मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है |कोई भी राष्ट्र, समाज, या परिवार एक मर्यादा में बंधा होता है | रिश्ते, प्रेम, व्यवहार, मित्रता सब मर्यादा पर ही आधारित होते हैं क्योंकि "मर्यादा मनुष्य का आभूषण होती है | अपना सम्पूर्ण जीवन मर्यादित होकर व्यतीत कर देना ही मानव की सबसे बड़ी तपस्या है | परंतु आज हमारा सभ्य एवं मर्यादित समाज यहाँ तक कि परिवार भी अपनी मर्यादा की सीमा लांघ चुका है |आज मर्यादा विकृत हो गयी है , कलियुग का प्रभाव मानै या पश्चिमी सभ्यता का ?? यह तो विचारणीय है ही परंतु यहाँ पर युगदृष्टा गोस्वामी तुलसी दास जी को भी नहीं भुलाया जा सकता , क्यों आज के परिवेश में उनकी लिखी एक एक लाईन सत्य घटित हो रही है | यथा---- कलिकाल विहाल किये मनुजा | नहिं मानत क्वौ अनुजा तनुजा | क कुलवंत निकारहिं नारि सती | गृह आनहिं चेरि निबेरि गती || आज मानवीय रिश्तों में परिवर्तन दिख रहा है | आज कोई ऐसा रिश्ता नहीं बचा है जो कि दूषित न हो गया हो ,नित्य ही
समाचार पत्रों में मर्यादा को तार तार करने वाली खबरें छपती रहती हैं ,हम चाय की चुस्कियों के साथ उन खबरों को पढते हैं और चुप रह जाते हैं | हमारी संवेदनायें धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं आज जिधर भी दृष्टि घुमाओ आधुनिकता के प्रभाव में हमारी मर्यादा एनं नैतिकता जर्जर होती दिख रही है | आधुनिकता एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रहार से रिश्तों एवं विश्वास की मजबूत दीवार लगभग ध्वस्त हो चुकी है | ब हम अपनी वै
ज्ञान िक प्रगति पर तो गौरवान्वित हो सकते हैं परन्तु अब शायद हम यह कहने लायक नहीं बच रहे हैं कि "हम एक सभ्य समाज के रहने वाले हैं | ऐस् समय में आज समाज को महापुरुषों की आवश्यकता है जो कि हमारा उचित मार्गदर्शन कर सकें परंतु दुर्भाग्य से वह भी नहीं बचे हैं | जिन्हें समाज अप ना आदर्श मानती है ऐसे सद्गुरुओं ने हीजब मर्यादा को तार तार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है तो , साधा साधारण मनुष्य की क्या औकात है | ऐसे परिवेश को देखकर मुंह से यही निकलता है कि हमैरे देश एवं समाज का अब भगवान ही रखवाला है | आचार्य अर्जुन तिवारी