!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! सनातन काल से
भारत देश अपनी आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध रहा है | यहाँ समय समय पर लोक कल्याणार्थ अनेक साधन हमारे मनीषियों द्वारा बताये गये हैं | इन्हीं साधनों में एक मुख्य साधन बताया गया है आदिशक्ति के पूजन का पर्व नवरात्र | उन्हीं नवरात्रों के अन्तर्गत आज से गुप्त नवरात्र प्रारम्भ हो चुका है | विचारणीय है कि आखिर गुप्त नवरात्र क्यों मनाया जाता है | मानव जीवन में प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कुछ चीजें गुप्त होती हैं तो कुछ प्रगट | उसी प्रकार शक्ति भी दो प्रकार की होती है , एक आंतरिक और दूसरी बाह्य | आंतरिक शक्ति का संबंध सीधे तौर पर व्यक्ति के चारित्रिक गुणों से होता है | कहते हैं कि हम क्या है, यह हम ही जानते हैं | दूसरा रूप वह है जो सबके सामने है | हम जैसा दिखते हैं, जैसा करते हैं, जैसा सोचते हैं और जैसा व्यवहार में दिखते हैं | यह सर्वविदित और सर्वदृष्टिगत होता है | लेकिन हमारी आंतरिक शक्ति और ऊर्जा के बारे में केवल हम ही जानते हैं | आंतरिक ऊर्जा या शक्ति को दस रूपों में हैं | साधारण शब्दों में इनको :-- धर्म, अर्थ, प्रबंधन, प्रशासन, मन, मस्तिष्क, आंतरिक शक्ति या स्वास्थ्य, योजना, काम और स्मरण के रूप में लिया जाता है | हमारे लोक व्यवहार में बहुत सी बातें गुप्त होती हैं और कुछ प्रगट करने वाली | यही शक्तियां समन्वित रूप से महाविद्या कही गई हैं | गुप्त नवरात्र दस महाविद्या की आराधना का पर्व है | आज के युग में जिस प्रकार मनुष्य की आध्यात्मिक (आंतरिक) शक्तियों का ह्रास होता जा रहा है , ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक मनुष्य को अपनी आंतरिक शक्तियों के संचय के लिए गुप्त नवरात्रों की आराधना अवश्य करनी चाहिए | गुप्त है क्या यह जान लेना आवश्यक है | श्री दुर्गा सप्तशती में कवच, अर्गला स्तोत्र और कीलक पढ़कर ही अध्याय का पाठ होता है | कीलकम् विशेष है | कीलकम् में कहा जाता है कि भगवान शंकर ने बहुत सी विद्याओं को गुप्त कर दिया | यह विद्या कौन सी हैं? प्रसंग सती का है | भगवान शंकर की पत्नी सती ने जिद की कि वह अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां अवश्य जाएंगी | प्रजापति ने यज्ञ में न सती को बुलाया और न अपने दामाद भगवान शंकर को | शंकर जी ने कहा कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाते हैं | लेकिन सती जिद पर अड़ गईं | सती ने उस समय अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन किया | सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं | सामने काली हैं , नीले रंग की तारा हैं , पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं , मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देती हूं | इन्हीं दस महाविद्याओं के साथ देवी भगवती ने असुरों के साथ संग्राम भी किया | चंड-मुंड और शुम्भ-निशुम्भ वध के समय देवी की यही दश महाविद्या युद्ध करती रहीं। दश महाविद्या की आराधना अपने आंतरिक गुणों और आंतरिक शक्तियों के विकास के लिए की जाती है | यदि अकारण भय सताता हो, शत्रु परेशान करते हों,
धर्म और आध्यात्म में मार्ग प्रशस्त करना हो, विद्या-बुद्धि और विवेक का परस्पर समन्वय नहीं कर पाते हों, उनके लिए दश महाविद्या की पूजा विशेष फलदायी है | गुप्त नवरात्र मानव को स्पष्ट संकेत देता है कि अपनी वाह्य शक्तियों के साथ आंतरिक शक्तियों को भी सुदृढ बनाते रहना चाहिए |