*सनातन धर्म के धर्मग्रंथों ने मानव जीवन जीने के लिए अनेकानेक मार्गों का मार्गदर्शन किया है | इन मार्गों का अनुसरण करके मनुष्य अपने विवेक , बुद्धि एवं बल का अवलम्ब लेकर सामर्थ्यवान हुआ | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य ने अपनी समर्थता का झंडा गाड़ा है | मनुष्य समर्थ हो सकता है और हुआ भी है , परंतु पूर्ण समर्थ न वह कभी था और न ही कभी हो सकता है | पूर्ण समर्थ तो मात्र वह परमात्मा है | पूर्ण समर्थ होने का अर्थ है कि -- जो सबको समभाव से देखे ! ( सम + अर्थ ) बिना भेदभाव किये समस्त जड़ चेतन के लिए जो कार्य करता है वही पूर्ण समर्थ कहा जा सकता है | और वह परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं हो सकता | जो निर्दोष हो अर्थात जिसमें कोई दोष न हो वही सर्वशक्तिमान या समर्थवान कहा जा सकता है | गीता में स्वयं योगेश्वर श्री कृष्ण ने इसका उद्घोष किया है -- "निर्दोषं हि समं ब्रह्म" | कहने का तात्पर्य यह है कि इस सकल सृष्टि में जिसमें कोई दोष न हो वही समर्थवान के जाने के योग्य है | और यह शायद मनुष्य नहीं हो सकता है | बाबा जी ने मानस में एक चौपाई लिखी है ---- समरथ को नहिं दोष गुंसांईं ! रवि पावक सुरसरि की नांईं !! इसका अर्थ है कि समर्थवान में कोई दोष नहीं होता है वह बिना भेदभाव के सबके लिए समान व्यवहार करता है | सूर्य अपनी ऊर्जा सबको समान रूप से प्रदान करता है | अग्नि जितनी गर्मी एक धनी व्यक्ति को प्रदान करती है उतनी ही गर्मी वह एक निर्धन की झोपड़ी में भी प्रदान करती है | गंगा जी यदि एक राजा की अस्थियां स्वयं में समाहित करती हैं तो वे स्वयं में एक भिखारी की अस्थियों को भी आश्रय देती हैं |**आज तुलसीदास जी की चौपाई का अर्थ ही बदलकर रह गया है | आज के अनुसार -- समर्थवान को कोई दोष नहीं होता वह चाहे जो करे | आज मनुष्य के पास धनबल , जनबल एवं बाहुबल है तो वह समर्थ माना जाता है | आज यह प्रासंगिक भी है | मनुष्य में लाख दोष हों और वह यदि समर्थवान है तो उसे कोई दोषी नहीं कहता है | यदि किसी ने बहुत हिम्मत करके उसे दोषी कह भी दिया तो समर्थवान अपनी समर्थता के बल पर निर्दोष सिद्ध हो जाता है | बाबा जी की रचना कालजयी है | लिखा तो उन्होंने इसे इस प्रसंग पर कि समर्थवान वह होता है जिसमें कोई दोष न हो , परंतु यह आज सिद्ध हो रहा है कि जो समर्थ है उसमें कोई दोष नहीं होता है | आज यदि किसी मध्यम वर्गीय मनुष्य से कोई अपराध अनजाने में भी हो जाता है तो वह कारागार की सजा भोगता है , परंतु वही अपराध कोई समर्थवान जानबूझ कर करता है तो भी वह निर्दोष होकर जनता का सम्मान प्राप्त करता है | लोग जानते भी हैं कि यह दोषी है , परंतु उसके धनबल , जनबल , एवं बाहुबल की समर्थता एवं चाटुकारिता में उसे निर्दोष मानकर सर आँखों पर बिठा लेते हैं | आज के परिवेश में यदि कोई भी समर्थवान बना है तो उसके पीछे हम और आप ही हैं | कोई भी अकेले अपने पुरुषार्थ से समर्थवान बनने वाला कम से कम आज के युग में तो नहीं है |**इस संसार में परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी पूर्ण समर्थ नहीं है | वही परमात्मा प्रकृति (पंचतत्व) के रूप में हमारे बीच विद्यमान है | वह ही निर्दोष , सर्वशक्तिमान एवं सामर्थ्यवान है |*