इस्लाम की शिक्षाओं को फैलाने के लिए एक स्कूल चलाता है. वह अपने सहयोगी योगेन्द्र पाल के साथ अब तक 90 मस्जिदें बना चुका है.
बलबीर ने कहा कि वो टेस्टीफाई के लिए तैयार है और यहां तक कि सीबीआई या संबधित प्राधिकरण की सजा का सामना करने के लिए भी तैयार है.
और अंततः वो बोला – ‘मैं दुआ करता हूं कि हिंदू और मुस्लिम दोनों एक साथ आएं मस्जिद का निर्माण करें.’