!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! सनातन
धर्म में मनुष्य को सत्मार्ग पर चलने एवं हृदय में सद्विचार उत्पन्न करने के लिए हमारे ऋषियों - महर्षियों ने समय समय पर मार्गदर्शन करते हुए अनेकों व्रत - त्यौहार एवं यम - नियम के पालन करने का निर्देश करते रहे हैं | प्रत्येक मनुष्य हर नियम का पालन नहीं कर सकता इसको दृष्टिगत रखते हुए उसका उपाय भी यहाँ बताया गया है | सनातन
धर्म में व्रतों - त्यौहारों की एक लम्बी सूची है , इन सभी व्रतों में सर्वोत्तम "एकादशी" का व्रत माना गया है | प्रत्येक सनातनी को यह निर्देश है कि कोई व्रत रहे या न रहे परंतु एकादशी का व्रत अवश्य रहना चाहिए | यदि कोई वर्ष भर की "एकादशी" का व्रत न रह पाये तो उसके लिए ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष की "एकादशी" ( जिसे निर्जला एकादशी कहते हैं) का व्रत रह लेने से वर्ष भर की एकादशी के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है | यह विधान स्वयं वेदव्यास जी ने पांडुपुत्र भीमसेन को बताया था ! क्योंकि भीम के उदर में वृक नामक अग्नि थी जिसके कारण उनको भूख बहुत लगती थी और वे कोई भी व्रत नहीं रह पाते थे , शेष सभी पांडव वर्ष भर एकादशी का व्रत रहते थे इससे भीम को आत्मग्लानि हुई | उनकी आत्मग्लानि को देखते हुए वेदव्यास जी ने उन्हें ज्येष्ठमास के शुक्लपक्ष की एकादशी का "निर्जल" (बिना जल पिये) व्रत रहने का निर्देश देते हुए कहा कि अकेली यही एकादशी का निर्जल व्रत वर्ष भर की एकादशियों का सत्फल देने में सक्षम है | भीम द्वारा यह व्रत किये जाने के कारण ही इसे "भीमसेनी एकादशी" के नाम से जाना जाने लगा | आज का मनुष्य पानी का महत्व न समझकर जिस प्रकार उसे बरबाद करता है , जल संरक्षण के उपायों से विमुख हो रहा है ऐसे समय में बिना जल के जीवन कैसे हो सकता है यह आभास हो जाय इसके लिए मात्र एक दिन बिना जल के रहकर "निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य रहना चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कभी - कभी विचार करता हूँ कि -- भारतीय ऋषि और मनीषी मात्र तपस्वी एवं त्यागी ही नहीं थे, उनके कुछ प्रयोगों, व्रतों, उपवासों, अनुष्ठानों के विधि-विधान एवं निर्देशों से तो प्रतीत होता है कि वे बहुत ऊँचे दर्जे के मनस्विद, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विचारक भी थे | अब ज्येष्ठ मास (मई-जून) में जब गर्मी अपने चरम पर हो, ऐसे में निर्जला एकादशी का नियम-निर्देश केवल संयोग नहीं हो सकता | यदि हम ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में एक दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक बिना पानी के उपवास करें तो बिना बताए ही हमें जल की आवश्यकता, अपरिहार्यता, विशेषता पता लग जाएगी- जीवन बिना भोजन, वस्त्र के कई दिन संभाला जा सकता है, परंतु जल और वायु के बिना नहीं | शायद उन दूरदर्शी महापुरुषों को काल के साथ ही शुद्ध पेयजल के भीषण अभाव और त्रासदी का भी अनुमान होगा ही- इसीलिए केवल प्रवचनों, वक्तव्यों से जल की महत्ता बताने के बजाए उन्होंने उसे व्रत श्रेष्ठ एकादशी जैसे सर्वकालिक सर्वजन हिताय व्रतोपवास से जोड़ दिया | आईये ! हम "निर्जला एकादशी" का व्रत रहकर पुण्यार्जन के साथ जल संरक्षण का आंशिक प्रयास अवश्य करें |