*परमात्मा द्वारा सृजित यह सृष्टि बड़ी ही विचित्र है | ईश्वर ने चौरासी लाख योनियों की रचना की ! पशु , पक्षी , मनुष्य , जलचर आदि जीवों का सृजन किया | कहने को तो यह सभी एक जैसे हैं परंतु विचित्रता यही है कि एक मनुष्य का चेहरा दूसरे मनुष्य से नहीं मिलता है | असंख्य प्रकार के जीव हैं , एक ही योनि के होने के बाद भी उनमें परस्पर असमानतायें देखने को मिलती है | यहां तक की वृक्षों में भी यह विचित्रता है | यह असमानतायें एवं बिचित्रतायें सर्वत्र दिखाई पड़ती है | जब प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक जीव में भिन्नता है तो विचार एक जैसे होंगे यह कैसे माना जा सकता है | प्रत्येक मनुष्य के विचार एवं उसके क्रियाकलाप भिन्न भिन्न होते हैं | एक ही समुदाय में , एक ही परिवार में , एक ही संगठन में रहते हुए भी विचारों में असमानताएं देखने को मिलती है | चाहे वह परिवार हो या कोई संगठन वह तभी सुचारू रूप से चल सकता है जब वहां के प्रत्येक सदस्य त्याग , प्रेम , स्नेह , उदारता एवं सहिष्णुता का भाव रखते हैं | जहां इन भावों की कमी होती है वहीं वह परिवार व संगठन टूटने लगता है | परिवार का मुखिया अपने परिवार को सुचारू रूप से चलाने के लिए कितना त्याग करता है इसका वर्णन कर पाना संभव नहीं है | किसी भी संगठन या परिवार में कुछ लोग सदैव असंतुष्ट ही रहते हैं क्योंकि उनको लगता है कि उनकी बात नहीं मानी जा रही है | यह असंतुष्टि जब अपनी पराकाष्ठा को पार कर जाती है तो ऐसे व्यक्ति बिना किसी कारण के ही परिवार के मुखिया अर्थात अपने पिता या किसी संगठन के मुखिया पर निराधार आरोप लगा कर के अपना परिवार अलग बना लेते हैं | ऐसा करके वह अपने अनुसार तो बहुत अच्छा करते हैं परंतु
समाज की दृष्टि में उनकी स्थिति हास्यास्पद ही हो जाती है |* *आज के युग में एकल परिवारों की संख्या समाज में बढ़ रही है | आज पिता-पुत्र में गुरु - शिष्य में या किसी संगठन के संचालक और सदस्यों में जो कड़वाहट दिखाई पड़ रही है उसका कारण मात्र मनुष्य के संकुचित दृष्टिकोण एवं स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति ही है | जहां एक पिता अपने पुत्र के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है वहीं पुत्र व्यक्तिगत स्वतंत्रता हेतु अनुशासन की अवज्ञा करते हुए अपना अलग बसेरा बनाने का प्रयास करता है | आज सोशल मीडिया के युग में लोग फेसबुक , व्हाट्सएप आदि पर विभिन्न विषयों पर समूह बनाकरके उस विषय पर आधारित चर्चा का आदान प्रदान करते देखे जा रहे हैं , परंतु यहां भी वही स्थिति है कि लोग जरा - जरा सी बात पर आपस में मतभेद पैदा करके समूह का त्याग कर देते हैं , और अपना अलग समूह या परिवार बना कर के पूर्ण स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं | यहां तक कि लोग जिसको अपना गुरु मानते हैं उससे भी विद्रोह करके ऐसे कृत्य कर रहे हैं , जबकि मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे पुत्र एवं ऐसे शिष्य व किसी भी संगठन के सदस्य को निंदनीय ही कह सकता हूं | क्योंकि मनुष्य का सबसे शुभचिंतक , मित्र , हितैषी , पथप्रदर्शक एवं जीवन रक्षक पिता और गुरु ही हो सकता है | ऐसा कोई भी कृत्य करते समय मनुष्य को यह विचार करना चाहिए कि बचपन से लेकर के आज तक हम जिनके साथ रहे उनको किंचित विचार न मिलने मात्र से भला कैसे त्यागा जा सकता है ? परंतु आज यही हो रहा है जोकि उचित नहीं कहा जा सकता है | आपसी मतभेद ही पतन का कारण रही है , इसका लाभ सदैव विरोधियों ने ही उठाया है | ऐसे कृत्यों से बचने का प्रयास करना चाहिए |* *कुछ लोग यह भी कहते हैं कि "आवश्यकता आविष्कार की जननी है" यह सत्य है परंतु आवश्यकताएं परिवार में रहकर भी पूरी की जा सकती हैं | उसके लिए अलग परिवार बनाना आवश्यक नहीं है |*