!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *मनुष्य को ईश्वर ने अनेक उपलब्धियाँ प्रदान की हैं | मनुष्य के व्यवहार का जीवन में बहुत बड़ा पिरफाव पड़ता है | जहाँ मनुष्य में सौम्यता एवं गम्भीरता का होना आवश्यक है वहीं प्रत्येक मनुष्य को समय समय पर हंसना भी आवश्यक है | ईश्वर ने मनुष्य को जो अनमोल उपहार दिये हैं उनमें हंसी ईश्वर प्रदत्त एक अनुपम उपहार है | हंसमुख व्यक्ति जीवन में कभी निराश नहीं होते, वे कभी निराशा की बात नहीं करते | प्रसन्नता मन में उमंग जगाती है तथा बुध्दि को निर्मल एवं दुर्भाव रहित करती है | हंसने की क्रिया से शरीर को वैसी ही ऊर्जा और ताजगी मिलती है, जैसी गहरी नींद सोने के बाद मिलती है | प्रसन्नता अनेक रोगों की रामबाण औषधि है | हंसते हुए एवं मुस्कुराते हुए जीवन की पहली शर्त है 'वर्तमान में जीना |' जो व्यक्ति भूत और भविष्य की चिंता से मुक्त रहता है, वही व्यक्ति जीवन का वास्तविक आनंद पाता है | संघर्ष और कष्टों का हंसते-हंसते मुकाबला करता है | समय बीत जाने पर वापस नहीं आता, इसलिए अतीत की चिंता में जीने वाले लोग हंसी से वंचित रह जाते हैं | मुस्कुराते हुए लोग निश्चिंत होकर बड़े-बड़े संकटों को पार कर आगे बढ़ जाते हैं | यदि कोई आपसे नाराज हैं तो मुस्कराकर उसके मन को जीता जा सकता है | यदि द्वेष और आपसी तनाव या कटुता है तो उसे मुस्कुराहट के बल पर दूर किया जा सकता है | जिसके चेहरे पर मुस्कान नहीं होती है, वे जीवन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हैं | क्रोध, चिंता, तनाव एवं उदासी से ग्रस्त चेहरे अनेक प्रकार के भ्रम का कारण बनते हैं | हंसता-मुस्कुराना किसी के लिए भी सबसे सरल है, क्योंकि हंसने के लिए न तो किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता है और न ही किसी नियम की | बस, अपने आसपास नजरें घुमाओ और तैयार हो जाओ हंसने के लिए | जीवन हंसी के सार से भरपूर है | बस जरूरत है तो उसमें डूबकर तैरने की | मुस्कुराहट बिखेरें तो दु:ख का आभास और अनुभूति कम हो जाती है |* *आज चकाचौंध दुनिया के व्यस्ततम जीवन में न जाने क्यों हमारे-आपके चेहरों से हंसी-मुस्कुराहट गायब होती जा रही है | ऐसा लगता है जैसे हम हंसना - मुस्कराना भूलते जा रहे हैं | दिखाने को हम कभी-कभी नकली हंसी हंस भी लेते हैं पर सच यह है कि हृदय से निकली हुई हंसी अब कम ही देखने को मिलती है | हंसना
स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है, इससे अनेक बीमारियां स्वत: ही दूर हो जाती हैं | यह लगभग प्रत्येक मनुष्य जानता है फिर भी व्यक्ति कभी जी भरकर हंस नहीं पाता है | उसके साथ अनेक मजबूरियां और परिस्थितियां हैं, जिसके रहते वह न रो पाता है और न हंस पाता है | कभी-कभी अकेले में रो तो लेता है परन्तु हंसने की स्थिति कभी नहीं आ पाती है | एक समय था, जब लोग खूब हंसते-हंसाते थे और सामूहिक हास्य के भी आयोजन होते थे | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इतना कहना चाहूँगा कि आवश्यक गंभीरता को ओढ़ना मानसिक तनाव और वर्तमान स्थिति से गहरा असंतोष हंसी के मार्ग में प्रमुख बाधक है | इनसे छुटकारा पाने के लिए जो मन:स्थिति एवं वातावरण चाहिए, वह आदमी के पास आज के समय में कठिनाई से उपलब्ध हो पाती है, लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि वर्तमान की अति व्यस्त और औपचारिकता से भरी जिंदगी में हंसने, मुस्कुराने के क्षण भी हम नहीं ढूढ़ सकते हैं | जीवन के संघर्ष, तनाव, चिंता, वाद-विवाद, सुख-दु:ख, झगड़े-झंझट तो चलते ही रहते हैं, लेकिन इन सबके रहते ही हम रोज कुछ क्षण सहज, सरल बनकर हंसने मुस्कुराने के लिए भी निकाल सकते हैं | हंसने में कंजूसी स्वास्थ्य के लिए निश्चित रूप से हानिकारक है | अत: हंसने मुस्कुराने में कभी कंजूसी नहीं कीजिए स्वयं हंसिए और दूसरों को भी खूब हंसाइए, क्योंकि हंसना ही जिंदगी है | http://acharyaarjuntiwariblogspot.com/