‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ इस समस्त संसार में कोई भी ऐसा मनुष्य न हुआ है और न ही होगा जिसके मन में कभी कोई जिज्ञासा न प्रकट हुई हो | प्रत्येक मनुष्य के हृदय प्रतिपल नये - नये प्रश्न उठा करते हैं | प्रश्न मनुष्य के अन्तर्मन में उपजे हुए वे सवाल होते हैं जिनका समाधान पाने के लिए मनुष्य स्वयं उत्सुक , जिज्ञासु तो रहता ही है, साथ ही कभी - कभी तो उचित समाधान न मिलने पर जिज्ञासु पहले तो परेशान परंतु बाद में व्यग्र एवं उग्र हो जाता है | मन में उपजते प्रश्न काँटे की तरह मनुष्य के हृदय में तब तक चुभते रहते हैं जब तक उसे उचित उत्तर नहीं मिल जाता | व्यक्ति के अंदर कुछ नया जानने की इच्छा ही प्रश्न उत्पन्न करती है | किसी भी तरह की समस्या हो तो वह भी प्रश्न के साथ सम्मुख खड़ी हेकर आगे बढने का मार्ग अवरुद्ध करती रहती है | प्रश्न का समाधान ही मानसिक शांति के मार्ग के अवरोधों को दूर करता है | प्रश्न जितना विकट व गहरा होता है , उसका समाधान भी उसी स्तर का होता है तब मनुष्य को समाधान मिल जाने पर गहन संतोष प्राप्त होता है | जब तक हम जीवित हैं तब तक अनगिनत जिज्ञासायें हमारे मन में उपजती ही रहेंगी , जो अपना उचित समाधान चाहेंगी | प्राय: हम इन जिज्ञासाओं पर ध्यान नहीं देते , परंतु जो प्रश्न हमें बेचैन करते हैं और उनके समाधान के लिए हम भटकते अवश्य हैं | और इसी क्रम में हम धीरे - धीरे समझदार व अनुभवी भी होते जाते हैं | हमारे वेद , उपनिषद, गीत, पुराण आदि ग्रंथों आधार भी किसी न किसी प्रश्न रहे हैं , जिनके समाधान ही खोजने के क्रम में इनका प्रादुर्भाव हुआ | हमारे जीवन में कुछ प्रश्न ऐसे भी होते हैं जिनका जबाब खोजने पर भी हमें नहीं मिल जाता और हम नकारात्मक होकर भटक जाते हैं | प्रश्नों का स्रोत व समाधान खोजने के लिए हमारे ऋषि - मुनियों ने अपने शरीर को ही प्रयोगशाला बनाया और इसी में भाँति - भाँति के प्रयोग करके
ज्ञान रूपी अमृत को मंत्र रूप में प्रकट किया | उन्होंने सृष्टि व जीवन के रहस्य को जाना और उस समाधि को भी जाना जहाँ पहुँचकर कोई भी प्रश्न फिर प्रश्न नहीं रह जाता वहाँ मात्र समाधान ही शेष मिलता है | मनुष्य जीवन ईश्वर की ओर से प्राप्त अनुपम उपहार है , इसें सब कुछ समाया हुआ है | मनुष्य अपने को जान ले तो समझ लो वह सब कुछ जान गया | जब मनुष्य ऐसी स्थिति में पहुँचता है तो वह आत्मस्थ हो जाता है | हमारे देश में समय समय पर अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन में आत्मज्ञान प्राप्त किया और इस प्रकाश को पाने हेतु औरों का भी मार्ग प्रशस्त किया | हमारा जीवन अनगिनत प्रश्नों की एक किताब की तरह है , जिसका एक - एक पृष्ठ हमारे एक - एक दिन की तरह है , किताब के अगले पृष्ठ में क्या लिखा है हमें नहीं मालूम होता है | जो पृष्ठ खुला हुआ है वह हमारी जन्म से लेकर अभी तक की
यात्रा है , जिसमें हमने अभी तक के प्रश्नों का समाधान पाया , अनुभव किया और जिन प्रश्नों का जबाब नहीं मिला उन्हें आगे के पृष्ठों में खोजने का प्रयास किया और संघर्ष करके निरंतर आगे बढते गये | मनुष्य के मन में सबसे पहले यह जिज्ञासा उत्पन्न होनी चाहिए कि हम कौन हैं ??? स्वयं को जानने का प्रयास करना चाहिए ! जिस दिन मनुष्य स्वयं को जान जाता है फिर कोई जिज्ञासा शेष नहीं रह जाती |