*सनातन संस्कृति में समय समय पर्वों त्यौहारोंं के माध्यम से अपने आदर्शों को स्मृति में बनाये रखने की अलोकिक परम्परा रही है | इसी क्रम में एक महत्वपूर्ण पर्व है - "गुरू पूर्णिमा" | प्रत्येक मनुष्य के जीवन में गुरु का महत्वपूर्ण योगदान होता है | गुरु की व्याख्या कर पाना सम्भव नहीं है | अंधकार से प्रकाश में लाकर जो आपको खड़ा कर दे वही आपका गुरु है | सृष्टि प्रथम गुरु वैसे तो गुरुदेव वृहस्पति हैं परन्तु संसार को अज्ञान रूपी अंधकार से वेदों के ज्ञानरूपी प्रकाश में लाने का श्रेय भगवान वेदव्यास जी को ही मिलता है क्योंकि उनके कर कमलों से ही वेदों के दुर्लभ
ज्ञान को अठारण पुराणों में विभाजित करके आम जनमानस के लिए सुलभ बनाने का कार्य किया गया | यही कारण है कि उनको प्रथम गुरु की संज्ञा देते हुए उनके प्राकट्य दिवस (आषाढ पूर्णिमा) को गुरू पूर्णिमा कहा जाता है | आषाढ पूर्णिमा का अपना रहस्य है कैसे ?? -- गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह | आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों | शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं | वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं | उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है. इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है | इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी. यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है |* *मानव के सम्पूर्ण जीवन में कई प्रकार के गुरुओं से मिलने का संयोग प्राप्त होता है | कबा गया है कि यदि किसी से भी कुछ सीखने योग्य ज्ञान मिल जाय तो उसे गुरु मान लेना चाहिए | जैसे कि कहा भी गया है :-प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ! शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः !! अर्थात :-प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, (सच) बतानेवाले, (रास्ता) दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले – ये सब गुरु समान है | इसी क्रम में भगवान दत्तात्रेय जी ने सत्ताइस गुरु बनाये थे | परंतु इन सभी गुरुओं में श्रेष्ठ स्थान दीक्षागुरु को प्राप्त है | सद्गुरु भगवान को ब्रह्मा , विष्णु , महेश कहा गया यह उपमा भी कम लगी तो गुरुसत्ता को साक्षात परब्रह्म की उपाधि दे दी गयी | परमात्मा का कार्य है सृजन करना , तो एक सद्गुरु भी मनुष्य योनि में जन्मे जीव को मनुष्यता प्रदान करने (सृजन करने) का कार्य करता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का कहना है कि गुरुसत्ता की महिमा का बखान शेष - शारदा भी नहीं कर पाये हैं तो हम आप कभी नहीं कर सकते हैं | हाँ इतना अवश्य कह सकता हूँ कि सभी को अपने दीक्षागुरु के चरण शरण में पहुँचने का प्रयास अवश्य करना चाहिए यदि न सम्भव हो तो उनका चित्र रखकर मानसिक पूजन करके उनके चरणों का करते हुए संचार माध्यमों से उनसे वार्ता करके आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करना चाहिए | जीवन में गुरु और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है | व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए |* *गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए |*