*इस धरती पर मनुष्यों के लिए चार पुरुषार्थ बताये गये है |
धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष | इन चारों पुरुषार्थों को पुरुषार्थचतुष्टय भी कहा जाता है | धर्म के बाद दूसरा स्थान अर्थ का है | अर्थ के बिना, धन के बिना
संसार का कार्य चल ही नहीं सकता | जीवन की प्रगति का आधार ही धन है | उद्योग-धंधे, व्यापार,
कृषि आदि सभी कार्यो के निमित्त धन की आवश्यकता होती है | यही नहीं, धार्मिक कार्यो, प्रचार, अनुष्ठान आदि सभी धन के बल पर ही चलते हैं | अर्थोपार्जन मनुष्य का पवित्र कर्त्तव्य है | इसी से वह प्रकृति की विपुल संपदा का अपने और सारे समाज के लिए प्रयोग भी कर सकता है और उसे संवर्द्धित व संपुष्ट भी | पर इसके लिए धर्माचरण का ठोस आधार आवश्यक है | सुख प्राप्त करने के लिए सभी अर्थ की कामना करते हैं | भूमि, धन, पशु, मित्र, विद्या, कला व कृषि सभी अर्थ की श्रेणी में आते हैं | इनकी संख्या निश्चित करना सम्भव नहीं है क्योंकि यह मानव जीवन की आवश्यकताओं पर निर्भर करती है | मनुष्य स्वभावतः कामना प्रधान होता है, यह कहना भी गलत नहीं होगा वह कामनामय होता है | इन सभी कामनाओं की पूर्ति का एक मात्र साधन अर्थ है | धर्म का मूल भी कहीं न कहीं से धन ही है |* *आज के परिवेश में इन चारों पुरुषार्थों में से धर्म एवं मोक्ष गौड़ हो गये हैं | आज का मनुष्य मात्र अर्थ एवं काम के लिए ही परेशान दिखाई पड़ रहा है | अर्थोपार्जन करने के लिए दिन का चैन रात की नींद तक की परवाह न करके लगा रहता है | क्योंकि आज के महंगाई के युग में बिना धन के कोई भी कार्य नहीं होना चाहता है | पहले यदि किसी के यहाँ कोई धार्मिक या वैवाहिक कार्यक्रम होता था तो लोग अगल - बगल से बर्तन , चारपाई एवं बिस्तर आदि की व्यवस्था कर लेते थे | परंतु आज न तो कोई मांगना चाहता है और न ही कोई देना ही चाहता है | सब धन के बल पर ही हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज के कुछ मनुष्य धन कमाने के लिए कोई भी मार्ग अपनाने को तैयार हो जाते हैं | ऐसे लोगों का मानना है कि धन आना चाहिए वह चाहे मेहनत का हो या अन्याय से कमाया हुआ | न्याय - अन्याय का ध्यान न देकर मनुष्य अंधाधुंध धनोपार्जन में लगा है | परंतु ऐसे मनुष्यों को सावधान करते हुए "आचार्य चाणक्य" कहते है :-"अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति ! प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति !! अर्थात :- लक्ष्मी वैसे ही चंचल होती है परन्तु चोरी, जुआ, अन्याय और धोखा देकर कमाया हुआ धन भी स्थिर नहीं रहता, वह बहुत शीघ्र ही नष्ट हो जाता है | अतः व्यक्ति को कभी अन्याय से धन के अर्जन में प्रवृत्त नहीं होना चाहिए | ऐसा धन कमाने वालों को सावधान होने की आवश्यकता है |* *धन की आवश्यकता तो सबको है , परंतु मनुष्य को चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए | और अर्थोपार्जन करते समय यह अवश्य ध्यान देना चाहिए कि यह धन किस मार्ग से आ रहा है |*