*संसार में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसने सामाजिक एवं संस्कारिक होने का स्थान प्राप्त किया है | मनुष्य ने जहाँ एक ओर वेदों के तथ्य को मानते हुए वै
ज्ञान िक अनुसंधान किये हैं वहीं दूसरी ओर अनेक सिद्ध पुरुषों ने भक्तिमार्ग में भी उच्च स्थान प्राप्त किया है | मनुष्य के जीवन की दिशा का निर्धारण उसके संस्कार एवं परिवेश पर तो निर्भर ही होती है परंतु इसमें मुख्य भूमिका मनुष्य के रहन - सहन एवं खान - पान की भी होती है | हमारे महापुरुषों ने कहा है -- "जैसा खाओगे अन्न , वैसा बनेगा मन ! जैसा पियोगे पानी , वैसी ही निकलेगी वानी !!" जैसा मनुष्य का भोजन होता है उसका चरित्र बनता जाता है | भोजन तीन प्रकार के हैं-सात्विक, राजस तथा तामस | सात्विक भोजन सबसे उत्कृष्ट माना गया है, क्योंकि इससे मन पवित्र होता है, तथा आत्मिक शक्ति बढ़ती है | आत्मिक बल ही मनुष्य का सच्चा बल है | सात्विक भोजन से निकृष्ट वृत्तियाँ तत्काल दब जाती है, विलासप्रियता का विनाश हो जाता है, सद्भाव जागृत होकर शान्ति का प्रादुर्भाव होता है, पापी से धर्मात्मा तथा व्यभिचारी से ब्रह्मचारी बन जाता है, आध्यात्मिक तथा नैतिक शक्तियों का विकास होता है | साँसारिक प्रपंच से उद्धार पाने की उत्कण्ठा जागृत होता है, विवेक और वैराग्य होता है। अतएव मनुष्य को ऐसा भोजन करना चाहिए जिससे मन प्रसन्न रहे, ब्रह्मचर्य की रक्षा हो, धार्मिक विचार तथा तीव्र बुद्धि हो, एवं अपनी पुरानी बुरी आदतों, कुविचारों, कुसंस्कारों तथा कुवासनाओं का उन्मूलन हो जाय |* *कुछ लोग तामसी भोजन (मांस आदि ) करके अपना जीवन नष्ट करने के साथ - साथ राक्षसी प्रवृत्ति के हो जाते हैं | क्योंकि भोजन का प्रभाव उनके जीवनशैली पर स्पष्ट झलकता है | तामसी भोजन प्राप्त करने के लिये पहले मनुष्य को तामसी बनना पड़ेगा अर्थात किसी का मांस प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम उस जीव की हत्या करनी पड़ेगी और यह कार्य कोई राक्षस ही कर सकता है | यह सुंदर शरीर परमात्मा ने मनुष्य को प्रदान किया है कि वह पूर्व के जन्मों में किये गये दुष्कर्मों का प्रायश्चित करके आगे के जन्मों के लिए मार्ग सुगम करने का प्रयास करे | प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का ही निवास है इसीलिए इस शरीर को परमात्मा का मंदिर कहा गया है और जब मनुष्यों के द्वारा यह शरीररूपी मंदिर भक्षाभक्ष खाकर अपवित्र किया जाता है तो विचार कीजिए कि वह परमातत्मा कितना प्रसन्न होगा | मांस, अण्डे, शराब, बासी, जूठा, अपवित्र आदि तामसी भोजन करने से शरीर एवं मन-बुद्धि पर घातक प्रभाव पड़ता है, शरीर में बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं | मन तामसी स्वभाववाला, कामी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, चिंताग्रस्त हो जाता है तथा बुद्धि स्थूल एवं जड़ प्रकृति की हो जाती है। ऐसे लोगों का हृदय मानवीय संवेदनाओं से शून्य हो जाता है | ऐसा व्यक्ति भक्तिपथ तो क्या ढंग से सामाजिकता भी नहीं प्राप्त कर पाता | क्योंकि भोजन के प्रभाव से वह कामी एवं क्रोधी होकर जगह - जगह पर विवाद किया करता है | इसलिए यह आवश्यक है कि आज पुन: मनुष्य सात्विकता को प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम अपने खान - पान को सुधारे |* *यदि प्रत्येक भारतीय सात्विक भोजन पर निर्वाह करने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर ले तो विषमता की प्रज्वलिताग्नि से भारत फिर छुटकारा पाकर ऋषियों की भूमि बन जाय |*