🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸🌞🌸 ‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ 🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻☘🌻 इस ब्रह्ममय सृ्ष्टि में वह परमपिता परमात्मा कण-कण में समाया है | भारतीय वांग्मय में ईश्वर की पूजा दो प्रकार से की जाती रही है | साकार एवं निराकार | जो कुछ इस संसार में इन भौतिक आँखों से दिखाई देता है, यह सब ईश्वर का साकार रूप है। किसी न किसी रूप में हमें ईश्वर के दर्शन होते ही रहते हैं। यह जो कुछ दिखाई पढ़ रहा है, ईश्वर का ही साकार दर्शन समझना चाहिए | हमें चाहिए कि इसी साकार ईश्वर की पूजा में जनता जनार्दन की सेवा में, इस भौतिक शरीर को अर्पण कर दें | यही साकार ईश्वर की सच्ची पूजा है | यह भौतिक शरीर इसी साकार ईश्वर प्रदत्त उसी की पूंजी है | हमारा कर्त्तव्य है कि ईश्वर की पूंजी ईश्वर को सौंप दें, अन्यथा हम ईश्वर के चोर होंगे | हमें चाहिए कि इस पंच भौतिक शरीर को जनता जनार्दन की सेवा में मिटा दें, तभी हम सच्चे ईश्वर भक्त बन सकेंगे | इस समस्त संसार में एक ही चैतन्य शक्ति व्याप्त रूप से समाई हुई है, जिसके द्वारा यह सारा संसार चेतन दिखाई देता है, प्रकृति का अणु-अणु उससे प्रेरित होकर कम्पायमान हो रहा है | हमारे अंदर भी वही आत्मा काम कर रही है जो समस्त संसार में | इस आत्मा को जान लेना ही आत्म दर्शन है | आत्म दर्शन ही निराकार ईश्वर की सच्ची पूजा है | निराकार और साकार की सच्ची पूजा करने के लिए इनके भेद को समझना बहुत ही आवश्यक है | कोई भी यदि यह चाहे कि वह बिना साकार की पूजा किये निराकार को जान जाय तो यह असम्भव है | साकार की पूजा करते - करते ही उस ईश्वर की विशालता , सर्वव्यापकता का
ज्ञान मनुष्य को होता है , तब वह निराकार की ओर उन्मुख होता है | आप मान लीजिए कि आपको यदि छत पर जाना है तो आपको सीढी पर से ही जाना पड़ेगा | सीधे छत की ओर छलांग लगाने से आप छत पर तो नहीं परंतु किसी चिकित्सालय में जरूर पहुँच सकते हैं | यहाँ आप निराकार को छत एवं साकार को सीढी मान सकते हैं | अर्थात बिना साकार की पूजा किये, बिना उसका अवलम्ब लिए न तो आपको निराकार के विषय में ज्ञान ही हो पायेगा और न ही आप उस तक पहुँच ही सकते हैं | और जिसने सीधे छलांग लगाने का प्रयास किया वह न तो साकार को ही प्राप्त कर पाता है और न ही निराकार को | साकार की पूजा करते - करते मनुष्य जब समस्त संसार को ईश्वरमय देखने लगता है वही निराकार को जान पाता है | अपने विचारों और कार्यों को विशुद्ध, सेवामय, ईश्वरमय बना लेने वाला मनुष्य अपने आप को ईश्वर में स्थित समझता है और अपने अंदर ईश्वर की झाँकी करता है | ईश्वर भक्ति केवल ध्यान या जप मात्र से ही नहीं हो सकती, उसके लिए आचरण (चरित्र) का समन्वय भी होना चाहिए |जिसका जीवन ईश्वरमय है | वही सच्चा ईश्वर भक्त है और उसे ही अपनी अन्तरात्मा में ‘अहं ब्रह्मास्मि’ के महातत्व का दर्शन होता है | सेवा सदाचार, प्रेम, श्रद्धा और संयम की पाँच विभूतियाँ जिसके अन्तःकरण में मौजूद हैं वह ईश्वर प्राप्ति से किसी भी प्रकार वंचित नहीं रह सकता | 🌺💥🌺 जय श्री हरि 🌺💥🌺 🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥🌳🔥 सभी भगवत्प्रेमियों को जय जय सियाराम 🙏🏻🙏🏻🌹 ♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻ सनातन धर्म से जुड़े किसी भी विषय पर चर्चा (सतसंग) करने के लिए हमारे व्हाट्सऐप समूह---- ‼ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼ से जुड़ें या सम्पर्क करें--- आचार्य अर्जुन तिवारी प्रवक्ता श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा संरक्षक संकटमोचन हनुमानमंदिर बड़ागाँव फैजाबाद श्रीअयोध्याजी (उत्तर-प्रदेश) 9935328830 🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀