सृष्टि में मनुष्य के लिए अनेक सम्पदायें और अनेकानेक धन विद्यमान हैं | इन सभी धनों का उपयोग करने के लिए मनुष्य को उसका उपयोग कैसे किया जाय इसका
ज्ञान होना परमावश्यक है | अत: मनुष्य को ज्ञान की नितान्त आवश्यकता है | इससे यह सिद्ध होता है कि ज्ञान संसार की सर्वश्रेष्ठ व बहुमूल्य सम्पत्ति है | यदि मनुष्य ने अपवे जीवन में ज्ञानरूपी धन का संचय करने में आलस्य या प्रमाद किया तो वह मनुष्य संसार का समस्त वैभव होने पर भी निर्धन ही है | क्योंकि संसार की समस्त विभूतियां एवं सम्पत्तियां सारे वैभव आज नहीं तो कल नष्ट हो जायेंगे अर्थात यह संसार ही नश्वर है | महाराज हरिश्चन्द्र , राजा नल एवं अनेकों राजा - महाराजा , बड़े - बड़े सम्राट समय आने पर निर्धन होते देखे गये हैं | परंतु ज्ञान की सम्पत्ति अविनश्वर है | इसो न तो कोई चुरा सकता है और न ही कोई बांट सकता है और न ही यह स्वयं क्षरणशील या घुलनशील है | यह ऐसा धन है जो सदैव मनुष्य के पास बना रहता है | यह नष्ट न होकर दिन - प्रतिदिन विकसित एवं पल्लवित होता रहता है | लौकिक सम्पदायें नि:संदेह शक्तिशाली होती हैं , परंतु यह निश्चित नहीं है कि वह सदैव चिरकाल तक विद्यमान ही रहेंगी | यह सारी लौकिक शक्तियां क्षयशील हैं यह शक्तियां सम्पत्ति के साथ ही नष्ट हो जाती हैं | परंतु ज्ञान की शक्ति ठीक इसके विपरीत अक्षय , अनन्त एवं अमोघ होती है , न तो इसमें क्षयमानता है और न ही क्षरणशीलता | संसार की अनेक शक्तियों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ इस शक्ति के समक्ष अन्य कोई शक्ति सिथिर नहीं रह सकती | ज्ञान की शक्ति यदि मनुष्य के पास है तो वह सहज ही संसार के सारे द्वंदों व विघ्न वाधाओं से स्वयं तो बाहर निकल ही जाता है अपने साथ दूसरों को बाहर निकालने की क्षमता रखता है | यह ज्ञानशक्ति मनुष्य के पास चिरकाल तक बनी रहती है | इस संसार में अधिकतर लोग ज्ञान का तात्पर्य भौतिक शिक्षा समझते हैं। जो जितना पढ़ा-लिखा है, जिसे संसार की जितनी अधिक वस्तुओं और बातों की जानकारी है उसे उतना ही अधिक ज्ञानी मान लेते हैं। भौतिक ज्ञान की आवश्यकता भी कम नहीं है। इसके बिना भी काम रुकता है। खाना, कमाना, रहना-सहना, परिवार का पालन-पोषण, कार-रोजगार, व्यवस्था-प्रबन्ध आदि सारी बातें जीवन में निताँत आवश्यक हैं। इनके लिए साँसारिक ज्ञान की आवश्यकता है। जो जितनी मात्रा में इस दिशा में अनभिज्ञ है वह उतनी मात्रा में उन्नति और प्रगति से वंचित रह जाता है। किन्तु, वास्तविक ज्ञान इस ज्ञान से भिन्न है। उसका क्षेत्र आत्मा है। उसे आध्यात्मिक अथवा आत्मिक ज्ञान कहते हैं। भौतिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान में मूल अन्तर यह है कि भौतिक ज्ञान लौकिक साधनों का आधार तो बन जाता है किन्तु उन साधनों के उद्देश्य, सुख-शान्ति का संवाहक नहीं बन पाता। सब कुछ होने पर यदि सुख-शान्ति नहीं मिलती तो वह सब कुछ भी कुछ नहीं माना जाएगा। सच्ची सुख-शान्ति की उपलब्धि मात्र लौकिक ज्ञान से नहीं मिल सकती उसके लिये आध्यात्मिक ज्ञान की अपेक्षा है। सच्ची सुख-शान्ति का स्त्रोत भौतिक साधन नहीं है। उसका स्त्रोत गुण, कर्म, स्वभाव की उच्चता है। सारे संसार का ज्ञान होने पर भी यदि हम अपने गुण, कर्म, स्वभाव को उन्नत और निष्पाप न बना सके तो यही मानना होगा अभी हम ज्ञान के प्रकाश से रहित और अज्ञान के अंधकार से ग्रसित हैं। जिस क्षण से हमें कुविचारों और दुष्कर्मों से घृणा और सन्मार्ग पर चलने की प्रवृत्ति होने लगे, समझना चाहिए हम ज्ञान की किरणों के संपर्क में आने लगे हैं।