🌸♻🌷♻🌸♻🌷♻🌸♻🌸 *‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼* 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃 *किसी भी समाज के सुसंस्कृत होने की पहचान नारी से होती है। जब-जब नारी का गौरवमय स्थान अपनी महत्ता छोडने लगा है, तब-तब नारी ने उस महत्ता को प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया है !* *नारी को छः गुणों से युक्त माना गया है।* *काव्येषु मंत्री, कर्मेषु दासीं* *भोज्येषु माता, रमणेषु रम्भा* *धर्मानुकूला क्षमया धरित्री* *भार्य्या चा षड्गुण्यवती च दुर्लभा* *अर्थात --- एक पत्नी प्रत्येक कार्य में मंत्री के समान सलाह देने वाली, सेवादि में दासी के समान काम करने वाली, भोजन कराने में माता के समान, शयन के समय रम्भा के समान सुख देने वाली, धर्म के अनुकूल तथा क्षमा जैसे गुणों को धारण करने में पृथ्वी के समान छः गुणों से युक्त स्त्री होती है।* *स्त्रियों में मात्र गुण ही होता है, अवगुण नहीं ऐसा नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार उनमें आठ अवगुण भी हैं- साहस, झूठ, चचंलता, माया, भय, छल, अविवेक, निर्दयता* *नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं !* *अवगुन आठ सदा उर रहहीं !!* *साहस अनृत चपलता माया !* *भय अविवेक असौच अदाया !!* *किन्तु पुरुषों ने नारी के इन गुणों को न समझते हुए नारी को इन्हीं गुणों में रत होना उसके भाग्य को माना है। पुरुषों ने नारी के तो गुण तथा अवगुण निर्धारित करके उसे गुलामी की सीमाओं में बाँध दिया लेकिन कभी भी अपने गुण तथा अवगुणों को निर्धारित नहीं किया।* *क्योंकि हमें अपनी कमियां कभी भी नहीं दिखाई पड़ती हैं !* *फिर जहाँ गुण हैं अवगुण भी वहीं रहते हैं !* 🍀🌞🍀🌞🍀🌞🍀🌞🍀🌞🍀 *यथा सम्भव प्रयास* 🌻🏵🌻🏵🌻🏵🌻🏵🌻🏵🌻