*इस संसार में प्राय: लोगों के मुख से दो शब्द सुनने को मिल जाया करते हैं :- १- त्याग , २- तपस्या | त्याग एक अनोखा शब्द है , त्याग में ही जीवन का सार छुपा हुआ है | त्याग करके ही हमारे महापुरुषों ने जीवनपथ को आलोकित किया है | जिसने भी त्याग की भावना को अपनाया उसने ही जीवन में उच्च से उच्च मानदंड स्थापित किया है | जीवन का सच्चा सुख त्याग में ही है | सुखी जीवन की व्याख्या करते हुए योगेश्वर श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि :- त्याग करने से मनुष्य को तत्काल शांति मिलती है और जहाँ शांति है वहीं सुख | संसार में सुख की कामना प्राय: सभी करते हैं ओर भगवान श्री कृष्ण के अनुसार बिना त्याग किये शांति नहीं ओर बिना शांति सुख नहीं | तो त्याग किसका और कैसे किया जाय ??? क्या परिवार , समाज से विमुख हो जाना त्याग है ?? शायद नहीं ! परिवार व समाज को त्याग कर अनेक लोग योगी , यती , संयासी बन गये तो क्या उन्हें सुखी मान लिया जाय ?? शायद वे भी सुखी नहीं है | तो त्याग क्या है ? मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सद्गुरुओं एवं पुराणों के माध्यम से आज तक जो जान पाया हूँ वह यही है कि त्याग अपनी विषय वासनाओं का किया जाय | काम , क्रोध , मद , मोह , लोभ , मात्सर्य , अह्कार का त्याग ही सच्चा त्याग है | इनको त्याग कर देखिये हृदय का ज्वर शांत हो जायेगा ! जब हृदय ज्वर शान्त हो जायेगा तो सुखानुभूति अवश्य होगी | मनुष्य परिवार का त्याग कर तीर्थाटन करने तो चला जाता है परंतु उसे शांति नहीं मिलती क्योंकि वह एक मिनट के लिए भी इन विकारों का त्याग नहीं कर पाता है |* *आज चकाचौंध के युग में अनेक लोग अपने नाम के पीछे त्यागी लगाते हुए देखे जा सकते हैं | परंतु उनका चरित्र देखा जाय तो एक गृहस्थ से भी बदतर ही दिखायी पड़ता है | क्योंकि उन्होंने सिर्फ अपना परिवार व समाज त्यागा है परंतु अपनी विषयासक्ति का त्याग नहीं कर पाये हैं | विलासिता में आकण्ठ तक डूबे हुए ऐसे लोगों को त्यागी कैसे कहा जा सकता है | यह सत्य है कि मनुष्य की कुछ आवश्यक आवश्यकतायें हैं | परंतु यह भी सत्य है कि प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकताये ईश्वर पूर्ण करता है | जब मनुष्य की आवश्यक आवश्यकतायें पूर्ण हो जायं तो विचार करने का समय होता है कि अब हम किस मार्ग पर जायं | ईश्वर की अनुभूति करने और समाज में उच्च मानदंड स्थापित करने के लिए त्याग की भावना को अंगीकार कर, उस पथ पर बढ़ने की आवश्यकता होती है | उस मार्ग में व्यक्तिगत व शारीरिक सुखों का त्याग करना होगा | उन सभी आसक्तिओं को छोड़ना होगा, जो मानव जीवन को संकीर्णता की ओर ले जाने वाली होती है | तब यही त्याग वृत्ति अंत:करण को पवित्र कर भीतर के तेज को देदीप्यमान करती है | हमारे
देश भारत में त्याग की परंपरा पुरातनकाल से चली आ रही है | आसक्ति से विरत हो जाने वालों की यहां पूजा की जाती है | भगवान राम द्वारा अयोध्या के राज्य को एक क्षण में त्याग देने जैसे स्थापित किए गए आदर्श को संसार पूजता है | राज्य का त्याग कर वन में जाने से उन्होंने समाज में उच्चतम मानदंड स्थापित किया | साथ ही लोगों को धर्म, अध्यात्म,
ज्ञान व भक्ति के मार्ग की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा भी प्रदान की | त्याग से मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सच्चे सुख व शांति का लाभ पाता है, वहीं समाज को भी उच्च आदर्शों के मानदंड बरकरार रखने की प्रेरणा प्रदान करता है |* *यदि सच्चे सुख की कामना है तो हृदय में प्रतिपल ज्वारभांटे की तरह उठ रही कुत्सित भावनाओं का त्याग करना ही होगा | अन्यथा सम्पूर्ण जीवन अशांति में व्यतीत हो जायेगा |*