जब सृष्टि के आदि में परमपिता परमात्मा ने सृष्टि की रचना की तभी से समस्त सृष्टि का काल विभाजन करते हुए उसी के अनुसार मनोवृत्ति उत्पन्न करने की व्यवस्था की | सनातन धर्म में सृष्टि से महाप्रलय पर्यन्त चार युगों का वर्णन मिलता है | ये चारों युग है -- सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग और कलियुग | इन चारों युगों में से तीन युग बीत चुके हैं और वर्तमान में कलियुग चल रहा है | हमारे पुराणों में वर्णन मिलता है कि कलियुग में राजा एवं प्रजा दोनों ही निरंकुश हो जायेंगे | अबलायें सुरक्षित नहीं रहेंगी | मनुष्य संस्कारों से हीन होते चले चले जायेंगे | आज वह सब सत्य होता दिख रहा है | मनुष्य में संस्कार परिवार एवं गुरुजनों के द्वारा दिव्य उपदेशों एवं सतसंगों के माध्यम से आता है | परंतु अब वह युग आ गया है कि लोग सतसंग में जाना ही नहीं चाहते और यदि चले भी गये हैं तो वहाँ से कुछ लाने की अपेक्षा अपना सारा समय कुतर्कों में ही व्यतीत कर देते हैं | कलियुग में मनुष्य में सिर्फ स्वयं के सम्मान कराने में ही आनंद की अनुभूति होती है , वह स्वयं दूसरों का सम्मान करने में असहज हो जाता है | अब विचारणीय यह है कि आज के मनुष्य पूर्व के युगों का दर्शन तो किया नहीं है , तो वह यह समझ नहीं पाता कि पूर्वयुगों के मनुष्य किस प्रकार रहे होंगे और उनके क्रिया कलाप क्या रहे होंगे ??? सकल सृष्टि के प्राणियों में तीन गुण विद्यमान होते हैं -- सत्त्व , रज , तम | कर्मानुसार ये तीनों ही गुण मनुष्य में समय - समय पर पतित एवं विकसित होते रहते हैं | इन्हीं के अनुसार एक ही मनुष्य में चारों युगों का दर्शन किया जा सकता है | उदाहरणार्थ ---- जिस समय मन , बुद्धि और इन्द्रियाँ सत्त्वगुण में स्थित होकर अपना - अपना कार्य सकारात्मकता से करने लगें तब यह समझना चाहिए कि यह ----"सतयुग"----- है | सत्त्वगुण की प्रधानता से मनुष्य
ज्ञान और तपस्या से अधिक प्रेम करने लगता है | जब मनुष्य धर्म , अर्थ और लोकिक - पारलौकिक सुख - भोगों की ओर आकृष्ट होने लगे एवं शरीर , मन एवं इन्द्रियाँ रजोगुण में स्थित होकर कार्य करने लगे तो तब यह समझना चाहिए कि यह -------- "त्रेतायुग"------- है | जब मनुष्य लोभ , असन्तोष , अभिमान , दम्भ और मत्सर आदि के वशीभूत होकर उत्साह एवं रुचि के साथ सकाम कर्म करने लगता है तो समझना चाहिए कि यह ------"द्वापरयुग" ------ है | और जब मनुष्य झूठ - कपट, तन्द्रा - निद्रा, हिंसा - विषाद, शोक - मोह, भय और दीनता के अधीन होते हुए तमोगुणी कृत्य करने लगे तो यह मान लेना चाहिए कि अब ----- "कलियुग"-------- है | इस प्रकार मनुष्य यदि देखना चाहे तो वह किसी भी मनुष्य में ही चारों युगों का दर्शन कर सकता है | वैसे तो चारों युगों में पहला युग सतयुग है | यह मनुष्य के जीवन में पहले आना चाहिए | परंतु कलियुग के प्रभाव से सब कुछ उल्टा ही हो रहा है |* आज मनुष्य जब चौथेपन में प्रवेश करता है तब वह सतयुग के कर्म करना प्रारम्भ करता है | परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी होती है |