
‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ *सनातन
धर्म जितना वृहद एवं रहस्यात्मक उतना ही वृहद एवं रहस्यात्मक सनातन साहित्य भी है |
भारत भूमि में अनेकों साहित्यकार एवं चिंतक तथा कवि हुए हैं | उनकी रचनाओं में कहीं ना कहीं अद्भुत रहस्य छुपा होता है | किसी कवि ने लिखा है ------- सुना सुनी की है नहीं , देखा देखी बात | दूल्हा दूल्हन मिल गए , फीकी पड़ी बारात | इस दोहे का अर्थ सभी ने अपने - अपने अनुसार कहा है | प्रथमदृष्ट्या ध्यान दिया जाय तो इसका सीधा सा अर्थ होता है कि --- विवाह संस्कार में बारात जब कन्या के दरवाजे पर पहुंचती है तब तक तो सारे बाराती बहुत प्रसन्नता में व्यवहार करते रहते हैं ! परंतु जैसे ही वर कन्या का पाणिग्रहण हो जाता है सारे बाराती एवं घराती लगभग उत्साहहीन हो जाते हैं , और बारात फीकी पड़ जाती है | पूर्व समय में यह कार्य विवाहोपरांत विदाई के समय होता था , परंतु आजकल जैसे बारात दरवाजे पर पहुंचती है द्वार पूजन के बाद जयमाल के मंच पर जब वर - कन्या का मिलन होता है उसी समय सारे बाराती अपने घर की ओर चल देते हैं , और बारात की शोभा फीकी हो जाती है | बारातियों की भूमिका सिर्फ दूल्हे को कन्या के दरवाजे तक पहुंचाने भर की रहती है पूरी साज - सज्जा के साथ प्रसन्नतापूर्वक वाद्ययंत्रों पर नृत्य करते हुए बाराती कन्या के दरवाजे तक पहुंचते हैं , उसके बाद फिर बारातियों को कोई पूछने वाला या फिर बारातियों के द्वारा दूल्हे की चिंता किए बिना अपना अपना मार्ग पकड़ लिया जाता है | इसका सीधा सा अर्थ हुआ यह सारे बाराती वर और कन्या को आपस में मिलाने के लिए उपस्थित होते हैं |* *इस दोहे का अर्थ अध्यात्मिक क्षेत्र के चिंतकों ने बहुत ही दिव्य निकाला है | अध्यात्म के क्षेत्र में यदि दूल्हा-दूल्हन सब पर विचार किया जाय तो बड़ा गूढ रहस्य ऋषियों ने समझाने का प्रयास किया है | संसारिक दूल्हा दूल्हन से ऊपर उठते हुए हमारे मनीषियों ने दूल्हा - दूल्हन की उपमा आत्मा एवं परमात्मा को दी है | जिसमें परमात्मा को दूल्हा एवं आत्मा को दुल्हन माना गया है | जब आत्मा रूपी दुल्हन परमात्मा रुपी अपने दूल्हे से मिलने के लिए संसार रूपी मायके को छोड़कर चलती है तो गांव के लोग , नातेदार , रिश्तेदार सब बाराती बन जाते हैं | और यह बाराती तभी तक रहते हैं जब तक आत्मा का परमात्मा संपूर्ण मिलन नहीं हो जाता है , अर्थात जब तक इस शरीर को चिता पर रखकर अग्निदाह नहीं कर दिया जाता है | अग्निदाह करने के बाद जैसे ही कपाल क्रिया होती है श्मशान में आत्मा रूपी दुल्हन के साथ आए हुए सारे बाराती अपने घरों की ओर चल देते हैं और बारात फीकी पड़ जाती है | यह सांसारिक बारात की अपेक्षा कुछ दूसरी तरह की
आध्यात्मिक बरात होती है | जिसमें दूल्हा स्वयं परमात्मा और दुल्हन आत्मा को माना गया है | वैसे भी हमारे यहां यह कहा जाता है मनुष्य का विवाह दो बार होता है , एक बार तो संसार में रहकर के वह बारात जाता है और दूसरा विवाह शरीर छोड़ने के बाद उस परमात्मा के साथ अपने बंधुओं के द्वारा संपन्न कराया जाता है |* *यह है सनातन विचारकों - साहित्यों का आध्यात्मिक चिंतन | इस प्रकार यदि उपरोक्त दोहे पर ध्यान दिया जाए तो यह सत्य ही लगता है कि------ "दूल्हा दुल्हन मिल गये , फीकी पड़ी बारात" |*